Tuesday, 21 November 2017

~ कमलजीत की साइकिल ~

                         अभी एक घंटे पहले मैं अपनी बाइक में लगभग बीस की स्पीड से जा रहा था। फिर रास्ते में एक छोटा सा मोड़ आया। वहाँ एक लड़के ने मुझे आवाज लगाई। भैया आपको चैन लगानी आती है? इससे पहले कि मैं कुछ सोचता दिमाग के एक हिस्से ने बाइक रोक ली। दिमाग का दूसरा हिस्सा कुछ पल के लिए ये सोच रहा था कि यार तू क्यों हाथ गंदे करने लगा इस बच्चे की साइकिल पर। पर हमेशा की तरह दिमाग का पहला हिस्सा दूसरे हिस्से पर हावी रहा। मैंने उसके साइकिल की चैन ठीक करनी शुरू कर दी। इस बीच मैंने उससे... पूछा कि कहाँ रहते हो तो उसने ईशारा करते हुए कहा वो रहा वहां सामने ही घर है, अंधेरे में उसका घर तो मुझे दिखा नहीं पर जिस हिसाब से उसने बताया उससे ये समझ आया कि हम जिस जगह पर खड़े थे वहाँ से उसका घर सौ मीटर की दूरी पर था। मैंने सोचा कैसा गजब लड़का है इतने दूर पैदल नहीं जा सकता क्या जो चैन ठीक करने के लिए इसने मुझ अनजान को इतनी रात को रोक लिया, और मैं ही क्यों, और भी तो लोग वहाँ से पैदल गुजर रहे थे, साइकिल वाले भी आ जा रहे थे पर इस आठ साल के बच्चे को मैं ही मदद के लिए दिखा वो भी एक बाइक में आता हुआ इंसान।

खैर एक दो प्रयास में मैंने उसकी साइकिल की चैन ठीक कर दी। फिर वो लड़का वहाँ से पैडल मारते हुए निकल गया, एक पल के लिए समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है। मुझे फिर से वो पहाड़ी गुड़िया याद आ रही थी हां वही जिसने अपनी आंखों से मुझे ये अहसास करा दिया था कि वो एक सामान्य बच्ची न होकर कोई और ही थी और मैं उसे फिर कभी देख नहीं पाया था। मैं ये सब सोच ही ही रहा था फिर मैंने वहां पास में एक पेड़ की कुछ पत्तियां तोड़ी और अपने हाथ में लगी गंदगी साफ करने लगा।
                         फिर मैंने गाड़ी स्टार्ट की और जाने ही वाला था कि इतने में वो लड़का फिर से मेरी तरफ आने लगा, फिर मैंने पूछा कि क्या हो गया। उसने कहा - थैंक्यू भैया। मैंने कहा - अच्छा यही बोलने के लिए वापस आये? उसने कहा - हां,पता नहीं कैसे भूल गया था। फिर वो जाने लगा तो मैंने उससे पूछा - तुम्हारा नाम क्या है?
उसने कहा - कमलजीत।
और फिर वो चला गया। सचमुच कितनी अलग थी उसकी आवाज। इतनी ऊर्जा, इतना स्पंदन। मानों कोई और ही उसकी आवाज से प्रतिध्वनियां उत्पन्‍न कर रहा हो।
अब सबसे बड़ा ताज्जुब ये कि मैं कमलजीत का चेहरा भूल गया। अब याद आ रहा है कि मैं तो उसे ज्यादा देख ही नहीं पाया या ऐसा कह सकते हैं कि देखा ही नहीं। मेरे साथ ऐसा कम ही होता है कि एक बार कोई चेहरा देखूं तो उसे भूल जाऊं। पर ऐसा लगा जैसे कोई चाहता ही न हो कि मैं उस बच्चे का चेहरा देखूं, उसकी आंखों में झांक लूं या उसे जान लूं या उसे याद रखूं। हां शायद कोई चुपके से क्षण प्रतिक्षण परीक्षा ले रहा हो।

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