आदिवासी इलाके में भ्रमण करते हुए महीना भर हो चुका था। कोल, खड़िया और संथाली समुदायों की जीवनशैली देखकर आए रोज अपने छोटेपन का अहसास हो रहा था। इस दौरान एक चीज देखने को मिली कि माता-पिता अपने छोटे-छोटे बच्चों को बुरी तरीके से मारते हैं।
एक बार कुछ ऐसा ही हुआ, एक पिता अपने बच्चे को डंडे से पीट रहा था, इतना पीटने लग गया कि मुझसे रहा नहीं गया, फिर मेरे कहने पर उन्होंने उस बच्चे को मारना छोड़ दिया। बाद में वजह पूछने पर पता चला कि वह पिता अपने बच्चे को इसलिए मार रहा था क्योंकि उस बच्चे में स्कूल जाने की रूचि नहीं है। पता नहीं क्यों उनकी यह बात सुनकर एक पल के लिए मन मसोस कर रह गया। वह बच्चा असल में स्कूल से डर कर भाग आता है, और चोरी छिपे माँ के साथ जंगल चला जाता है, माँ खुश रहती है कि बेटा पत्तियाँ तोड़ने या लकड़ी लाने में मदद कर रहा है, लेकिन शायद बाप की चिंता यह रहती है कि बेटा भी हमारी तरह अनपढ़ रहा तो निकट भविष्य में सरकारी दफ्तरों में हमारी तरह ठोकरें ही खाता फिरेगा, यह एक बड़ा स्वार्थ मालूम पड़ा जिसकी वजह से आदिवासी अपना सर्वस्व होम कर अपने बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं।
मैंने उस बच्चे के पिता से यहीं ईमली के पेड़ के नीचे खाट में बैठकर आधे घंटे तक बात थी। ईमली का पेड़ ईमली से लदा हुआ था, मैंने उस आदमी से पूछा, इस पेड़ से कोई ईमली तोड़ता नहीं है क्या? उसने कहा - अभी देवी पूजा नहीं हुई है, पूजा के बाद ही पेड़ों की पत्तियों और फलों को छू सकते हैं या तोड़ सकते हैं, उसके पहले छूना या तोड़कर खाना पाप माना जाता है।
मैंने उससे पूछा - आपने कुछ पढ़ाई की है?
उसने कहा - नहीं।
मैंने कहा - पता है, आपमें और मुझमें फर्क क्या है?
उसने कहा - क्या?
मैंने कहा - मैं इस ईमली के पेड़ से जब चाहूं ईमली तोड़ सकता हूं, आप नहीं तोड़ सकते हैं। मेरे शिक्षित होने का नुकसान यह है कि मैं आपके ये जंगल के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हूं। इसलिए अगली बार जब भी अपने बच्चे को स्कूल न जाने की वजह से डंडे से मारने का मन करे तो इस एक नुकसान को याद जरूर कर लेना।
अब वह आदमी एकटक उस ईमली के पेड़ को देखने लग गया।
Somewhere in odisha...
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