शाम को हम दो दोस्तों ने फैसला किया कि कल सुबह नेपाल चलते हैं। असल में मुनस्यारी से नेपाल का रास्ता 4-5 घंटे का है। तो हम अगले ही दिन सुबह 6 बजे मुनस्यारी से नेपाल की ओर निकल गये। जिस मैक्स की गाड़ी से हम मुनस्यारी से बैठे थे वो जौलजीबी तक ही जाती है। वहाँ से आगे नेपाल बार्डर तक यानि धारचूला जाने के लिए गाड़ी बदलनी पड़ती है। धारचूला से वापस मुनस्यारी आना है तो भी ठीक वैसा ही हिसाब। पहले धारचूला से जौलजीबी तक गाड़ियां आती है, वहां से फिर मुनस्यारी के लिए गाड़ी बदलनी पड़ती है।
सुबह के 9 बज चुके थे। हम जौलजीबी पहुंच चुके थे। जौलजीबी में हमने नाश्ता किया। फिर वहाँ से गाड़ी बदली और धारचूला रवाना हुए। 10:30 के आसपास हम धारचूला पहुंच चुके थे। धारचूला से नेपाल जाने का रास्ता एक झुलानुमा पुल है जो काली नदी पर बना है। यही एकमात्र पुल यहाँ भारत और नेपाल को जोड़ती है। यानि पुल के इस पार का क्षेत्र धारचूला(भारत) और पुल के उस पार का क्षेत्र दार्चूला(नेपाल) कहलाता है।
हम धारचूला पहुंचते ही सीधे पुल की ओर गये। वहाँ पुल के इस पार भारत के आर्मी वालों ने हमारा बैग चैक किया और फिर पुल पार करने के बाद नेपाली आर्मी वालों ने बैग चैक किया। अब हम नेपाल प्रवेश कर चुके थे। चूंकि हम सुबह से मुनस्यारी से निकले थे, तो हमें जल्द से जल्द कोई होटल ढूंढना था ताकि हम नहा सकें। नहाने की जरुरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि धारचूला का मौसम मुनस्यारी से अपेक्षाकृत गर्म रहता है। तो हमने नेपाल में होटल के लिए गलियां छाननी शुरू कर दी। पहले एक होटल में गये, एक बंदा घुमा के कहाँ अंदर तक ले गया, काफी गंदा कमरा था। हम आगे बढ़े, एक दूसरे होटल में गये, वहाँ न रोशनदान, न खिड़की ना ही एसी। एक तो कहां मुनस्यारी के ठंडे मौसम से हम यहाँ धारचूला की गर्म पहाड़ियों में आ गये थे। ऐसे में बंद से कमरे में रहना मुश्किल जान पड़ रहा था। हम आगे बड़े, खोजते-खोजते एक दो मंजिला होटल में पहुंचे, वहाँ बहुत से छोटे-छोटे कमरे थे। नीचे होटल में एक आदमी खड़ा हुआ था, वही हमें दिखाने के लिए होटल मालिक के पास ले गया। वहाँ एक आंटी बैठी हुई थी। हमने उनसे कमरे के बारे में पूछा तो उन्होने हमें एक कमरे की चाबी थमाई और कहा कि जाइए देख लीजिए।
ये कमरा छोटा सा था, बाथरूम अटैच था, एक जोड़ी चप्पल पहले से रखा हुआ था, एक बिखरा हुआ तौलिया बिस्तर पर पड़ा हुआ था, और तो और कमरा उतना हवादार नहीं था जैसा हम चाह रहे थे, और हां एसी भी तो नहीं था। हम कमरे के बाहर से ये सब देख रहे थे कि पड़ोस के कमरे से एक यंग कपल निकले, वे शायद देख रहे थे कि कौन पड़ोस में आया है। हमें अब सब कुछ धीरे-धीरे समझ आ रहा था कि हम कहां हैं। हमने मिनट भर में ही कमरा लाॅक किया, होटल की मालकिन ने हमारे त्वरित फैसले को देखते हुए नीचे से आवाज लगाई कि क्या हुआ, कमरा नहीं पसंद आया। हमने इशारों में ऊपर से नहीं कहा और नीचे आकर चाबी थमाते हुए कहा कि एसी नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे नेपाल में आपको कहीं भी एसी नहीं मिलेगा। यहाँ तो ऐसा ही होटल है। खैर बोलो न आपकी और क्या डिमांड है, 1000 वाला 1500 वाला कमरा देखना चाहेंगे तो वो भी है वगैरह वगैरह। वो आंटी जब ये सब कह रही थी हम चुपचाप उनकी बातों का मर्म समझ रहे थे। इस दौरान जो उनके पीछे एक लड़की खड़ी थी वो हमें बड़ी उत्सुकता से देख रही थी। हमने फिर मालकिन से कहा कि एसी के बिना नहीं जमेगा और फिर हम वहाँ से जो निकले सीधे पुल पार करके वापस धारचूला यानि भारत। अब हमने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए नेपाल में नहीं रुकना है। असल में हम जहाँ होटल की तलाश में गये थे वो होटल नहीं कुछ और ही था।
घंटे भर तक नेपाल में होटल के लिए भटकने के बाद हमें कुछ चीजें स्पष्ट हो गई थी --
1. दार्चूला(नेपाल) में एसी नहीं मिलेगा।
2. नेपाल में अत्यधिक गरीबी है, रोजगार का अभाव है।
3. दार्चूला(नेपाल) धारचूला(भारत) से कहीं ज्यादा गंदा और अव्यवस्थित शहर है।
4. पुरूष वर्ग शराब और जुए में मस्त है, इसलिए अधिकतर दुकानों में महिलाएँ ही दिखती हैं।
5. शराब, जुआ, गांजा, वेश्यावृत्ति का प्रचलन जोरों पर है क्योंकि रोजगार की घोर कमी है।
6. नेपाल में दो तरह की दुकानें सबसे ज्यादा दिखी पहली सोने की कारीगरी करने वाली और दूसरी कपड़ों की दुकानें।
7. नेपाल में गर्म कपड़े, कालेज बैग, जूते आदि चीजें थोड़ी सस्ती हैं। आप नेपाल आते हैं तो आपको इसका फायदा जरूर उठाना चाहिए।
"चूंकि नेपाल में प्राकॄतिक संसाधनों का अभाव है एवं रोजगार के विकल्प बहुत सीमित हैं इस वजह से नशाखोरी, वेश्यावृत्ति ये सब नेपाल में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।"
दोपहर के 12:30 जब चुके थे। हमने धारचूला आकर उत्तराखंड टूरिज्म के रेस्ट हाउस KMVN में चेक इन किया। 800 रुपए में सर्वसुविधायुक्त कमरा। चूंकि धारचूला का KMVN नदी के किनारे पर ही है तो गर्जना कर बहती हुई काली नदी और उसके उस पार नेपाल का दृश्य सब कुछ हमारी खिड़की के सामने था।
अब हमने कुछ देर आराम किया और तैयार होकर वापस नेपाल की ओर निकले। वैसे अगर देखा जाए तो पुल के इस पार धारचूला और उस पार दार्चूला में कोई ज्यादा फर्क नहीं है लेकिन गहराई में उतरकर चीजों को देखा जाए तो जमीन आसमान का अंतर दिखाई पड़ता है।
अब हम दार्चूला(नेपाल) घूमने के लिए निकले ही थे कि तेज बारिश शुरू हो गई, भयंकर ओले गिरने लगे और उमस भरा मौसम अब ठंडा हो चुका था। रास्ते भर कीचड़ ही कीचड़, कच्ची पगडंडियों के कारण फिसलन का खतरा भी था। पर फिर भी हमें नेपाल घूमना था तो हम हल्की बारिश में भी ये सोच कर निकल गये कि अब फिर यहाँ आना हो न हो। वैसे तो दार्चूला में घूमने लायक कुछ खास है नहीं बस यही एक बताने लायक बात है कि किसी दूसरे देश में हैं।
दार्चूला में हमने एक होटल में थूकपा खाया, एक नुक्कड़ में चाय पी वो भी भैंस के दूध वाली चाय। अब हमने आसपास का एक किलोमीटर का क्षेत्र पूरा घूम लिया फिर समझ आ गया कि यहाँ कुछ खास नहीं है तो फिर हम मार्केट की ओर जाकर कुछ खरीददारी करने लगे। दार्चूला का मार्केट एक छोटे कस्बे जैसा ही है फिर भी आपको नाना प्रकार की बीयर, थाईलैंड चीन आदि देशों के चाकलेट बिस्किट मिल जाएंगे। हमारे दोस्त ने लैदर का जैकेट खरीदा और हमेशा की तरह फिर से उसने एक शाल खरीद लिया। चलो यहाँ तक तो सब ठीक रहा अब हमारे दोस्त ने निशानी के तौर पर एक दो पांच दस आदि रुपयों के नेपाली नोट एवं सिक्के बदलवाए, उसने मुझसे भी पूछा, मैंने मना कर दिया।
"ऐसी चीजों के लिए तो मैं एक रुपए खर्च ना करूं, वैसे भी वो पैसे तो काम आएंगे नहीं और तो और मैं तो कोई स्मृति चिन्ह लेकर चलता भी नहीं तो फिर मुझे इन सिक्कों की कोई जरूरत नहीं है। पर सबका अलग-अलग मामला होता है। जो चीजें मुझे महत्वहीन लगती हो वो किसी और को महत्व की भी लग सकती है। वैसे भी मेरा दोस्त दो हजार किलोमीटर दूर मुंबई से खास घूमने के उद्देश्य से छुट्टियाँ लेकर आया था तो उसके लिए जीवन के ये सब पहलू कीमती थे।"
जब दोस्त ने मुझे एक-दो बार पूछा कि भाई दूसरे देश में आए हैं, तु भी कुछ ले ले,तो हमने थाइलैंड और चीन का चाकलेट खरीद लिया, चाकलेट खाने के बाद ये समझ आया कि भारत के चाकलेट्स की कोई बराबरी नहीं है दुनिया में।
शाम के 6 बज चुके थे अब हम पुल पार कर नेपाल से वापस भारत की ओर लौटे। पुल पार करने का नियम ऐसा है कि एक निश्चित समय तय है- सुबह सात बजे से शाम के सात बजे तक। यानि शाम के सात बजे के बाद आप जिस देश में हैं आपको उधर ही रहना होगा और पुल पार करने के लिए सुबह होने का इंतजार करना होगा।
हम होटल आए और खाना खाकर सो गये। अगले दिन सुबह हमें मुनस्यारी के लिए वापस निकलना था। और धारचूला से निकलकर सुबह 11 बजे तक हमें जौलजीबी पहुंचना ही था। क्योंकि अगर जौलजीबी पहुंचने में देरी हुई तो फिर आगे मुनस्यारी तक जाने के लिए गाड़ियां नहीं मिलती। लिफ्ट मिलना भी लगभग नामुमकिन, आखिरी रास्ता यह रह जाएगा कि या तो जौलजीबी में रुकिए या फिर पर्सनल गाड़ी करिए। यानि मुनस्यारी से होकर धारचूला आएं तो वापसी में कैसे भी करके आपको 11 बजे तक जौलजीबी पहुंचना जरूरी हुआ।
हम अगले दिन तय समय पर धारचूला से जौलजीबी पहुंचे और मदकोट होते हुए दोपहर 2 बजे तक मुनस्यारी पहुंच चुके थे। कुछ इस तरह हमारी नेपाल यात्रा यहीं समाप्त होती है।
Kali River in between Darchula(Nepal-leftside) and Dharchula(India-Rightside) |
Hahah sahi likha bhai
ReplyDeletethanku ji aara :-D
ReplyDeleteKya baat..
ReplyDeleteshukriya :-D
DeleteAwesum
Deletethnku toshu
DeleteAfter Long Time I read it again . That is same feeling as I read last tym
ReplyDelete@jitendra sinha bahut shukriya bhai..
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