साल भर बाद जब मैंने अखबार पढ़ना शुरू किया तो जिस शब्द पर आकर रूका वो है कुकुरमुत्ता। कुकुरमुत्ता यानि मशरूम। जो पैरा(पुआल) में उगता है। लेकिन कुकुरमुत्ता जो इतना स्वादिष्ट होता है और जो मेरी पसंदीदा सब्जियों में से एक है इस एक शब्द को लेखकों, कवियों, स्तंभकारों, विचारकों, नीति-निर्माताओं द्वारा आए दिन अपमानित किया जाता है। अपमान इसलिए कि कुकुरमुत्ता जो खासकर पुआल में होता है उसके उगने का भी एक खास सीजन होता है बरसात का फिर भी कुकुरमुत्ते को साल भर अपमान सहना पड़ता है। कुकुरमुत्ते से बेहतर ये होता कि बेशरम के पौधे या नागफनी को संदर्भ के तौर पर लिया जाता, वैसे भी ये पौधे कहीं भी कभी भी उग आते हैं, ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं। और तो और साल भर लहलहाते रहते हैं। फिर भी फजीहत कुकुरमुत्ते की ही होती है।
आजकल कुकुरमुत्ते का संज्ञा रूप में कुछ इस तरह उपयोग किया जा रहा है---
जैसे कि -
- कुकुरमुत्ते की तरह उगे कालेज, विश्वविद्यालय।
- कुकुरमुत्ते की तरह उगे निजी संस्थान एवं कोचिंग सेंटर।
- कुकुरमुत्ते की तरह उगते न्यूज चैनल, वेब पोर्टल और अखबार।
- कुकुरमुत्ते की तरह उगते अन्य व्यवसाय।
अच्छा इनमें कहीं भी आपको सरकारी संस्थान नहीं दिखेंगे। पता है क्यों? क्योंकि सरकारी संस्थान न तो कुकुरमुत्ते की तरह उगते हैं, न ही बेशरम के पौधे की तरह अपनी जड़े फैलाते हैं, ये तो रेलपटरियों पर पसरे गूं की तरह होते हैं। अनवरत देश सेवा करते हैं।
thanku
ReplyDeleteAbsolutely new comparison of govt organisation with shit on railway tracks.certainly you r a future sahityakar. Keep on writing.
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