Tuesday, 7 November 2017

प्रस्तावना/उद्देशिका (Preamble)-

प्रस्तावना/उद्देशिका (Preamble)

मौलिक पहलू(Basic Features):-
1)शक्ति के स्त्रोत- हम भारत के लोग
2)राज्य के उद्देश्य-बंधुता, न्याय, समानता, स्वतंत्रता।
3)राज्य की प्रकृति-लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, गणराज्य, समाजवादी, संप्रभु।
4)लागू करने की तिथि- 26 नवंबर 1949(विधि दिवस)

संविधान के शब्दों की व्याख्या और वर्णन:-
उद्देशिका संविधान का सारांश, दर्शन और आदर्श होती है। यह किसी भी राष्ट्र के आदर्शों, लक्ष्यों, सिध्दान्तों की दिशानिर्देशक और दिक्सूचक होती है।
सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में प्रस्तावना को अपनाया गया या तत्पश्चात् अन्य देशों के प्रावधानों में प्रस्तावना को स्थान दिया गया।
पंडित नेहरू ने 13 नवंबर 1946 को उद्देश्य प्रस्ताव के माध्यम से इसे प्रस्तुत किया जिसे संविधान सभा ने 22 जनवरी 1947 को पारित किया। यह उद्देश्य प्रस्ताव ही भारतीय संविधान की उद्देशिका का आधार बना।
                सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उद्देशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।(बेरूबारी मामला 1960)
सर अर्नेस्ट बार्कर ने भारतीय संविधान की उद्देशिका को विश्व की सर्वश्रेष्ठ उद्देशिकाओं में से एक माना है।
-संविधान की उद्देशिका में वर्णित शब्द एक आदर्श और सिद्धांत के रूप में स्थापित है और इन शब्दों की दार्शनिक व्याख्याएं आदर्शों में निहित है जो निम्नांकित है:-
1)एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्‍न, पंथनिरपेक्ष समाजवादी लोकतंत्र।
2)सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय की स्थापना।
3)विचार, अभिव्यक्ति, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता।
4)प्रतिष्ठा और अवसर की प्राप्ति के लिए समता।
5)व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता की अभिवृद्धि।

• हम, भारत के लोग-
उद्देशिका का प्रारंभ हम, भारत के लोग से की गई है जो यह स्पष्ट करता है कि भारत के लोग संविधान के मूल स्त्रोत हैं और समस्त शक्तियों के केन्द्र हैं, भारतीय संविधान भारतीय जनता की इच्छा का परिणाम है जिसे संविधान सभा के माध्यम से अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया है। यह शब्दावली अमेरिकी संविधान के उद्घोषणा से ली गई है।

• संप्रभुता(Sovereignity)-
सामान्य अर्थों में संप्रभुता का अर्थ यह है कि हम अपनी नीतियों व निर्णयों के लिए स्वतंत्र हैं, कोई विदेशी दबाव हमारे ऊपर नहीं है।
संप्रभुता शब्द का आशय है कि भारत सरकार किसी भी विदेशी प्रभाव, सत्ता, नियंत्रण से सर्वथा मुक्त होगी इसका अर्थ यह भी है कि भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं और ना ही उनका डोमोनियन है।
संप्रभुता राज्यों का एक अनिवार्य गुण होता है। भारत में भी केन्द्र और राज्यों के मध्य शक्तियों का वितरण है ना कि संप्रभुता की। इसलिए राष्ट्रीय हित में राज्यों के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप कर सकता है।

• लोकतंत्र-
लोकतंत्र संप्रभुता के सिध्दान्त पर आधारित है अर्थात् सर्वोच्च शक्ति जनता के हाथ में होती है।

लोकतंत्र दो प्रकार का होता है:-
1)प्रत्यक्ष- जनता का सक्रिय योगदान प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहलाता है।
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता अपनी शक्ति का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से करती है। जैसे- स्विटजरलैंड।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र के चार मूल तत्व होते हैं:-
a)Referendum
b)Initiative
c)Recall
d)Plebcite

2)अप्रत्यक्ष- जनता की सहभागिता नगण्य रूप से होती है।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि शक्ति का प्रयोग करते हैं और शासन व्यवस्था को चलाते हुए कानूनों का निर्माण करते हैं, इस प्रकार के लोकतंत्र को प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र कहते हैं।
यह दो प्रकार का होता है:-
1)राष्ट्रपति प्रणाली(अध्यक्षीय)
2)संसदीय शासन प्रणाली।

भारतीय संविधान में प्रतिनिधात्मक, संसदीय, लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को अपनाया है। जिसमें कार्यपालिका अपनी सभी नीतियों एवं कार्यों के लिए विधायिका के प्रति जवाबदेह है जिसमें लोकतांत्रिक लक्षणों के स्वरूप जैसे:- व्यस्क मताधिकार, समय-समय पर चुनाव या निश्चित समयावधि पर चुनाव, आम चुनाव, उपचुनाव, मध्यावधि चुनाव, विधि की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, भेदभाव का अभाव।
                भारतीय लोकतंत्र में केवल राजनीतिक लोकतंत्र नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है।

• लोकतंत्रात्मक राजव्यवस्था-
यह गणतंत्र और राजतंत्र दो व्यवस्थाएं होती है। राजतंत्र में राज्य का प्रमुख सामान्यतः उत्तराधिकार के माध्यम से पद प्राप्त करता है जो सामान्य तौर पर राजा या रानी होते हैं।
उदाहरण:- ब्रिटेन।
लोकतंत्र में राज्य प्रमुख प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिए निर्वाचित होता है।
उदाहरण:- अमेरिका।
लोकतांत्रिक गणराज्य व्यवस्थाओं में राजनीतिक संप्रभुता किसी व्यक्ति विशेष के हाथ में न होकर जनता के हाथ में होती है और किसी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति होती है।

• समाजवादी-
समाजवाद शब्द उद्देशिका में 42वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया राष्ट्रीय नीतियों में सामाजिक, आर्थिक समानता के लिए जो प्रयास किए जा रहे थे उनका स्पष्ट उल्लेख समाजवादी शब्द को समाहित करके किया गया है, यहां समाजवाद कोई विचारधारा नहीं बल्कि गणराज्य की विशेषता को प्रदर्शित करता है, जिसका अर्थ आर्थिक विषमता को दूर कर सभी प्रकार के शोषण से मुक्त करना है।
              भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद है न कि साम्यवादी समाजवाद इसे राज्य आश्रित समाजवाद भी कहते हैं जिसमें उत्पादन और वितरण के सभी साधनों की राष्ट्रीयकरण और निजी संपत्ति का उन्मूलन शामिल है।
              लोकतांत्रिक समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास करना है।(आवश्यकता+ योगदान का संतुलन)
भारतीय समाजवाद का झुकाव गांधीवादी समाजवाद की ओर जाता है।

• न्याय-
न्याय भारतीय संविधान की उद्देशिका की उद्देशिका में तीन विभिन्न रूपों में शामिल है-
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय।
            सामाजिक न्याय का अर्थ है जाति,धर्म,लिंग के आधार पर बिना भेदभाव के समान व्यवहार करना अर्थात् समाज में किसी वर्ग विशेष के विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं की स्थिति में सुधार है।
            आर्थिक न्याय का अर्थ है कि आर्थिक कारणों के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा इसमें संपत्ति आय की असमानता को दूर करना भी शामिल है।
            राजनीतिक न्याय का अर्थ है प्रत्येक को समान राजनीतिक आधार प्राप्त होंगे चुनाव लड़ने की वोट देने की आदि।
            सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक के इन तत्वों को ही रूस के वोल्शेविक क्रांति 1917 से लिया गया।

• स्वतंत्रता-
स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्तियों की गतिविधियों पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंध का निषेध और साथ ही व्यक्ति के संपूर्ण विकास के अवसर उपलब्ध कराना।
              भारतीय संविधान की उद्देशिका में मौलिक अधिकारों के माध्यम से अभिव्यक्ति, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया गया है और इन्हें न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय बनाया गया है। हालांकि स्वतंत्रता का अभिप्राय यह नहीं है कि हर व्यक्ति को स्वतंत्रता के असीमित दें और इनका उपभोग संविधान प्रदत सीमाओं के अंतर्गत शामिल है। उद्देशिका में स्वतंत्रता समानता बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की राज्य क्रांति 1789 से लिया गया है।

• समता/समानता-
समानता का अर्थ है समाज में किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति एवं बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर उपलब्ध कराने के अवसर देना।
                फ्रांसीसी क्रांति की स्वतंत्रता की उद्घोषणा में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया कि स्वतंत्रता और समानता सभी मनुष्यों ने जन्म से ही प्राप्त किया है और ये उनके अभिन्न अंग हैं।
                भारतीय संविधान की उद्देशिका में समानता के तीन आयाम शामिल हैं:-
1) नागरिक समानताएँ
2) राजनीतिक समानताएँ
3) आर्थिक समानताएँ
                  मौलिक अधिकारों में नागरिक समानताओं के अधिकार अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक सुनिश्चित किया गया है।राजनीतिक समानता अनुच्छेद 325 और 326 में निहित है।

• बंधुत्व-
बंधुत्व का अर्थ है सभी नागरिकों के बीच एक होने के भाव को जागृत करना और सर्वमान्य भाईचारे का विकास करना। बंधुत्व से समाज में व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित की जा सकती है।
               भारतीय संविधान एकल नागरिकता के माध्यम से मौलिक कर्तव्यों 51(a) के माध्यम से बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करता है। इसीलिए 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से अखंडता शब्द जोड़ा गया।

• एकता और अखंडता-
ये दोनों किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होती है। यदि नागरिकों के विभिन्‍न हित आपस में टकराने लगे तो हितों के टकराव से राष्ट्र की एकता और अखंडता खतरे में पड़ सकती है।
               भारतीय संविधान की उद्देशिका में राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित कराने के किए बंधुत्व के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं को युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाकर और समानता को स्थापित करने के लिए विशेष वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए गए।

• सामाजिक न्याय की अवधारणा-
भारतीय संविधान की उद्देशिका में न्याय की एक वृहद् संकल्पना निहित है जिसका एक पक्ष सामाजिक न्याय है।
-सामाजिक न्याय उन विशिष्ट सिध्दान्तों का प्रतिनिधित्व करता है जो व्यक्ति अथवा नागरिक के संतुलित विकास के लिए अनिवार्य है।
-सामाजिक न्याय का एक पक्ष निम्न समूहों, शोषित समूहों कमजोर वर्गों और पिछड़े समूहों का उत्थान है।
-सामाजिक न्याय का एक विशिष्ट पक्ष वितरणात्मक न्याय है जिसका अर्थ आय और संपत्ति के समान वितरण तथा आर्थिक असमानता की समाप्ति है।
-सामाजिक न्याय और सामाजिक समानता के आदर्श एक दूसरे के पूरक हैं। विधि के शासन और विधियों का समान संरक्षण(अनुच्छेद 14) इसे बल प्रदान करने का महत्वपूर्ण साधन है।
-सामाजिक न्याय, सामाजिक विभेद की समाप्ति का दृष्टिकोण है जिसमें सभी वर्गों का सभी क्षेत्रों में संतुलित विकास समाहित है।

• उद्देशिका का महत्व-
संविधान उद्देशिका का ही विस्तार है। उद्देशिका भारतीय राजव्यवस्था के आदर्शों का पालन करती है, उद्देशिका भारतीय राज्य के स्वरूप को निर्धारित करती है, उद्देशिका लोक संप्रभुता को परिभाषित करती है, उद्देशिका संविधान के दर्शन को स्थापित करती है, उद्देशिका हमारे संविधान निर्माताओं के सोच का प्रतिनिधित्व करती है।

• न्यायिक निर्वचन से जुड़े महत्व-
1)Exchange of enclave बेरूबारी यूनियन(1960)-
अनुच्छेद 143 के अंतर्गत राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय को परामर्श देने की शक्ति है।
2)उद्देशिका संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क की पूंजी है।संविधान के किसी शब्द की अस्पष्टता की स्थिति में इसकी सहायता ली जा सकती है।
3)सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य मुकदमा(1965)-
यह संविधान की वृहद् विशेषताओं का प्रतीक है और संविधान उद्देशिका का ही परिवर्धित रूप है।
4)गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मुकदमा(1967)-
उद्देशिका सरकार के कार्यों के सैद्धांतिक आधार का प्रतीक है। यह संविधान की आत्मा है।
यह शाश्वत,अपरिवर्तनीय,नित्य है।
5)केशवानंद भारतीवाद(24 अप्रैल 1973)-
-उद्देशिका संविधान का भाग है।
-इसके उद्देश्य संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।
-यह अतिमहत्वपूर्ण और संविधान की व्याख्याएं हैं और उद्देशिका में परिभाषित उच्च आदर्शों के प्रकाश में इसकी व्याख्या की जानी चाहिए।
6)इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मुकदमा-
उद्देशिका के उद्देश्य संविधान के मौलिक ढांचे का हिस्सा है।


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