जैसे लोग यह नहीं समझ पा रहे कि मुझे कैसे कोरोना हो जाएगा ठीक उसी तरह लोग इस बात को भी नहीं समझ पा रहे हैं कि दिन गुजरने के साथ उनमें गजब का मानसिक परिवर्तन होता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में लगातार एक्टिव रहकर समय देने के बाद बहुत सी चीजें खुलकर सामने आई जो कि शायद सामान्य दिनों में कभी बाहर निकलकर नहीं आ पाती है। जो हिंसा, जो मानसिक संक्रमण अभी देखने मिल रहा है, वो सालों साल सामान्य दिनों में देखने को नहीं मिलता है। आप भी अपने आसपास नजर तेज रखिए, बस चुपचाप लोगों को देखते रहिए। इस गलतफहमी में न रहें कि दिमागी रूप से लड़खड़ाने वाले ऐसे लोग सिर्फ मेरे जैसे किसी एक के ही आसपास हैं, सबके आसपास ऐसे लोग होते हैं, हर कोई खोद के निकालता फिरे, ऐसा सुयोग सबके साथ नहीं होता है। यूं भी कह सकते हैं कि अभिव्यक्ति के अलग-अलग तरीकों से बहुत से लोगों का संक्रमण बाहर खिल के आ रहा है। किसी एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं है, एक पूरी भीड़, एक मानसिकता के साथ यह समस्या है। देखने वाला अगर चाहे तो थोड़ी सी वस्तुनिष्ठता से चीजें स्पष्ट अब दिखने लगी हैं। शायद आने वाले एक महीने में स्थिति और खराब होनी शुरू जाएगी, और सबसे बड़ी समस्या यह कि लोग ऐसे बेहोश हैं कि उनके साथ मानसिक स्तर पर चीजें घटित होनी शुरू हो चुकी है, लेकिन या तो वे दबा रहे हैं, या फिर जाहिर भी कर रहे हैं तो समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके भीतर का असली चरित्र बाहर आने लगा है। यह अब हो रहा है, बड़े स्तर पर हो रहा है। और इन सब से खुद को बचा ले जाने की जरूरत है।
एक प्रयोग के तौर पर यह करके देखा जाए -
जैसे उदाहरण के लिए एक कोई सरकारी कर्मचारी है, आॅफिस से लेकर घर तक उसके पूरे रुटीन की पड़ताल करते हैं। वह व्यक्ति आॅफिस लेवल में अपने सहकर्मियों से अच्छा व्यवहार कर रहा है, अपना काम ठीक ढंग से कर रहा है, तो इसका तार कहीं न कहीं उसके परिवार से भी जुड़ा होता है, ऐसे लोग निस्संदेह अपनी पत्नी से, बच्चों से, माता-पिता के साथ भी बढ़िया व्यवहार रखते हैं। या इसे ऐसे भी देख सकते हैं कि जो पारिवारिक संबंधों में सफल रहता है, वह कार्यस्थल पर भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है। और इसके ठीक उलट जैसे अगर कोई आॅफिस और अपने काम के प्रति जवाबदेही नहीं दिखाता है तो आप देखिएगा कि उनके घरेलू जीवन में बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा होता है। ये दोनों चीजें एक दूसरे से गहरे जुड़ी हुई हैं।
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