Saturday, 4 November 2017

~ One Day in Haridwar- A Journey For Lifetime ~

आज आपको एक दोस्त के बारे में बताता हूं जो कुछ समय पहले हरिद्वार से होकर आया है।
कहने को तो उनके परिवार में सब गायत्री दीक्षा वाले हैं लेकिन ये उन सब से हटकर है।
मैंने उससे पूछा कि हरिद्वार कैसे,कहीं इरादा गायत्री दीक्षा लेने का तो नहीं।
जवाब में उसने जो बातें बताई वही लिख रहा हूं..

उसने कहा- नहीं भाई मैं कोई दीक्षा नहीं लेने वाला, थोड़े जिंदगी के दांवपेंच तो समझ लूं पहले।
बारिश शुरू होने के कारण भीड़ कम हुई होगी यही सोचकर बस घूमने चला गया था। लेकिन पता है मैंने गंगा स्नान तक नहीं किया न ही शांतिकुंज गया.

तो हुआ यूं कि जब मैं ट्रेन से हरिद्वार को जा रहा था तो रास्ते में मुझे कुछ लोग मिले। मेरी सामने सीट में बैठे हुए थे, वे लोग बार-बार किसी आश्रमरूपी अस्पताल का जिक्र कर रहे थे। उनके साथ मैं भी आश्रम चला गया,एक दिन वहीं बिताया फिर वापस दिल्ली लौट आया।

पता है वहां एक स्वामीजी हैं बहुत ही काबिल डाक्टर हैं वही अस्पताल के प्रमुख हैं, वे एक साधु की तरह सफेद कौपीन धारण किए हुए रहते हैं किसी से ज्यादा बात नहीं करते अभी उनकी उम्र लगभग सत्तर है,लेकिन अभी भी बीस-तीस के लगते हैं।
स्वामीजी एक बंगाली डाक्टर हैं। उन्होंने कोलकाता से न्यूरोलाजी में एम.डी. किया है। शुरूआती दिनों में जब स्वामीजी ने अपनी प्रैक्टिस शुरू की,थोड़े समय में ही वे डायग्नोसिस में मास्टर बन गये। किसी पेचिंदा केस में जब उनके सीनियर डाक्टर तक फेल हो जाते तब स्वामीजी आसानी से वो केस निपटा लेते। इलाज हेतु विदेशों से उनके पास लोग आने लगे। दूसरे देशों से नौकरी के लिए बुलावा भी आया लेकिन स्वामीजी नहीं गये।

हरिद्वार में उनके एक गुरू थे,स्वामीजी उनके प्रिय शिष्यों में से थे, गुरू की मृत्यु के बाद स्वामीजी को कोलकाता से हमेशा के लिए हरिद्वार बुलाया गया, वहां आश्रम के लोगों ने सर्वसम्मति से स्वामीजी को आश्रम का प्रमुख बनाया।उस समय उनकी उम्र तीस साल के आसपास रही होगी।

पता है साल के कुछ महीने(अक्टूबर से मार्च) स्वामीजी अकेले ही बद्रीनाथ,केदारनाथ के बर्फीले पहाड़ों में ध्यान के लिए चले जाते हैं। मतलब जब लोग नीचे मैदानों की ओर आ रहे होते हैं तब वे ऊपर जाते हैं। स्वामीजी आश्रम छोड़ने से पहले अपने शिष्यों को आगाह कर देते हैं कि मेरी चिंता मत करना मैं जल्द आऊंगा लेकिन वापसी की कोई तारीख नहीं बताते। वहां पहाड़ों में किसी पुरानी झोपड़ी में गैस सिलिंडर की सहायता से आलू चना उबाल के खाते हैं, बर्फ में सब्जियों का गार्डन भी बनाते हैं और आर्मी कैम्प वालों को भी जरूरत पड़ने पर खिलाते हैं। जब ठंड बढ़ने लगती है, तो माईनस बीस डिग्री की ठंड में भी वो एक कौपीन के सहारे रह लेते हैं। पता है कैसे,जब उनकी झोपड़ी पूरी तरह बर्फ से ढंक जाती है तो इन्सुलेशन के कारण गर्माहट आने लगती है बिल्कुल उन ध्रुवीय प्रदेशों के इग्लू(एस्किमो)की तरह। पंद्रह-बीस साल तक लगातार उन्होंने ये तपस्या की और अब अधिकांश समय ध्यान करते हैं। हफ्ते में दो या तीन दिन ही लोगों से मिलते-जुलते हैं।

स्वामीजी की किसी के पास तस्वीर नहीं वो इन सब चीजों से दूर रहते हैं,यहां तक कि गूगल में भी उनकी तस्वीर या ज्यादा कोई जानकारी नहीं है, और तो और जैसे किसी असाध्य रोग का आपरेशन उनके किसी डाक्टर द्वारा ना हो पाये..वो आपरेशन ये न्यूरोलाजी वाले स्वामीजी खुद करते हैं और उनका हर एक आपरेशन सफल होता है। लोगों का और उनके अस्सिटेंट डाक्टरों का विश्वास है कि स्वामीजी में दिव्य आध्यात्मिक शक्ति है।

आश्रम में एक दानपेटी है सब अपने अपने हिसाब से दान दे सकते हैं।वहां एक बड़ा हाल है जहां सब कोई खाना खाते हैं,खाना खाने के बाद बर्तन स्वयं को धोना पड़ता है। हर साल जून के पहले हफ्ते में शिविर का आयोजन होता है, जिसमें विदेशों से डाक्टर आते हैं और सबका मुफ्त इलाज होता है।ऐसे शिविरों का आयोजन समय समय पर होता रहता है।स्वामीजी के अस्पताल में देश विदेश से लोग बड़ी संख्या में इलाज कराने आते हैं, आश्रम में कैंसर,ह्रदय रोग जैसी बहुत सी बीमारियों का इलाज होता है बहुत से स्पेशलिस्ट डाक्टरों की एक टीम है।स्वामीजी गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं और अमीरों से मोटी फीस लेते हैं।
सच कहूं तो हरिद्वार के सारे मंदिरों से कहीं ज्यादा सुकून उस अस्पताल में है।

Har ki Pauri, Haridwar, Uttarakhand


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