इस पोस्ट का एप्प बैन के समर्थन या विरोध से कोई लेना देना नहीं है, इसलिए समर्थन या विरोध का डंडा चलाने वाले यहीं से पढ़ना बंद कर सकते हैं।
एप्प बैन में बाकी बैन हुए एप्स का पता नहीं, लेकिन खासकर टिकटाॅक जैसे पाॅपुलर एप्प का बंद होना राष्ट्रीय मुद्दा बनना ही था। हम इस टेक्निकल चीज पर नहीं जाते हैं कि जब टिकटाॅक या अन्य चाइनिज एप्प से डेटा चोरी होता है तो यह सब अभी क्यों सरकार को याद आया आदि आदि। ये काम समर्थन विरोध करने वालों पर छोड़ देते हैं। हम जमीनी बात करने की कोशिश करके देखते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो इस भीषण महामारी के दौर में भी जहाँ हमारे सामने समस्याओं का पहाड़ खड़ा है, ऐसे समय में इन मुद्दों का राष्ट्रीय महत्व का बन जाना ही हमारे लिए एक बड़े शर्म की बात है। अब इस पर न उलझिएगा कि सरकार ने किया, मीडिया ने किया, अरे भाई हम सब ने किया, सबका बराबर योगदान होता है ट्रेंड करने में। सरकार मीडिया उत्प्रेरण का कार्य करती है।
आप यह भी देखेंगे कि इस मुद्दे में हर कोई अपने हिसाब से तेल गरम कर रहा है, मौज ले रहा है लेकिन शायद बहुत कम लोग, थोड़े ही लोग इस बात को देख पा रहे होंगे कि टिकटाॅक एक ऐसा एप्प बन चुका था जिसने मनोरंजन के सहारे ही सही बहुत लोगों के लिए राहत का काम किया, एक बहुत बड़ी आबादी को शांत किया, प्रफ्फुलित किया, उमंगों को मधुर बनाया। मनोरंजन से काफी आगे निकल चुका था यह एप्प, ऐसा मुझे कहीं कहीं लगता है। उन युवाओं की बात नहीं कर रहा जो फूहड़पने पर उतारू रहे, ऐसे लोग कहाँ नहीं है, लेकिन इनके अलावा भी टिकटाॅक में एक बड़ी आबादी उनकी रही जो अपने मानसिक संतुलन के लिए किसी बाबा या आश्रम की चौखट में जाया करते थे। आप छंटनी करना शुरू कीजिए कि वे कौन लोग हैं जो टिकटाॅक चलाते हैं, बहुत कुछ समझ आ जाएगा। मुट्ठी भर बदमाशी कर रहे युवाओं के हिसाब से राय मत बनाइए। ऐसे लोग हर जगह भरे पड़े हैं।
आप अपने आस पास देखना शुरू करेंगे तो आपको समझ आएगा कि टिकटाॅक जैसे एप्प बहुत सी ऐसी महिलाओं के लिए वरदान का काम कर रहे थे जो तलाकशुदा हैं, लगातार घरेलू हिंसा झेलती हैं या अन्य किसी तरीके से आए दिन शोषण का शिकार होती हैं, इनके लिए टिकटाॅक हँसकर सब कुछ भुला देने का एक प्रभावी माध्यम बन चुका था। आप कंटेंट, गाने, संगीत, वीडियो इन सब में उलझे रहेंगे तो आपको मेरी यह बात वैसे भी समझ नहीं आएगी। आप सामने वाले की हँसी और आनंद के पीछे वर्षों से चले आ रहे मानसिक सामाजिक शोषण को कुचलता नहीं देख पाते हैं तो यह आपकी समस्या है।
अब डेटा चोरी पर आते हैं जिसे आधार बनाकर एप्प बैन की ये नौटंकी की गई है। यानि यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि जिस देश के लोगों को सरकार ने कभी महज एक डेटा से ज्यादा कुछ समझा नहीं, आज उसी सरकार को उन्हीं लोगों का डेटा चोरी हो जाने की सबसे अधिक चिंता है।
डेटा चोरी का अभी तक का सबसे वीभत्स उदाहरण आधार कार्ड है। हैकर जूलियन असांजे ने तो भारत में आधार कार्ड लांच होने के दो साल पहले ही कह दिया था कि भारत अपने लोगों की निजता पर हमला करने के लिए जल्द ही कुछ पहचान पत्र जैसा तरीका अपनाएगी और हुआ भी यही। इस पर नहीं जाते हैं कि आधार कार्ड का अर्थ कैसे डेटा चोरी हो गया। अभी हाल फिलहाल का उदाहरण लेते हैं, आरोग्य सेतु एप्प, डेटा चोरी का इससे बढ़िया मासूम उदाहरण और क्या लेंगे। फ्रेंच हैकर एलिएट एल्डरसन ने तो मानो पूरी खोलकर रख दी कि कैसे सरकार इस महामारी में, इस व्यापक आपदा के समय में भी डेटा चोरी का काम धड़ल्ले से कर रही है।
चलिए इन दोनों उदाहरणों को छोड़ देते हैं, बहुत टेक्निकल चीजें हैं। एक आसान सा उदाहरण लेते हैं, आपमें से अधिकतर युवा राज्य स्तर, केन्द्रीय स्तर की अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं का हिस्सा बने होंगे, बैंकिंग, रेल्वे, व्यापंम, एसएससी, पीसीएस, सिविल सेवा आदि। आपने कभी ध्यान दिया कि परीक्षा समाप्ति के पश्चात, परीक्षा में अनुपस्थित युवाओं को एक दो दिन के पश्चात् लाॅटरी या कार जीतने वाले फोन कहाँ से आते हैं, फोन करने का यह ठेका किस बीपीओ को मिलता है। या फिर जिस दिन परीक्षा परिणाम आते हैं तो जिनका चयन नहीं हो पाता है, उन घायल क्षुब्ध लोगों के नाम का डेटा लीक कौन करता है, उन्हें लाॅटरी वाले फोन कहाँ से आते हैं। कभी आपने सोचा है कि कौन हैं वे लोग जो आपको झूठे सपने बेचने का काम करते हैं, आपको बोलरो, स्काॅर्पियो जीतने का बम्पर आॅफर देते हैं और बदले में 5000-10000 रूपए के अग्रिम भुगतान की माँग करते है। सरकार के अघोषित तथाकथित चाटुकार सरीखे आरटीआई कार्यकर्ताओं की गर्दन पकड़ के आप पूछिएगा कि क्यों वे लोग चयन आयोगों से यह नहीं पूछते हैं कि छात्रों का डेटा लीक आखिर कौन करता है? पता करवाइएगा कि निजता का हनन कर लाखों करोड़ों रूपए का यह डेटा बेचने का कारोबार आखिर किनके रहम-ओ-करम पर होता है। चीन को हम बाद में संभाल लेंगे, पहले घर का मामला ठीक कर लिया जाए।
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