• संघ (Federation)-
राजनीतिक शासन द्वारा राष्ट्रीय सरकार और राज्य सरकार की प्रकृति के आधार पर सरकार के दो भागों में वर्गीकृत किया गया है- एकल और संघीय।
1)एकल या एकात्मक - ऐसी सरकार जिसमें समस्त शक्तियां और कार्य केन्द्र में केन्द्र सरकार और राज्य में राज्य सरकार में निहित हो, एकल सरकार कहलाती है।
उदाहरण- ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, चीन, इटली, बेल्जियम, नार्वे, स्वीडन, स्पेन।
2)संघीय - वह सरकार जिसमें शक्तियां और कार्य संविधान द्वारा केन्द्र और राज्य में विभाजित होते हैं, संघ सरकार कहलाते हैं। दोनों ही अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं।
उदाहरण- अमेरिका, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, रशिया, ब्राजील, अर्जेंटीना।
संघीय स्वरूप में राष्ट्रीय सरकार को केन्द्र सरकार और क्षेत्रीय सरकार को राज्य सरकार कहा जाता है।
• संघीय सरकार -
1) दोहरी सरकार अर्थात् केंद्र सरकार व राज्य सरकार।
2)लिखित संविधान
3)केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन
4)संविधान की सर्वोच्चता।
5)कठोर संविधान।
6)स्वतंत्र न्यायपालिका ।
7)द्विसदनीय विधायिका।
• एकात्मक सरकार -
1)एकल सरकार केंद्रीय सरकार होती है जो राज्य सरकारें बनाती है।
2)संविधान लिखित भी हो सकता है, और अलिखित भी हो सकता है।जैसे:- अमेरिका, भारत।
3)शक्तियों का कोई विभाजन नहीं होता और समस्त शक्तियां केन्द्र में निहित होती है।
4)संविधान सर्वोच्च भी हो सकता है और नहीं भी।
5)कठोर भी हो सकता है लचीला भी।
6)न्यायपालिका स्वतंत्र भी हो सकती है और नहीं भी।
7)विधायिका द्विसदनीय भी हो सकती है और एकसदनीय भी।
• संघ(Union) :-
-संघ एक राजनीतिक व्यवस्था है जिसे विभिन्न इकाइयों के साथ संधि या समझौते के तहत् निर्मित किया जाता है।
-संघ की इन इकाइयों को अलग-अलग नामों जैसे अमेरिका में राज्य, स्विट्जरलैंड में कैन्टोन, कनाडा में प्रांत और रूस में गणतंत्र के नाम से पुकारा जाता है।
-संघीय शासन दो रूपों में निर्मित होता है:-
a)एकीकरण- आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर तथा पिछड़े राज्य जो स्वतंत्र हैं मिलकर एक बड़े और मजबूत संघ का निर्माण करते हैं।
उदाहरण - अमेरिका।
b)विभेदीकरण- एक बड़ा एकीकृत राज्य संघ में परिवर्तित हो जाता है जहां राज्यों को स्वायत्तता होती है।
उदाहरण- कनाडा।
-अमेरिका विश्व का पहला संघीय शक्ति वाला देश है।
-भारत में संघीय सरकार व्यवस्था (Union) को अपनाया गया है। इसके अपनाने के पीछे दो कारण प्रमुख थे-
a)देश का वृहद आकार।
b)सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता।
-भारतीय संविधान में कहीं भी Federation संघ का उपयोग नहीं किया गया है, भारतीय संविधान का अनुच्छेद-1 यह स्पष्ट करता है, यह Union शब्दावली कनाडा से ली गई है।
- राज्यों के संघ से दो बातें स्पष्ट होती है -
a)अमेरिकी संघ के विपरित भारतीय संघ राज्यों के बीच संधि या समझौते का परिणाम नहीं है।
b)राज्यों को यह अधिकार नहीं है कि वह संघ से खुद को अलग कर सकें।
- भारतीय संघ और कनाडा की व्यवस्था में कुछ आधारों पर समान है:-
a)निर्माण
b)Union शब्द का प्रमुखता से प्रयोग
c)केन्द्रीकरण की प्रकृति।
• भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं:-
a)Dual form of government(द्वैध सरकार)
b)Written Constitution(लिखित संविधान)
c)Supremacy of Constitution(संविधान की सर्वोच्चता।
d)Seperation of power(शक्तियों का विभाजन)
e)Bicameral Legislation(द्विसदनीय विधायिका)
f)Independent Judiciary( स्वतंत्र न्यायपालिका)
• भारतीय संविधान की एकात्मक विशेषताएं:-
- सशक्त केंद्र - शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में है उदाहरण स्वरूप केन्द्रीय सूची में ज्यादा और महत्वपूर्ण विषयों का शामिल किया जाना। समवर्ती सूची में भी केन्द्र का स्थान ऊपर है। अवशिष्ट शक्तियां केन्द्र में निहित है। राज्यसभा राज्य सूची के किसी भी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करके उस पर एक वर्ष के लिए कानून बना सकती है।
- राज्य अनश्वर नहीं है।
- एकल संविधान- भारत में राज्यों का कोई संविधान नहीं है, राज्यों का संविधान भी मूल संविधान में निहित है।(अपवाद- जम्मू और कश्मीर)
भारतीय संघ नश्वर राज्यों का अनश्वर संघ है।
- संविधान का लचीलापन- संविधान संशोधन की शक्ति हालांकि केन्द्र में निहित है लेकिन अमेरिकी संविधान की तुलना में यह प्रक्रिया कम कठोर है।
- आपातकालीन उपबंधों की व्याख्या - 352, 356,360.
संविधान तीन तरह के आपातकालीन उपबंधों को स्पष्ट करता है। पूरी शक्तियां केन्द्र में निहित हो जाती हैं। यह प्रावधान बिना संविधान संशोधन के संघीय ढांचे को एकल ढांचे में बदल देता है।
-एकल नागरिकता।
-राज्यों का समान प्रतिनिधित्व नहीं है प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर दिया गया है।
-एकीकृत न्यायपालिका।(अमेरिका में दोहरी न्यायलयीन व्यवस्था है।)
- अखिल भारतीय सेवाएँ - यह केन्द्र और राज्य दोनों के लिए होती है। केंद्र द्वारा इन सेवाओं के अधिकारियों का चयन और प्रशिक्षण किया जाता है। इन पर केन्द्र का पूर्ण नियंत्रण होता है। अतः ये सेवाएं संविधान के संघीय सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
- राज्य सूची पर संसद का अधिकार - अनुच्छेद 249.
- राज्यपाल की नियुक्ति।
- एकीकृत निर्वाचन व्यवस्था।
- एकीकृत लेखा व्यवस्था।
- राज्यों के विधेयकों पर वीटो की शक्ति:- राज्यपाल का अधिकार { अनुच्छेद- 200(a) }
• संघ और परिसंघ में अंतर -
• संघ -
1)संघ अपेक्षाकृत अधिक एकीकृत इकाई है जो दो इकाइयों का वैधानिक एकीकरण है जिसमें पहली इकाई केन्द्र एवं दूसरी इकाई राज्य है।
2)संघ के अंतर्गत इकाइयाँ जो राज्य के अंतर्गत हैं कि स्थिति संप्रभु नहीं होती।
3)संघ के अंतर्गत उनकी इकाइयाँ नहीं बल्कि संघ संप्रभु होता है।
4)संघ की अंतर्राष्ट्रीय पहचान होती है।
5)अंतरराष्ट्रीय विधियों में संघ की पहचान होती है न कि परिसंघ की।
6)अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार संघ एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति है।
7) इसमें संबंध होता है। इसलिए व्यक्ति संघ के नागरिक होते हैं।
• परिसंघ -
1)दो या दो से अधिक इकाइयों का एकीकरण है।
जैसे:- CIS के देश।
2)परिसंघ में राज्यों की यह इकाइयाँ संप्रभु होती हैं।
3)परिसंघ में उसकी इकाई संप्रभु होती है।
4)अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई वैधानिक पहचान नहीं होती।
5) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, संधियों में परिसंघ की कोई पहचान नहीं है।
6)यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति नहीं है।
7)परिसंघ और व्यक्ति के बीच वैधानिक संबंध होता है।
आधार. संघ. परिसंघ. यूनियन
1.उदाहरण. अमेरिका आस्ट्रेलिया, CIS. भारत,कनाडा
2.केन्द्र की स्थिति संतुलित सत्ता निर्णायक सत्ता निर्णायक सत्ता
3.राज्यों की स्थिति संतुलित सत्ता निर्णायक सत्ता सीमित
4.संविधान संशोधन की शक्ति संघ और राज्यों के बीच वितरित. राज्यों के पास. केन्द्र के पास
5. अवशिष्ट शक्तियां केन्द्र और राज्य के बीच. राज्य. केन्द्र
• Union प्रारूप में तीन प्रकार के संघवाद-
• एकीकृत संघवाद-
-केन्द्र और राज्य में एकदलीय सरकारें। दलीय अनुशासन।
-राज्य अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर पाते।
• सौदेबाजी वाला संघवाद-
-भारतीय संघ को सौदेबाजी वाला संघ Morrish Jones ने कहा है। इसमें परिस्थितियों को लेकर सौदेबाजी की जाती है, अस्तित्व की रक्षा तथा दूसरों का अस्तित्व बचाने हेतु।
• सहकारी संघवाद-
-ग्रेनविल आस्टिन ने भारतीय संघ को सहकारी संघवाद कहा है, केन्द्र और राज्य पारस्परिक सहयोग एवं सामंजस्य के आधार पर शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
• संविधान की नम्य व अनम्य प्रकृति -
नम्य:- नम्य संविधान वह होता है जिसमें संविधान की प्रक्रिया वैसी होती है जैसी कानून निर्माण की प्रक्रिया।
उदाहरण- ब्रिटेन का संविधान।
अनम्य:- अनम्य संविधान उसे माना जाता है जिसमें संशोधन करने के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
उदाहरण - अमेरिकी संविधान।
भारत का संविधान न ही ज्यादा लचीला न ही कठोर है बल्कि दोनों का मिश्रण है।
• Basic Principles of Indian Polity -
1)Principle of plannery power (संपूर्ण शक्ति का सिद्धांत):-
-संघ और राज्यों के मध्य एक सिद्धांत है।
-विधायिका की विधि निर्माण की शक्ति अपनी क्षमता के अंतर्गत पूर्ण है अर्थात कोई भी विधायिका जहां उसकी विधायिका शक्ति परिभाषित है अर्थात् कोई भी विधायिका जिसकी शक्ति परिभाषित नहीं है, विधि बना सकती है।
अपवाद- संविधान के द्वारा विशिष्ट अंकुश।
-व्यवहार में न्यायपालिका द्वारा विशिष्ट अंकुश।
2)Ex-post Facto and Perspective Facto(भूतलक्षीय और भविष्य लक्षीय का सिद्धांत):-
-विधायिका को दोनों ही प्रकार की विधि निर्माण की शक्ति प्रदान है अतः वह विधि में दोनों ही नियमों को लागू करता है।
-दांडिक मामलों में भूतलक्षीय प्रभावों को लागू नहीं किया जा सकता।
3)Doctrine of Reading Down(अर्थ के अल्पीकरण का सिध्दांत )-
यदि कोई विधायिका विधि के निर्माण में अस्पष्ट शब्दों का प्रयोग करती है जिसके कारण विधि के प्रभाव का विस्तार किसी अन्य विषय पर हो जाता है तो इसके अर्थ का अल्पीकरण किया जा सकता है अर्थात इसे सीमित अर्थ दिया जा सकता है और इस सीमित अर्थ के साथ विधि वैध होती है।
4)Doctrine of Severadility ( पृथक्कीकरण का सिध्दान्त )-
यदि कोई विधि मूल अधिकारों का हनन करती है तो संपूर्ण विधि को अवैध किया जाना जरूरी नहीं है। विधि का जो हिस्सा हनन करता है उसे पृथक किया जाना अगर वह पृथक किया जा सकता है तो। और शेष विधि को वैध किया जाना।
5)Doctrine of Overlapping ( अतिव्यापता का सिध्दान्त )-
-इसके अंतर्गत प्रथम सूची और द्वितीय सूची के बीच अतिव्यापता की स्थिति में प्रथम सूची की वरीयता।
-सूची-1 और सूची-3 के मध्य संघर्ष की स्थिति में सूची 1 को प्राथमिकता।
-सूची-2 और सूची-3 के मध्य सूची 3 की प्राथमिकता।
6)Doctrine of Subsidiary Power( अनुसंघी शक्तियों का सिध्दांत )-
विधायिका की विषय से संबंधित अनुसंघी मामलों पर विधि निर्माण की शक्ति। यदि वह युक्तियुक्त रूप में इस विधि में निहित हो।
G. chawla vs. state of rajasthan, 1959.
7)Doctrine of Requisite land (अधिग्रहित क्षेत्र का सिद्धांत) -
समवर्ती सूची में संघीय विधि और राज्य विधि के बीच संघर्ष की स्थिति में संघ विधि को प्राथमिकता लेकिन संघर्ष नहीं होने की स्थिति में भी संघ विधि राज्य विधि राज्य विधि को शून्य कर सकती है।
8)Doctrine of Territorial Nexus ( राज्यक्षेत्रीय संबंध का सिध्दांत )-
-राज्य की विधि निर्माण की शक्ति का प्रभाव राज्य की सीमा तक ही सीमित है लेकिन राज्य विधि का विस्तार इस क्षेत्र के बाहर किसी व्यक्ति, वस्तु या गतिविधि तक हो सकती है यदि उनके बीच युक्तियुक्त संबंध हो।
-युक्तियुक्त संबंध में ऐसी विधि वैध होती है और इस संबंध को स्थापित करना संबंधित राज्य का उत्तरदायित्व है।
राजनीतिक शासन द्वारा राष्ट्रीय सरकार और राज्य सरकार की प्रकृति के आधार पर सरकार के दो भागों में वर्गीकृत किया गया है- एकल और संघीय।
1)एकल या एकात्मक - ऐसी सरकार जिसमें समस्त शक्तियां और कार्य केन्द्र में केन्द्र सरकार और राज्य में राज्य सरकार में निहित हो, एकल सरकार कहलाती है।
उदाहरण- ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, चीन, इटली, बेल्जियम, नार्वे, स्वीडन, स्पेन।
2)संघीय - वह सरकार जिसमें शक्तियां और कार्य संविधान द्वारा केन्द्र और राज्य में विभाजित होते हैं, संघ सरकार कहलाते हैं। दोनों ही अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं।
उदाहरण- अमेरिका, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, रशिया, ब्राजील, अर्जेंटीना।
संघीय स्वरूप में राष्ट्रीय सरकार को केन्द्र सरकार और क्षेत्रीय सरकार को राज्य सरकार कहा जाता है।
• संघीय सरकार -
1) दोहरी सरकार अर्थात् केंद्र सरकार व राज्य सरकार।
2)लिखित संविधान
3)केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन
4)संविधान की सर्वोच्चता।
5)कठोर संविधान।
6)स्वतंत्र न्यायपालिका ।
7)द्विसदनीय विधायिका।
• एकात्मक सरकार -
1)एकल सरकार केंद्रीय सरकार होती है जो राज्य सरकारें बनाती है।
2)संविधान लिखित भी हो सकता है, और अलिखित भी हो सकता है।जैसे:- अमेरिका, भारत।
3)शक्तियों का कोई विभाजन नहीं होता और समस्त शक्तियां केन्द्र में निहित होती है।
4)संविधान सर्वोच्च भी हो सकता है और नहीं भी।
5)कठोर भी हो सकता है लचीला भी।
6)न्यायपालिका स्वतंत्र भी हो सकती है और नहीं भी।
7)विधायिका द्विसदनीय भी हो सकती है और एकसदनीय भी।
• संघ(Union) :-
-संघ एक राजनीतिक व्यवस्था है जिसे विभिन्न इकाइयों के साथ संधि या समझौते के तहत् निर्मित किया जाता है।
-संघ की इन इकाइयों को अलग-अलग नामों जैसे अमेरिका में राज्य, स्विट्जरलैंड में कैन्टोन, कनाडा में प्रांत और रूस में गणतंत्र के नाम से पुकारा जाता है।
-संघीय शासन दो रूपों में निर्मित होता है:-
a)एकीकरण- आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर तथा पिछड़े राज्य जो स्वतंत्र हैं मिलकर एक बड़े और मजबूत संघ का निर्माण करते हैं।
उदाहरण - अमेरिका।
b)विभेदीकरण- एक बड़ा एकीकृत राज्य संघ में परिवर्तित हो जाता है जहां राज्यों को स्वायत्तता होती है।
उदाहरण- कनाडा।
-अमेरिका विश्व का पहला संघीय शक्ति वाला देश है।
-भारत में संघीय सरकार व्यवस्था (Union) को अपनाया गया है। इसके अपनाने के पीछे दो कारण प्रमुख थे-
a)देश का वृहद आकार।
b)सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता।
-भारतीय संविधान में कहीं भी Federation संघ का उपयोग नहीं किया गया है, भारतीय संविधान का अनुच्छेद-1 यह स्पष्ट करता है, यह Union शब्दावली कनाडा से ली गई है।
- राज्यों के संघ से दो बातें स्पष्ट होती है -
a)अमेरिकी संघ के विपरित भारतीय संघ राज्यों के बीच संधि या समझौते का परिणाम नहीं है।
b)राज्यों को यह अधिकार नहीं है कि वह संघ से खुद को अलग कर सकें।
- भारतीय संघ और कनाडा की व्यवस्था में कुछ आधारों पर समान है:-
a)निर्माण
b)Union शब्द का प्रमुखता से प्रयोग
c)केन्द्रीकरण की प्रकृति।
• भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं:-
a)Dual form of government(द्वैध सरकार)
b)Written Constitution(लिखित संविधान)
c)Supremacy of Constitution(संविधान की सर्वोच्चता।
d)Seperation of power(शक्तियों का विभाजन)
e)Bicameral Legislation(द्विसदनीय विधायिका)
f)Independent Judiciary( स्वतंत्र न्यायपालिका)
• भारतीय संविधान की एकात्मक विशेषताएं:-
- सशक्त केंद्र - शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में है उदाहरण स्वरूप केन्द्रीय सूची में ज्यादा और महत्वपूर्ण विषयों का शामिल किया जाना। समवर्ती सूची में भी केन्द्र का स्थान ऊपर है। अवशिष्ट शक्तियां केन्द्र में निहित है। राज्यसभा राज्य सूची के किसी भी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करके उस पर एक वर्ष के लिए कानून बना सकती है।
- राज्य अनश्वर नहीं है।
- एकल संविधान- भारत में राज्यों का कोई संविधान नहीं है, राज्यों का संविधान भी मूल संविधान में निहित है।(अपवाद- जम्मू और कश्मीर)
भारतीय संघ नश्वर राज्यों का अनश्वर संघ है।
- संविधान का लचीलापन- संविधान संशोधन की शक्ति हालांकि केन्द्र में निहित है लेकिन अमेरिकी संविधान की तुलना में यह प्रक्रिया कम कठोर है।
- आपातकालीन उपबंधों की व्याख्या - 352, 356,360.
संविधान तीन तरह के आपातकालीन उपबंधों को स्पष्ट करता है। पूरी शक्तियां केन्द्र में निहित हो जाती हैं। यह प्रावधान बिना संविधान संशोधन के संघीय ढांचे को एकल ढांचे में बदल देता है।
-एकल नागरिकता।
-राज्यों का समान प्रतिनिधित्व नहीं है प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर दिया गया है।
-एकीकृत न्यायपालिका।(अमेरिका में दोहरी न्यायलयीन व्यवस्था है।)
- अखिल भारतीय सेवाएँ - यह केन्द्र और राज्य दोनों के लिए होती है। केंद्र द्वारा इन सेवाओं के अधिकारियों का चयन और प्रशिक्षण किया जाता है। इन पर केन्द्र का पूर्ण नियंत्रण होता है। अतः ये सेवाएं संविधान के संघीय सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
- राज्य सूची पर संसद का अधिकार - अनुच्छेद 249.
- राज्यपाल की नियुक्ति।
- एकीकृत निर्वाचन व्यवस्था।
- एकीकृत लेखा व्यवस्था।
- राज्यों के विधेयकों पर वीटो की शक्ति:- राज्यपाल का अधिकार { अनुच्छेद- 200(a) }
• संघ और परिसंघ में अंतर -
• संघ -
1)संघ अपेक्षाकृत अधिक एकीकृत इकाई है जो दो इकाइयों का वैधानिक एकीकरण है जिसमें पहली इकाई केन्द्र एवं दूसरी इकाई राज्य है।
2)संघ के अंतर्गत इकाइयाँ जो राज्य के अंतर्गत हैं कि स्थिति संप्रभु नहीं होती।
3)संघ के अंतर्गत उनकी इकाइयाँ नहीं बल्कि संघ संप्रभु होता है।
4)संघ की अंतर्राष्ट्रीय पहचान होती है।
5)अंतरराष्ट्रीय विधियों में संघ की पहचान होती है न कि परिसंघ की।
6)अंतरराष्ट्रीय विधि के अनुसार संघ एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति है।
7) इसमें संबंध होता है। इसलिए व्यक्ति संघ के नागरिक होते हैं।
• परिसंघ -
1)दो या दो से अधिक इकाइयों का एकीकरण है।
जैसे:- CIS के देश।
2)परिसंघ में राज्यों की यह इकाइयाँ संप्रभु होती हैं।
3)परिसंघ में उसकी इकाई संप्रभु होती है।
4)अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई वैधानिक पहचान नहीं होती।
5) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, संधियों में परिसंघ की कोई पहचान नहीं है।
6)यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति नहीं है।
7)परिसंघ और व्यक्ति के बीच वैधानिक संबंध होता है।
आधार. संघ. परिसंघ. यूनियन
1.उदाहरण. अमेरिका आस्ट्रेलिया, CIS. भारत,कनाडा
2.केन्द्र की स्थिति संतुलित सत्ता निर्णायक सत्ता निर्णायक सत्ता
3.राज्यों की स्थिति संतुलित सत्ता निर्णायक सत्ता सीमित
4.संविधान संशोधन की शक्ति संघ और राज्यों के बीच वितरित. राज्यों के पास. केन्द्र के पास
5. अवशिष्ट शक्तियां केन्द्र और राज्य के बीच. राज्य. केन्द्र
• Union प्रारूप में तीन प्रकार के संघवाद-
• एकीकृत संघवाद-
-केन्द्र और राज्य में एकदलीय सरकारें। दलीय अनुशासन।
-राज्य अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर पाते।
• सौदेबाजी वाला संघवाद-
-भारतीय संघ को सौदेबाजी वाला संघ Morrish Jones ने कहा है। इसमें परिस्थितियों को लेकर सौदेबाजी की जाती है, अस्तित्व की रक्षा तथा दूसरों का अस्तित्व बचाने हेतु।
• सहकारी संघवाद-
-ग्रेनविल आस्टिन ने भारतीय संघ को सहकारी संघवाद कहा है, केन्द्र और राज्य पारस्परिक सहयोग एवं सामंजस्य के आधार पर शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
• संविधान की नम्य व अनम्य प्रकृति -
नम्य:- नम्य संविधान वह होता है जिसमें संविधान की प्रक्रिया वैसी होती है जैसी कानून निर्माण की प्रक्रिया।
उदाहरण- ब्रिटेन का संविधान।
अनम्य:- अनम्य संविधान उसे माना जाता है जिसमें संशोधन करने के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
उदाहरण - अमेरिकी संविधान।
भारत का संविधान न ही ज्यादा लचीला न ही कठोर है बल्कि दोनों का मिश्रण है।
• Basic Principles of Indian Polity -
1)Principle of plannery power (संपूर्ण शक्ति का सिद्धांत):-
-संघ और राज्यों के मध्य एक सिद्धांत है।
-विधायिका की विधि निर्माण की शक्ति अपनी क्षमता के अंतर्गत पूर्ण है अर्थात कोई भी विधायिका जहां उसकी विधायिका शक्ति परिभाषित है अर्थात् कोई भी विधायिका जिसकी शक्ति परिभाषित नहीं है, विधि बना सकती है।
अपवाद- संविधान के द्वारा विशिष्ट अंकुश।
-व्यवहार में न्यायपालिका द्वारा विशिष्ट अंकुश।
2)Ex-post Facto and Perspective Facto(भूतलक्षीय और भविष्य लक्षीय का सिद्धांत):-
-विधायिका को दोनों ही प्रकार की विधि निर्माण की शक्ति प्रदान है अतः वह विधि में दोनों ही नियमों को लागू करता है।
-दांडिक मामलों में भूतलक्षीय प्रभावों को लागू नहीं किया जा सकता।
3)Doctrine of Reading Down(अर्थ के अल्पीकरण का सिध्दांत )-
यदि कोई विधायिका विधि के निर्माण में अस्पष्ट शब्दों का प्रयोग करती है जिसके कारण विधि के प्रभाव का विस्तार किसी अन्य विषय पर हो जाता है तो इसके अर्थ का अल्पीकरण किया जा सकता है अर्थात इसे सीमित अर्थ दिया जा सकता है और इस सीमित अर्थ के साथ विधि वैध होती है।
4)Doctrine of Severadility ( पृथक्कीकरण का सिध्दान्त )-
यदि कोई विधि मूल अधिकारों का हनन करती है तो संपूर्ण विधि को अवैध किया जाना जरूरी नहीं है। विधि का जो हिस्सा हनन करता है उसे पृथक किया जाना अगर वह पृथक किया जा सकता है तो। और शेष विधि को वैध किया जाना।
5)Doctrine of Overlapping ( अतिव्यापता का सिध्दान्त )-
-इसके अंतर्गत प्रथम सूची और द्वितीय सूची के बीच अतिव्यापता की स्थिति में प्रथम सूची की वरीयता।
-सूची-1 और सूची-3 के मध्य संघर्ष की स्थिति में सूची 1 को प्राथमिकता।
-सूची-2 और सूची-3 के मध्य सूची 3 की प्राथमिकता।
6)Doctrine of Subsidiary Power( अनुसंघी शक्तियों का सिध्दांत )-
विधायिका की विषय से संबंधित अनुसंघी मामलों पर विधि निर्माण की शक्ति। यदि वह युक्तियुक्त रूप में इस विधि में निहित हो।
G. chawla vs. state of rajasthan, 1959.
7)Doctrine of Requisite land (अधिग्रहित क्षेत्र का सिद्धांत) -
समवर्ती सूची में संघीय विधि और राज्य विधि के बीच संघर्ष की स्थिति में संघ विधि को प्राथमिकता लेकिन संघर्ष नहीं होने की स्थिति में भी संघ विधि राज्य विधि राज्य विधि को शून्य कर सकती है।
8)Doctrine of Territorial Nexus ( राज्यक्षेत्रीय संबंध का सिध्दांत )-
-राज्य की विधि निर्माण की शक्ति का प्रभाव राज्य की सीमा तक ही सीमित है लेकिन राज्य विधि का विस्तार इस क्षेत्र के बाहर किसी व्यक्ति, वस्तु या गतिविधि तक हो सकती है यदि उनके बीच युक्तियुक्त संबंध हो।
-युक्तियुक्त संबंध में ऐसी विधि वैध होती है और इस संबंध को स्थापित करना संबंधित राज्य का उत्तरदायित्व है।
Sir please provide content on federal system of America
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