जियो का नशा -
जियो ने सबसे पहले बहुत से सरकारी संस्थानों, पार्क आदि में जियोफाई बनने का काम किया, सिम तो बाजार में बाद में आया। शायद जियोफाई, जियो के सिम को लाने के लिए एक ट्रायल रहा होगा। क्योंकि जियोफाई की स्पीड इतनी जबरदस्त रही कि पार्क आदि में घंटों बस उस स्पीड का आनंद लेने के लिए लोगों की भीड़ देखते बनती थी। "इंटरनेट का लुफ्त उठाते युवा" बकायदा ऐसी न्यूज बनती थी वो भी धड़ल्ले से, क्यों ये सब होता था, समझदार के लिए इशारा काफी है। इस देश में जनगणना सर्वे के अलावा भी हजारों ऐसे सर्वे होते रहते हैं जो बड़ी मासूमियत से आपकी निजता को दीमक की तरह खोखला कर रहे होते हैं। लोकतंत्र के समस्त स्तंभों की क्रूरता समझने के लिए यह एक बहुत बढ़िया उदाहरण है। मदारी, नायक, गंगाजल, रेड, स्पेशल 26, जाॅली एलएलबी जैसी भ्रष्टाचार आधारित कबाड़ फिल्में इस क्रूरता को छिपाने के लिए एंटीडोट की तरह काम करती हैं।
एक दिन फिर मार्केट में जियो का सिम आता है, टेक्नोलॉजी के कीड़े जिन लोगों ने शुरुआत में सिम लिया, उन्होंने बताया कि काल इंटरनेट सब कुछ फ्री है, सिम भी फ्री है, अनलिमिटेट इंटरनेट है, धासू स्पीड है, लोग पागल हुए जा रहे थे, मुझे यह सब देखकर भयंकर हंसी आ रही थी और साथ ही उस फोकटछाप डेटा वितरण के पीछे की खतरनाक मंशा भी साफ दिखाई दे रही थी, तब हँस ही सकते थे। अंबानी रातों रात इंटरनेट के कीड़ों के भगवान बन चुके थे। एक ने बताया कि उसने एक दिन में 50 GB से अधिक की फिल्में आदि डाउनलोड कर ली। यहाँ तक सब कुछ अनलिमिटेड ही रहा, फिर दिखना शुरू हुआ जियो के नशे का असली स्वरूप। अब एक दिन में अनलिमिटेड डाउनलोड की लिमिट 30 GB कर दी गई, फिर 10 GB कर दी गई, फिर 4 GB और फिर शायद 2 GB में आकर मामला रूक गया। तब तक जियो के सिम का नशा मार्केट में फैल चुका था, बाकी सारी सिम कंपनियां प्रतिस्पर्धा से बाहर। और फिर जब सबको नशे की लत लगा दी तब जियो ने वापस अपने पैसे वसूलने शुरू कर दिये।
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