रफ काॅपी - Part 4
लगभग महीने भर के बाद ----
अनिरूद्ध - हैलो, शालिनी कैसी हो? मैं बोल रहा हूं अनिरूद्ध।
शालिनी(गुस्से में) - ठीक हूं। फोन रखो। क्यों काॅल किया?
अनिरूद्ध - मैं तुम्हारे शहर में हूं।
शालिनी - पर मैं नहीं हूं।
अनिरूद्ध - सच कह रही हो? मैंने तो तुम्हें देखा आज।
शालिनी - किसी और को देखा होगा। मैं मौसी के घर हूं।
अनिरूद्ध - अच्छा! फिर वो स्कार्फ में कौन था?
शालिनी - कहा न मैं नहीं हूं अभी हिमाचल में। खामखां तुम्हें गलतफहमी हो रही है।
अनिरूद्ध - ओ! सुनो स्कार्फ डालकर घूमने वाली, तुम्हारी आंखें अभी भी पहचानता हूं। साल भर बाद देख रहा हूं तो क्या भूल जाऊंगा। मुझे पता है तुम हिमाचल में हो।
शालिनी - हां हूं हिमाचल में। तो क्या हुआ?
अनिरूद्ध - कुछ नहीं हुआ यार। एक बात कहनी है।
शालिनी - कहो?
अनिरूद्ध - दूर हो जाओगी, छुप जाओगी, कभी दिखाई न दोगी फिर भी उस स्कार्फ का रंग कैसे बदलोगी। मैं तो उस कपड़े के रंग को आज भी पहचानता हूं। ठीक है चलो बदल लेना स्कार्फ, कोई दूसरे रंग का ले लेना, लेकिन अपनी उन आंखों को कैसे छुपाओगी जो तुम्हारी पहचान है। मैं तो उन आंखों को देखते ही पहचान लेता हूं।
शालिनी - हां तो क्या करूं, घर से निकलना छोड़ दूं। इस बात के लिए कि तुम मुझे पहचान लेते हो।
अनिरूद्ध - तुम्हें जहाँ जाना है जाओ मुझे इसमें क्या आपत्ति क्या हो सकती है, वैसे भी कुछ दिन में वापस दिल्ली लौट जाउंगा। पर मुझसे यूं झूठ तो मत बोला करो। हां अब से तुम्हें झूठ बोलना ही होगा तो कोई ऐसा तरीका ढूंढ लेना जिससे कि मैं तुम्हारी आंखें भी ना देख पाऊं।
शालिनी - तुम आंखें न देखने की बात कहते हो। मेरा बस चले तो मैं ये स्कार्फ भी ना पहनूं। हिमाचल में वैसे भी कौन सा प्रदूषण है जो मुझे स्कार्फ की जरुरत होने लगी।
अनिरूद्ध - अच्छा! ये तो अच्छी बात है तुम्हें गलती से कभी देख लिया करूंगा मैं। मत पहनना स्कार्फ।
शालिनी - ओह! इतना आसान है क्या। तुम लोगों ने बिना स्कार्फ के घूमने लायक माहौल बनाया है हम लड़कियों के लिए जो इतनी बड़ी बात कह रहे।
अनिरूद्ध - मैं कौन होता हूं माहौल बनाने बिगाड़ने वाला। मुझे तो यही लगता है कि स्कार्फ त्वचा की सुरक्षा के लिए होता है अब ये तुम कुछ नया बता रही हो।
शालिनी - हां भई, हर कोई साल भर त्वचा की सुरक्षा के लिए ही पहनता है। हमें तो मानो जैसे कोई समस्या ही नहीं है इन घूरने वालों की बिरादरी से। तुम अपने सोच के दायरे को पर्यावरण प्रदूषण तक ही सीमित रखना। वरना भारी काम हो जाएगा। इतना मत सोचने लग जाना हमारे बारे में। होना वैसे भी कुछ नहीं है। बस कानून बनवाते रहना हम लड़कियों की सुरक्षा के लिए। बस यही कर सकते हो।
अनिरूद्ध - सुनो मैं किसी को नहीं घूरता। बिरादरी में पता कर लेना। हां मानता हूं वो एक समय था जब कभी घूर लिया करते थे पर अब ये हरकतें नहीं करता मैं, ठीक है।
शालिनी - वाह वाह! तो अपनी बिरादरी में बाकियों को भी थोड़ा गुरू मंत्र दे दिया करो।
अनिरूद्ध - सबके अपने-अपने शौक हैं, नजरिए हैं, मानसिकताओं की जकड़न है। जिसकी जैसी कंडिशनिंग होगी वे उस हिसाब से बर्ताव करें। अगर उन्हें घूरना ठीक लगता हो तो फिर मैं कौन होता हूं, मेरा औचित्य शून्य है। हां जब कभी उन्हें अटपटा लगे, वो खुद अपना सही गलत देख लें। अब इसमें मैं किसी को क्यों परेशान करूं। मैं क्यों किसी की बैचेनी बनूं। तुम इसे रहने दो। कुछ और बात करो।
शालिनी - कब जा रहे?
अनिरूद्ध - कल सुबह की बस है।
शालिनी - फिर कब आओगे?
अनिरूद्ध - पता नहीं।
शालिनी - अच्छा एक बात सच-सच बताओ, मेरे बारे में सोचते हो?
अनिरूद्ध - हां।
शालिनी - ठीक है, तुम्हें सोचना भी चाहिए।
अनिरूद्ध - हां, और तुम्हें भरोसा रखना चाहिए।
शालिनी - सब कुछ अब तुम पर निर्भर करता है। ठीक है चलो रखती हूं, अच्छे से जाना।
अनिरूद्ध - हां, ठीक है। अलविदा।
शालिनी - अलविदा।
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To be Continued ...
Shaandar :D
ReplyDeletedhanyawad :-D
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