• भारत में संवैधानिक विकास -
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-
• रेग्यूलेटिंग एक्ट 1773-
रेग्युलेटिंग एक्ट लाने के कारण:-
1) कंपनी की खराब वित्तीय स्थिति।
2) कंपनी के अधिकारियों का भ्रष्टाचार।
3) युध्द नीतियां।
उद्देश्य :-
1)ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश संसद में उठाया गया यह प्रथम कदम था।
2)इसके द्वारा कंपनी के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों को मान्यता मिली।
3)इसके द्वारा भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गई।
विशेषताएं :-
1)कंपनी के समस्त भारतीय क्षेत्रों को एक सूत्र में बांधने के लिए बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंगस को गवर्नर जनरल बनाया गया।
2)मद्रास और मुंबई के गवर्नर, गवर्नर जनरल के अधीन लाए गए।
3)इसे प्रांतीय सरकारों पर नियंत्रण का अधिकार दिया गया।
4)कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट बनाया गया। 1774 में प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर इलीजा इंपे बनाये गये।
5)गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों की कार्यकारिणी समिति बनाई गई।
6)इस एक्ट के तहत कंपनी के व्यापारियों को निजी व्यापार करने और भारतीयों पर उपहार व रिश्वत को प्रतिबंधित किया गया।
7)इसके द्वारा ब्रिटिश सरकार का Court of Directors(कंपनी की कार्यकारी इकाई) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण स्थापित किया गया।
• 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट-
इसके आने से पहले दो बिल प्रस्तुत थे:-
नवंबर 1783- फाक्स
अप्रैल 1783- इंडास
विशेषताएं-
1)कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों को अलग-अलग किया गया।
2)Board of Director कंपनी के व्यापारिक मामलों के लिए और Board of Controller राजनीतिक मामलों के लिए नियुक्त हुए।
3)दोहरा प्रशासन शुरू हुआ।
4)यह अधिनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण था-
a)भारत के कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार "ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र" कहा गया।
b)ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया।
• 1786 का अधिनियम -
लार्ड कार्नवालिस को भारतीय फौज का सेनापति बनाया गया। इसे अपने उत्तरदायित्व के लिए अपने Council के विरुद्ध निर्णय ले सके।
• 1793 का रेग्युलेटिंग एक्ट -
कारण:-
a)प्रति 20 वर्ष के बाद कंपनी के विशेषाधिकारों में कमी किया जाना।
b)1793 से 1853 तक चार्टर एक्ट पारित किए गए।
विशेषता:-
1)गवर्नर जनरल को अपनी कार्यकारिणी में से किसी एक को उपप्रधान नियुक्त करने की अनुमति दी गई।
2)बोर्ड आफ कंट्रोलर के सदस्यों और अधिकारियों का वेतन भारतीय राजस्व से किया जाना तय किया गया।
• 1813 का चार्टर एक्ट -
-कंपनी के अधिकार पत्र को 20 वर्ष पुनः बढ़ाया गया।
-भारत के साथ व्यापार के एकाधिकार को छिन लिया।
-चीन और अन्य पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक एकाधिकार बना रहा।
-भारतीय व्यापार सभी ब्रिटिश के लिए खोल दिया गया।(सीमित अधिकारों के साथ खोला गया)।
• 1833 का चार्टर एक्ट -
-चीन और पूर्वी देशों के साथ एकाधिकार को समाप्त कर दिया अर्थात् अब कंपनी अब एक व्यापारिक निगम बनकर रह गई थी।
-अधिनियम करे द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल भारत के प्रथम गवर्नर जनरल(विलियम बैंटिक)बने।
-गवर्नर को नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित की गई।
-भारत में प्रशासनिक कार्यों का केन्द्रीकरण कर दिया गया।
-इसके अंतर्गत पहले बनाये गये कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नये कानूनों को अधिनियम कहा गया।
-बोर्ड आफ कंट्रोलर को प्रधान भारतीय मामलों का मंत्री बनाया गया।
-भारत में कानूनों का वर्गीकरण किया गया।
-इसके लिए एक विधि आयोग बनाया गया।
-सरकारी नौकरियों में भेदभाव समाप्त किया गया।
-सरकारी नौकरियों के चयन के लिए प्रयास किया गया।(असफल)
-1843 में लार्ड ऐलेन द्वारा दास प्रथा बन्द किया।
• 1853 का चार्टर एक्ट -
-पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी और प्रशासनिक कार्यों को अलग किया गया।
-सिविल सेवकों की भर्ती और चयन हेतु खुली प्रतियोगी व्यवस्था का आयोजन किया।(इसके लिए 1854 में मैकाले समिति नियुक्त की गई थी।)
-इस अधिनियम द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि कंपनी का शासन कभी भी खत्म किया जा सकता है।
-पहली बार भारत के लिए पृथक विधायी परिषद(छोटी संसद के समान) बनाई गई।
-सिविल सेवा में नामजदगी के सिद्धांत को खत्म किया गया।
• महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र, 1858 -
-भारत ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत।
-नवंबर 1858 को ब्रिटेन के सम्राट ने भारत का शासन अपने हाथ में लिया।
-गवर्नर जनरल को वायसराय आफ इंडिया कहा जाएगा।(लार्ड कैनिंग पहले वायसराय)
- देशी रियासत- Viceroy of India
- ब्रिटिश प्रांत- Governor General of India
- इस घोषणा के द्वारा अब ब्रिटिश सरकार भारतीय मामलों के लिए प्रत्यक्ष उत्तरदायी हो गई।
- इसमें यह कहा गया कि भविष्य में कोई भारतीय राज्य ब्रिटेन में नहीं मिलाया जाएगा।
- भारतीय रजवाड़ों को यथास्थिति बनाये रखने की बात कही गई।
- भारतीय सैनिकों और यूरोपीय सैनिकों का अनुपात घटाकर 2:1 किया गया।
- भारत की देखभाल के लिए एक नये अधिकारी की नियुक्ति की गई।और इसकी सहायता के लिए एक 15 सदस्यीय मंत्रणा परिषद बनाई गई।
- क्राउन को प्रांतो के गवर्नर और वायसराय की नियुक्ति का अधिकार दिया गया।
- भारत सचिव ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था और वेतन भारतीय राजस्व से लेता था।
• 1861 का भारत परिषद अधिनियम -
- भारत में विभागीय और मंत्रिमंडलीय प्रणाली की नींव रखी गयी।
- अधिनियम द्वारा ब्रिटिश सरकार ने वायसराय और प्रांतों के गवर्नर के अधिकार बड़ा दिए।
- बंगाल और मद्रास की सरकारों को व्यवस्थापन का अधिकार दिया गया।
- लार्ड कैनिंग द्वारा Portfolio(समविभागीय) व्यवस्था आरंभ किया गया।
- वायसराय को विपत्ति में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
नोट- 28 अप्रैल 1876 को महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित किया गया।
• भारत परिषद अधिनियम 1892 -
-यह 1861 के अधिनियम का संशोधनात्मक प्रारूप था।
-इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण अंग निर्वाचन पद्धति का आरंभ था।
-व्यवस्थापिकाओं में प्रतिबंधित ,सीमित एवं अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों का प्रावधान किया गया।
-इन निर्वाचित सदस्यों को मनोनीत की संज्ञा दी जाती थी।
-सार्वजनिक हित के मामलों में 6 दिन की सूचना देकर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
-बजट पर विचार विमर्श करने का अधिकार, प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।(पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं दिया गया)
-यह अधिनियम भारत में संसदीय व्यवस्था का आरंभ कहा जा सकता है।
• भारत परिषद् अधिनियम 1909, मार्ले-मिंटो सुधार अधिनियम-
कारण:-
a)इसका लक्ष्य 1892 के अधिनियम के दोषों को दूर करना, भारतीय राजनीति में बढ़ते उग्रवाद और क्रांतिकारी राष्ट्रवाद से उत्पन्न स्थितियों का सामना करना था।
b)लार्ड कर्जन द्वारा अपनाई गई नीतियां Calcutta corporation act, indian university act, Bengal partition आदि कारण 1909 की पॄष्ठभूमि में थे।
c) इसके पीछे इनकी यह इच्छा विद्यमान थी कि कांग्रेस के कारण अथवा उदारवादी नेताओं को प्रसन्न किया जाए तथा सांप्रदायिकता की भावना को दृढ़ करके उग्रवाद और क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की शक्तियों का दमन किया जा सके।
1909 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं -
1.विधानपरिषद् की सदस्य संख्या बढ़ाकर 69 कर दी गई। 37 शासकीय और 32 गैर सरकारी सदस्य।
2.प्रथम बार जाती, धर्म, वर्ग आदि के आधार पर पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाने का प्रावधान किया गया। मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाए गये।
3.प्रतिनिधित्व के आधार पर विधानपरिषदों में निर्वाचन प्रणाली लागू की गई। चुनाव के लिए तीन प्रकार के निर्वाचक मंडलों का गठन किया गया:-
a)साधारण निर्वाचक मंडल
b)वर्ग विशेष
c)विशेष निर्वाचक मंडल
4.दो भारतीयों के.सी. गुप्ता और सैय्यद हुसैन बिलग्रामी को इंग्लैण्ड स्थित भारत परिषद में नियुक्त किया गया।
5.वोट देने का अधिकार भी उन्हीं लोगों को दिया गया जिनकी वार्षिक आय 15000 रुपए या 10000 रुपए लगान के रूप में देते थे।
नोट- बंगाल में केवल वे लोग वोट दे सकते थे जिन्हें राजा या नवाब की उपाधि थी।
6.पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया, यह भी वही पूछ सकता था जिसने मुख्य प्रश्न पूछा हो।
7.कार्यकारिणी परिषदों में भारतीयों की नियुक्ति।
8.एस.पी. सिन्हा गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के प्रथम विधि सदस्य नियुक्त किए गए।
Marlene ने कहा -
याद रखना पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाकर ऐसे बीज बो रहे हैं जिसकी फसल बहुत कड़वी होगी।
• 1919 का भारत शासन अधिनियम -
(मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम)
पृष्ठभूमि -
1)ब्रिटिश सरकार की नीतियों के प्रति भारतीय जनता का असंतोष।
2)होमरूल लीग आंदोलन से उत्पन्न जागरूकता।
3)प्रथम विश्व युध्द में भारतीयों के सक्रिय सहयोग को प्राप्त करना।
4)20 अगस्त 1917 तात्कालीन सचिव मांटेग्यू की घोषणा जिसमें चार वाक्यों का उल्लेख था-
a)ब्रिटिश शासन का भारत में स्वशासन को विकसित करना था।
b)स्वशासन तुरंत न देकर चरणों में दिया जाएगा।
c)विभिन्न चरणों का निर्धारण भारतीयों द्वारा स्वशासन की दिशा में की गई प्रगति पर निर्भर था।
d)प्रगति के विषय में निर्धारण ब्रिटिश संसद और भारत सरकार द्वारा दिया जाना था।
नोट:- यह प्रथम भारतीय घोषणा थी जिसके द्वारा भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अन्य डोमिनियन की तरह स्वतंत्र डोमिनियन की स्थिति प्रदान करना प्रस्तावित था।
अधिनियम की विशेषताएं-
1) मांटेग्यू की घोषणा को एक प्रस्तावना का रूप दिया गया।
2)भारत सचिव के कार्यभार को कम करने के लिए कमिश्नर की नियुक्ति की गई।
3)केन्द्रीय स्तर पर पहली बार द्विसदनात्मक विधानमण्डल की स्थापना- पहला राज्य परिषद जिसमें 60 सदस्य दूसरा विधानसभा जिसमें 145 सदस्य।
4)निम्न सदन का कार्यकाल 3 वर्ष और उच्च सदन का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया।
5)सांप्रदायिक चुनाव क्षेत्रों को और व्यापक बनाया गया।
6)वही लोग मत दे सकते थे जो निश्चित राशि कर के रूप में देते थे।
7)प्रांतों में द्वैध शासन(अर्थात हस्तांतरित और आरक्षित विषयों के माध्यम से) स्थापना।
8)द्वैध शासन का जन्मदाता लियोनिल कार्टिस था।
9)अधिनियम में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। (प्रांतों में 16 वर्षों तक चला)
द्वैध शासन की असफलता के कारण-
1)सैद्धांतिक रूप से दोषपूर्ण व्यवस्था थी।
2)हस्तांतरित विषयों का दोषपूर्ण वर्गीकरण था।
3)इसमें गवर्नर का विशिष्ट स्थान होता था।
4)उत्तरदायित्व का अभाव था।
5)वित्त एक आरक्षित विषय था।
6)लोक सेवाओं का विशिष्ट स्थान था।
• भारत शासन अधिनियम 1935 -
1) भारत के लिए तैयार किए गए संवैधानिक प्रस्तावों में यह अंतिम था।
2)1919 के अधिनियम का यह प्रावधान था कि भारतीय राजनीतिक परिस्थितियों का प्रति दस वर्ष बाद समीक्षा होगी। इसी आधार पर 2 वर्ष पूर्व ही साइमन कमीशन 1927 में बनाया गया। (1+7 , White Man Commission)
3)सर्वदलीय कांफ्रेस में नेहरू रिपोर्ट का प्रस्तुतीकरण।
4)साइमन कमीशन की रिपोर्ट, नेहरू रिपोर्ट।
5)तीन गोलमेज सम्मेलन।
6)ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत श्वेत पत्र। इसी श्वेत पत्र द्वारा 1935 में भारत शासन अधिनियम लाया गया।
विशेषताएँ -
1)एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान, इसमें 11 ब्रिटिश प्रांत, 6 चीफ कमीश्नरी क्षेत्र और स्वेच्छा से सम्मिलित होने वाली देशी रियासतें।
2)देशी रियासतों की निर्धारित संख्या ने संघ में शामिल होना स्वीकार नहीं किया अतः अधिनियम द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना क्रियान्वित नहीं हो सकी।
3)प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर केन्द्रों में द्वैध शासन लाया गया।
4)सबसे विस्तृत और जटिल खंड का इसमें 14 भाग, 321 धाराएं, 10 अनुसूचियां थी।
5)शक्तियों के विभाजन के लिए, विषय के विभाजन की तीन सूचियां बनाई गई-
a)संघीय सूची- इसमें 59 विषय थे।
b)राज्य सूची- इसमें 54 विषय थे।
c)समवर्ती सूची- इसमें 36 विषय थे।
6)केन्द्रीय विधानसभा और राज्य की सदस्य संख्या बढ़ाकर 375 और 260 कर दी गई।
7)मताधिकार का आविष्कार किया गया।
8)1935 में RBI का गठन किया गया- भारत का केन्द्रीय बैंक(Apex Bank), 1934 में इसका प्रस्ताव लाया गया।
9)दिल्ली में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान।(1 अक्टूबर 1937)
10)बर्मा, अदन, म्यांमार, बरार को भारतीय संघ से अलग किया।
11)भारतीय परिषद का अंत कर दिया गया।
12)अवशिष्ट अधिकार गवर्नर को दिए गए।
• भारत स्वतंत्रता अधिनियम (1947) :-
1) 5 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत व पारित।
2) 18 जुलाई को सम्राट की अनुमति।
3) 15 अगस्त 1947 से यह लागू कर दिया गया।
प्रमुख प्रावधान-
a)15 अगस्त 1947 को दो डोमोनियन स्टेट भारत और पाकिस्तान बना।
b)दोनों राज्यों की सीमा, सीमा आयोग द्वारा निर्धारित होगी।
c)दोनों देश अपने लिए संविधान का निर्माण कर सकते हैं और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने का अधिकार होगा।
d)जब तक संविधान नहीं बन जाता तब तक 1935 का भारत शासन अधिनियम ही लागू होगा।
e)ब्रिटेन का सम्राट अब भारत का सम्राट नहीं होगा।
f)ब्रिटिश सरकार 15 अगस्त 1947 के बाद दोनों राज्यों पर कोई अधिकार नहीं रखेगी।
g)सिविल सेवकों की सेवाएं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी पद में बने रहेंगे।
• संविधान का निर्माण और संविधान सभा-
सबसे पहले 1922 में गांधीजी ने स्वराज का अर्थ बताते हुए कहा था कि भारतीय ही भारतीयों के लिए संविधान बनायेंगे। 1923 में तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें कामनवेल्थ आफ इंडिया बिल प्रस्तुत किया गया, यह संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा तैयार करने का एक प्रमुख प्रयास था।
-1927 कांग्रेस का बंबई अधिवेशन
मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत, भारत के लिए संविधान निर्माण का आह्वान किया गया।
-10 अगस्त 1928 को मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत नेहरू रिपोर्ट यह संविधान निर्माण का प्रथम प्रयास था।
- साम्यवादी नेता एम.एन. राय द्वारा 1934 में संविधान सभा के निर्माण की प्रथम औपचारिक मांग की गई।
- भारत शासन अधिनियम 1937, संविधान सभा की मांग को बल प्रदान किया गया।
- 1936 = कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन घोषणा किसी बाह्य सत्ता द्वारा थोपा गया संविधान स्वीकार नहीं किया जाएगा।
- 1940 = पहली बार ब्रिटिश सरकार शर्तों के साथ अगस्त प्रस्ताव में संविधान सभा के मांग को आधिकारिक रूप से पेश किया।
- 1942 = क्रिप्स प्रस्ताव, जुलाई 1945 में इंग्लैण्ड में चुनाव, लेबर पार्टी विजयी, क्लिमेंट एटली प्रधानमंत्री बने।
- 1946 = कैबिनेट मिशन संविधान सभा में भेजा गया।
- संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 अस्थायी अध्यक्ष वरिष्ठता के तौर पर सच्चिदानन्द सिन्हा बनाये गये।
- 11 दिसंबर 1946 बाबू राजेन्द्र स्थायी अध्यक्ष बनाये गये।
-13 दिसंबर 1946 को उद्देश्य प्रस्ताव देते हैं।
- 22 जनवरी 1947 को उद्देश्य प्रस्ताव पारित होता है।
- उद्देशिका का प्रारूप संविधान सभा के संवैधानिक सभाकार बी. एन. ने दिया।
- संविधान सभा ने विभिन्न समितियों के माध्यम से कार्य किया।
- 29 अगस्त 1947 को डा. भीमराव अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
- संविधान का तृतीय वाचन 14 नवंबर 1949 से प्रारंभ होकर 26 नवंबर 1949 को खत्म हुआ।
- संविधान निर्माण में 2 वर्ष ,11 माह,18 दिन, 64लाख रुपए और लगभग 60 देशों के संविधान का अध्ययन।
• संविधान सभा:-
1945 का चुमाव-घोषणापत्र
1)केन्द्रीय विधानसभा के चुनाव- 11 प्रांतों में 8 प्रांतों में कांग्रेस को बहुमत, 24 अगस्त 1946 को अंतरिम सरकार को स्थापना।
2)वायसराय इस कार्यकारिणी परिषद् का अध्यक्ष जबकि पं. नेहरू इस कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष बनाये गये।
• प्रथम लोकसभा चुनाव 1952 :-
संविधान सभा का निर्माण -
1) जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आबंटन।
2)प्रति दस लाख की जनता में एक प्रतिनिधि चुना जाएगा।
3)चुनाव, आनुपातिक प्रतिनिधित्व, एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा गुप्त मतदान तरीके से अप्रत्यक्ष रूप से हुआ।
4)ब्रिटिश प्रांत से 292- देशी रियासतों से 93 और 4 चीफ कमिश्नरी क्षेत्रों से देशी रियासतों के प्रतिनिधि हेतु चुनाव पद्धति उनके परामर्श से की गई।
5)प्रांत की सीटों को मुस्लिम, सिख और सामान्य तीन समुदायों में जनसंख्या के आधार पर बांटा गया।
6)संविधान निर्माण निकाय की कुल सदस्य संख्या- 389
7)चार चीफ कमिश्नरी क्षेत्र- दिल्ली, अजमेर राइफल मारवाड़, कुर्ग(कर्नाटक)।
8)296 सीट पर 1946 में चुनाव हुआ।
9) 3 जून 1947 मनबाटन योजना(lord mount batten plan) के बाद भारतीय संविधान में सदस्य संख्या- 299(229 प्रांतों से और 70 देशी रियासतों से)।
10)26 नवंबर 1949 को 284 सदस्यों ने संविधान में हस्ताक्षर किया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-
• रेग्यूलेटिंग एक्ट 1773-
रेग्युलेटिंग एक्ट लाने के कारण:-
1) कंपनी की खराब वित्तीय स्थिति।
2) कंपनी के अधिकारियों का भ्रष्टाचार।
3) युध्द नीतियां।
उद्देश्य :-
1)ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश संसद में उठाया गया यह प्रथम कदम था।
2)इसके द्वारा कंपनी के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों को मान्यता मिली।
3)इसके द्वारा भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गई।
विशेषताएं :-
1)कंपनी के समस्त भारतीय क्षेत्रों को एक सूत्र में बांधने के लिए बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंगस को गवर्नर जनरल बनाया गया।
2)मद्रास और मुंबई के गवर्नर, गवर्नर जनरल के अधीन लाए गए।
3)इसे प्रांतीय सरकारों पर नियंत्रण का अधिकार दिया गया।
4)कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट बनाया गया। 1774 में प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर इलीजा इंपे बनाये गये।
5)गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों की कार्यकारिणी समिति बनाई गई।
6)इस एक्ट के तहत कंपनी के व्यापारियों को निजी व्यापार करने और भारतीयों पर उपहार व रिश्वत को प्रतिबंधित किया गया।
7)इसके द्वारा ब्रिटिश सरकार का Court of Directors(कंपनी की कार्यकारी इकाई) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण स्थापित किया गया।
• 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट-
इसके आने से पहले दो बिल प्रस्तुत थे:-
नवंबर 1783- फाक्स
अप्रैल 1783- इंडास
विशेषताएं-
1)कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों को अलग-अलग किया गया।
2)Board of Director कंपनी के व्यापारिक मामलों के लिए और Board of Controller राजनीतिक मामलों के लिए नियुक्त हुए।
3)दोहरा प्रशासन शुरू हुआ।
4)यह अधिनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण था-
a)भारत के कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार "ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र" कहा गया।
b)ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया।
• 1786 का अधिनियम -
लार्ड कार्नवालिस को भारतीय फौज का सेनापति बनाया गया। इसे अपने उत्तरदायित्व के लिए अपने Council के विरुद्ध निर्णय ले सके।
• 1793 का रेग्युलेटिंग एक्ट -
कारण:-
a)प्रति 20 वर्ष के बाद कंपनी के विशेषाधिकारों में कमी किया जाना।
b)1793 से 1853 तक चार्टर एक्ट पारित किए गए।
विशेषता:-
1)गवर्नर जनरल को अपनी कार्यकारिणी में से किसी एक को उपप्रधान नियुक्त करने की अनुमति दी गई।
2)बोर्ड आफ कंट्रोलर के सदस्यों और अधिकारियों का वेतन भारतीय राजस्व से किया जाना तय किया गया।
• 1813 का चार्टर एक्ट -
-कंपनी के अधिकार पत्र को 20 वर्ष पुनः बढ़ाया गया।
-भारत के साथ व्यापार के एकाधिकार को छिन लिया।
-चीन और अन्य पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक एकाधिकार बना रहा।
-भारतीय व्यापार सभी ब्रिटिश के लिए खोल दिया गया।(सीमित अधिकारों के साथ खोला गया)।
• 1833 का चार्टर एक्ट -
-चीन और पूर्वी देशों के साथ एकाधिकार को समाप्त कर दिया अर्थात् अब कंपनी अब एक व्यापारिक निगम बनकर रह गई थी।
-अधिनियम करे द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल भारत के प्रथम गवर्नर जनरल(विलियम बैंटिक)बने।
-गवर्नर को नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित की गई।
-भारत में प्रशासनिक कार्यों का केन्द्रीकरण कर दिया गया।
-इसके अंतर्गत पहले बनाये गये कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नये कानूनों को अधिनियम कहा गया।
-बोर्ड आफ कंट्रोलर को प्रधान भारतीय मामलों का मंत्री बनाया गया।
-भारत में कानूनों का वर्गीकरण किया गया।
-इसके लिए एक विधि आयोग बनाया गया।
-सरकारी नौकरियों में भेदभाव समाप्त किया गया।
-सरकारी नौकरियों के चयन के लिए प्रयास किया गया।(असफल)
-1843 में लार्ड ऐलेन द्वारा दास प्रथा बन्द किया।
• 1853 का चार्टर एक्ट -
-पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी और प्रशासनिक कार्यों को अलग किया गया।
-सिविल सेवकों की भर्ती और चयन हेतु खुली प्रतियोगी व्यवस्था का आयोजन किया।(इसके लिए 1854 में मैकाले समिति नियुक्त की गई थी।)
-इस अधिनियम द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि कंपनी का शासन कभी भी खत्म किया जा सकता है।
-पहली बार भारत के लिए पृथक विधायी परिषद(छोटी संसद के समान) बनाई गई।
-सिविल सेवा में नामजदगी के सिद्धांत को खत्म किया गया।
• महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र, 1858 -
-भारत ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत।
-नवंबर 1858 को ब्रिटेन के सम्राट ने भारत का शासन अपने हाथ में लिया।
-गवर्नर जनरल को वायसराय आफ इंडिया कहा जाएगा।(लार्ड कैनिंग पहले वायसराय)
- देशी रियासत- Viceroy of India
- ब्रिटिश प्रांत- Governor General of India
- इस घोषणा के द्वारा अब ब्रिटिश सरकार भारतीय मामलों के लिए प्रत्यक्ष उत्तरदायी हो गई।
- इसमें यह कहा गया कि भविष्य में कोई भारतीय राज्य ब्रिटेन में नहीं मिलाया जाएगा।
- भारतीय रजवाड़ों को यथास्थिति बनाये रखने की बात कही गई।
- भारतीय सैनिकों और यूरोपीय सैनिकों का अनुपात घटाकर 2:1 किया गया।
- भारत की देखभाल के लिए एक नये अधिकारी की नियुक्ति की गई।और इसकी सहायता के लिए एक 15 सदस्यीय मंत्रणा परिषद बनाई गई।
- क्राउन को प्रांतो के गवर्नर और वायसराय की नियुक्ति का अधिकार दिया गया।
- भारत सचिव ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था और वेतन भारतीय राजस्व से लेता था।
• 1861 का भारत परिषद अधिनियम -
- भारत में विभागीय और मंत्रिमंडलीय प्रणाली की नींव रखी गयी।
- अधिनियम द्वारा ब्रिटिश सरकार ने वायसराय और प्रांतों के गवर्नर के अधिकार बड़ा दिए।
- बंगाल और मद्रास की सरकारों को व्यवस्थापन का अधिकार दिया गया।
- लार्ड कैनिंग द्वारा Portfolio(समविभागीय) व्यवस्था आरंभ किया गया।
- वायसराय को विपत्ति में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
नोट- 28 अप्रैल 1876 को महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित किया गया।
• भारत परिषद अधिनियम 1892 -
-यह 1861 के अधिनियम का संशोधनात्मक प्रारूप था।
-इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण अंग निर्वाचन पद्धति का आरंभ था।
-व्यवस्थापिकाओं में प्रतिबंधित ,सीमित एवं अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों का प्रावधान किया गया।
-इन निर्वाचित सदस्यों को मनोनीत की संज्ञा दी जाती थी।
-सार्वजनिक हित के मामलों में 6 दिन की सूचना देकर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
-बजट पर विचार विमर्श करने का अधिकार, प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।(पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं दिया गया)
-यह अधिनियम भारत में संसदीय व्यवस्था का आरंभ कहा जा सकता है।
• भारत परिषद् अधिनियम 1909, मार्ले-मिंटो सुधार अधिनियम-
कारण:-
a)इसका लक्ष्य 1892 के अधिनियम के दोषों को दूर करना, भारतीय राजनीति में बढ़ते उग्रवाद और क्रांतिकारी राष्ट्रवाद से उत्पन्न स्थितियों का सामना करना था।
b)लार्ड कर्जन द्वारा अपनाई गई नीतियां Calcutta corporation act, indian university act, Bengal partition आदि कारण 1909 की पॄष्ठभूमि में थे।
c) इसके पीछे इनकी यह इच्छा विद्यमान थी कि कांग्रेस के कारण अथवा उदारवादी नेताओं को प्रसन्न किया जाए तथा सांप्रदायिकता की भावना को दृढ़ करके उग्रवाद और क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की शक्तियों का दमन किया जा सके।
1909 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं -
1.विधानपरिषद् की सदस्य संख्या बढ़ाकर 69 कर दी गई। 37 शासकीय और 32 गैर सरकारी सदस्य।
2.प्रथम बार जाती, धर्म, वर्ग आदि के आधार पर पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाने का प्रावधान किया गया। मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाए गये।
3.प्रतिनिधित्व के आधार पर विधानपरिषदों में निर्वाचन प्रणाली लागू की गई। चुनाव के लिए तीन प्रकार के निर्वाचक मंडलों का गठन किया गया:-
a)साधारण निर्वाचक मंडल
b)वर्ग विशेष
c)विशेष निर्वाचक मंडल
4.दो भारतीयों के.सी. गुप्ता और सैय्यद हुसैन बिलग्रामी को इंग्लैण्ड स्थित भारत परिषद में नियुक्त किया गया।
5.वोट देने का अधिकार भी उन्हीं लोगों को दिया गया जिनकी वार्षिक आय 15000 रुपए या 10000 रुपए लगान के रूप में देते थे।
नोट- बंगाल में केवल वे लोग वोट दे सकते थे जिन्हें राजा या नवाब की उपाधि थी।
6.पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया, यह भी वही पूछ सकता था जिसने मुख्य प्रश्न पूछा हो।
7.कार्यकारिणी परिषदों में भारतीयों की नियुक्ति।
8.एस.पी. सिन्हा गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के प्रथम विधि सदस्य नियुक्त किए गए।
Marlene ने कहा -
याद रखना पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाकर ऐसे बीज बो रहे हैं जिसकी फसल बहुत कड़वी होगी।
• 1919 का भारत शासन अधिनियम -
(मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम)
पृष्ठभूमि -
1)ब्रिटिश सरकार की नीतियों के प्रति भारतीय जनता का असंतोष।
2)होमरूल लीग आंदोलन से उत्पन्न जागरूकता।
3)प्रथम विश्व युध्द में भारतीयों के सक्रिय सहयोग को प्राप्त करना।
4)20 अगस्त 1917 तात्कालीन सचिव मांटेग्यू की घोषणा जिसमें चार वाक्यों का उल्लेख था-
a)ब्रिटिश शासन का भारत में स्वशासन को विकसित करना था।
b)स्वशासन तुरंत न देकर चरणों में दिया जाएगा।
c)विभिन्न चरणों का निर्धारण भारतीयों द्वारा स्वशासन की दिशा में की गई प्रगति पर निर्भर था।
d)प्रगति के विषय में निर्धारण ब्रिटिश संसद और भारत सरकार द्वारा दिया जाना था।
नोट:- यह प्रथम भारतीय घोषणा थी जिसके द्वारा भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अन्य डोमिनियन की तरह स्वतंत्र डोमिनियन की स्थिति प्रदान करना प्रस्तावित था।
अधिनियम की विशेषताएं-
1) मांटेग्यू की घोषणा को एक प्रस्तावना का रूप दिया गया।
2)भारत सचिव के कार्यभार को कम करने के लिए कमिश्नर की नियुक्ति की गई।
3)केन्द्रीय स्तर पर पहली बार द्विसदनात्मक विधानमण्डल की स्थापना- पहला राज्य परिषद जिसमें 60 सदस्य दूसरा विधानसभा जिसमें 145 सदस्य।
4)निम्न सदन का कार्यकाल 3 वर्ष और उच्च सदन का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया।
5)सांप्रदायिक चुनाव क्षेत्रों को और व्यापक बनाया गया।
6)वही लोग मत दे सकते थे जो निश्चित राशि कर के रूप में देते थे।
7)प्रांतों में द्वैध शासन(अर्थात हस्तांतरित और आरक्षित विषयों के माध्यम से) स्थापना।
8)द्वैध शासन का जन्मदाता लियोनिल कार्टिस था।
9)अधिनियम में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। (प्रांतों में 16 वर्षों तक चला)
द्वैध शासन की असफलता के कारण-
1)सैद्धांतिक रूप से दोषपूर्ण व्यवस्था थी।
2)हस्तांतरित विषयों का दोषपूर्ण वर्गीकरण था।
3)इसमें गवर्नर का विशिष्ट स्थान होता था।
4)उत्तरदायित्व का अभाव था।
5)वित्त एक आरक्षित विषय था।
6)लोक सेवाओं का विशिष्ट स्थान था।
• भारत शासन अधिनियम 1935 -
1) भारत के लिए तैयार किए गए संवैधानिक प्रस्तावों में यह अंतिम था।
2)1919 के अधिनियम का यह प्रावधान था कि भारतीय राजनीतिक परिस्थितियों का प्रति दस वर्ष बाद समीक्षा होगी। इसी आधार पर 2 वर्ष पूर्व ही साइमन कमीशन 1927 में बनाया गया। (1+7 , White Man Commission)
3)सर्वदलीय कांफ्रेस में नेहरू रिपोर्ट का प्रस्तुतीकरण।
4)साइमन कमीशन की रिपोर्ट, नेहरू रिपोर्ट।
5)तीन गोलमेज सम्मेलन।
6)ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत श्वेत पत्र। इसी श्वेत पत्र द्वारा 1935 में भारत शासन अधिनियम लाया गया।
विशेषताएँ -
1)एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान, इसमें 11 ब्रिटिश प्रांत, 6 चीफ कमीश्नरी क्षेत्र और स्वेच्छा से सम्मिलित होने वाली देशी रियासतें।
2)देशी रियासतों की निर्धारित संख्या ने संघ में शामिल होना स्वीकार नहीं किया अतः अधिनियम द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय संघ की योजना क्रियान्वित नहीं हो सकी।
3)प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर केन्द्रों में द्वैध शासन लाया गया।
4)सबसे विस्तृत और जटिल खंड का इसमें 14 भाग, 321 धाराएं, 10 अनुसूचियां थी।
5)शक्तियों के विभाजन के लिए, विषय के विभाजन की तीन सूचियां बनाई गई-
a)संघीय सूची- इसमें 59 विषय थे।
b)राज्य सूची- इसमें 54 विषय थे।
c)समवर्ती सूची- इसमें 36 विषय थे।
6)केन्द्रीय विधानसभा और राज्य की सदस्य संख्या बढ़ाकर 375 और 260 कर दी गई।
7)मताधिकार का आविष्कार किया गया।
8)1935 में RBI का गठन किया गया- भारत का केन्द्रीय बैंक(Apex Bank), 1934 में इसका प्रस्ताव लाया गया।
9)दिल्ली में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान।(1 अक्टूबर 1937)
10)बर्मा, अदन, म्यांमार, बरार को भारतीय संघ से अलग किया।
11)भारतीय परिषद का अंत कर दिया गया।
12)अवशिष्ट अधिकार गवर्नर को दिए गए।
• भारत स्वतंत्रता अधिनियम (1947) :-
1) 5 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत व पारित।
2) 18 जुलाई को सम्राट की अनुमति।
3) 15 अगस्त 1947 से यह लागू कर दिया गया।
प्रमुख प्रावधान-
a)15 अगस्त 1947 को दो डोमोनियन स्टेट भारत और पाकिस्तान बना।
b)दोनों राज्यों की सीमा, सीमा आयोग द्वारा निर्धारित होगी।
c)दोनों देश अपने लिए संविधान का निर्माण कर सकते हैं और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने का अधिकार होगा।
d)जब तक संविधान नहीं बन जाता तब तक 1935 का भारत शासन अधिनियम ही लागू होगा।
e)ब्रिटेन का सम्राट अब भारत का सम्राट नहीं होगा।
f)ब्रिटिश सरकार 15 अगस्त 1947 के बाद दोनों राज्यों पर कोई अधिकार नहीं रखेगी।
g)सिविल सेवकों की सेवाएं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी पद में बने रहेंगे।
• संविधान का निर्माण और संविधान सभा-
सबसे पहले 1922 में गांधीजी ने स्वराज का अर्थ बताते हुए कहा था कि भारतीय ही भारतीयों के लिए संविधान बनायेंगे। 1923 में तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें कामनवेल्थ आफ इंडिया बिल प्रस्तुत किया गया, यह संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा तैयार करने का एक प्रमुख प्रयास था।
-1927 कांग्रेस का बंबई अधिवेशन
मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत, भारत के लिए संविधान निर्माण का आह्वान किया गया।
-10 अगस्त 1928 को मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत नेहरू रिपोर्ट यह संविधान निर्माण का प्रथम प्रयास था।
- साम्यवादी नेता एम.एन. राय द्वारा 1934 में संविधान सभा के निर्माण की प्रथम औपचारिक मांग की गई।
- भारत शासन अधिनियम 1937, संविधान सभा की मांग को बल प्रदान किया गया।
- 1936 = कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन घोषणा किसी बाह्य सत्ता द्वारा थोपा गया संविधान स्वीकार नहीं किया जाएगा।
- 1940 = पहली बार ब्रिटिश सरकार शर्तों के साथ अगस्त प्रस्ताव में संविधान सभा के मांग को आधिकारिक रूप से पेश किया।
- 1942 = क्रिप्स प्रस्ताव, जुलाई 1945 में इंग्लैण्ड में चुनाव, लेबर पार्टी विजयी, क्लिमेंट एटली प्रधानमंत्री बने।
- 1946 = कैबिनेट मिशन संविधान सभा में भेजा गया।
- संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 अस्थायी अध्यक्ष वरिष्ठता के तौर पर सच्चिदानन्द सिन्हा बनाये गये।
- 11 दिसंबर 1946 बाबू राजेन्द्र स्थायी अध्यक्ष बनाये गये।
-13 दिसंबर 1946 को उद्देश्य प्रस्ताव देते हैं।
- 22 जनवरी 1947 को उद्देश्य प्रस्ताव पारित होता है।
- उद्देशिका का प्रारूप संविधान सभा के संवैधानिक सभाकार बी. एन. ने दिया।
- संविधान सभा ने विभिन्न समितियों के माध्यम से कार्य किया।
- 29 अगस्त 1947 को डा. भीमराव अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
- संविधान का तृतीय वाचन 14 नवंबर 1949 से प्रारंभ होकर 26 नवंबर 1949 को खत्म हुआ।
- संविधान निर्माण में 2 वर्ष ,11 माह,18 दिन, 64लाख रुपए और लगभग 60 देशों के संविधान का अध्ययन।
• संविधान सभा:-
1945 का चुमाव-घोषणापत्र
1)केन्द्रीय विधानसभा के चुनाव- 11 प्रांतों में 8 प्रांतों में कांग्रेस को बहुमत, 24 अगस्त 1946 को अंतरिम सरकार को स्थापना।
2)वायसराय इस कार्यकारिणी परिषद् का अध्यक्ष जबकि पं. नेहरू इस कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष बनाये गये।
• प्रथम लोकसभा चुनाव 1952 :-
संविधान सभा का निर्माण -
1) जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आबंटन।
2)प्रति दस लाख की जनता में एक प्रतिनिधि चुना जाएगा।
3)चुनाव, आनुपातिक प्रतिनिधित्व, एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा गुप्त मतदान तरीके से अप्रत्यक्ष रूप से हुआ।
4)ब्रिटिश प्रांत से 292- देशी रियासतों से 93 और 4 चीफ कमिश्नरी क्षेत्रों से देशी रियासतों के प्रतिनिधि हेतु चुनाव पद्धति उनके परामर्श से की गई।
5)प्रांत की सीटों को मुस्लिम, सिख और सामान्य तीन समुदायों में जनसंख्या के आधार पर बांटा गया।
6)संविधान निर्माण निकाय की कुल सदस्य संख्या- 389
7)चार चीफ कमिश्नरी क्षेत्र- दिल्ली, अजमेर राइफल मारवाड़, कुर्ग(कर्नाटक)।
8)296 सीट पर 1946 में चुनाव हुआ।
9) 3 जून 1947 मनबाटन योजना(lord mount batten plan) के बाद भारतीय संविधान में सदस्य संख्या- 299(229 प्रांतों से और 70 देशी रियासतों से)।
10)26 नवंबर 1949 को 284 सदस्यों ने संविधान में हस्ताक्षर किया।
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