Sunday, 31 May 2020

बहरूपिया मास्टर -

एक मास्साब रहे, बड़े निराले थे, उतने विनम्र मास्साब मैंने शायद ही अपने पूरे जीवन में देखा होगा।
मास्साब की एक बढ़िया चीज यह रही कि गाना गाने में और प्रवचन देने में नंबर वन थे। लड़कियों की तारीफों के बीच घिरे रहना उनका प्रिय शगल हुआ करता। मास्साब का व्यक्तित्व ऐसा कि अच्छे अच्छे बहरूपिए भी धोखा खा जाएं, उनका चोगा अभेद्य था, लेकिन फिर भी जुबान ऐसी चीज है, लाख विनम्रता, सहजता ओढ़ लीजिए, कभी-कभी हवा ऐसी चलती है कि असल रूप कुछ सेकेण्ड के लिए अपनी झलक दिखा जाता है। ठीक ऐसा मास्साब के साथ भी हो जाता था, फिर वे सचेत हो जाते थे‌।

एक बार वे ऐसे ही बताने लगे कि उनकी डाइट बढ़िया है और उन्हें भयंकर भूख लगती है। कुल मिलाकर यह समझा जाए कि मास्साब भयंकर पेटू सरीखे आदमी थे, खुलकर कह भी लेते थे। इतना कुछ खुलकर कहने के बाद उन्होंने एक दिन छात्रों को विपश्यना का ज्ञान देना शुरू किया, कहने लगे 10 दिन का पैकेज ही लेना, बहुत फायदा करता है, 3 दिन वाला पैकेज शायद बंद हो गया है और कुछ खास फायदा नहीं होता है, आगे उन्होंने बताया कि उन्होंने खुद एक बार 3 दिन वाला पैक लिया था और भूख के मारे कुलबुला गये थे। इतना बताने के बाद ही अचानक उन्होंने विषयांतर कर लिया।

ऐसे ही एक बार एक छात्र को शिक्षा संबंधी प्रयोगों के बारे में चर्चा करते हुए बताने लगे कि तुम्हारा विचार तो अच्छा है लेकिन इसको संकुचित मत होने दो, खूब किताब चाटो और आंदोलन कर डालो। जब छात्र पूछते कि मास्साब आप तो चक्रवर्ती आदमी, इतनी पहुंच है आपकी, आपने क्यों आंदोलन न किया तो वे बात पलट देते। और कहने लगते कुछ अलग करो दोस्तों ये रूटिन तरीके से पढ़ाई नौकरी ये सब तो हर कोई कर ही रहा है। कुछ इस तरह खुद मासूम की तरह किनारे में बैठ कर मजा लेते और जनता से खूब फर्जी क्रांति करवाते रहते, छात्र भी चौड़े हो जाते कि मास्साब वाजिब बात कह रहे।

एक दिन स्वच्छता की बात करते हुए उन्होंने बताया कि वे अपने पढ़ाई के दिनों में महीनों तक नहीं नहाते थे, तो कपड़े भी धोने का टंटा खत्म, कई-कई दिन तक ब्रश भी नहीं करते थे, इन सबका उन्होंने गणित लगाकर फायदा बताया कि महीने भर में कितना अधिक समय बच जाता है। दूसरा फायदा यह रहा कि शरीर से बदबू आती थी और फिर उन्होंने बताया कि बदबू की वजह से उनके बहुत कम दोस्त बने, कोई उनके पास बात करने तक नहीं आता था जिससे पढ़ाई में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होता था। 

इतना कुछ मास्साब बता जाते थे फिर भी चोगे से बाहर कभी नहीं आते थे। एक बार तो कह भी गये कि बचपन में उन्हें भयंकर कुंठा होती थी कि दूसरे जात के लोगों की नौकरी लग गई और उनकी जाति के लोगों की नौकरी नहीं हो पा रही है। आगे रविश कुमार स्टाइल में कहते - "मेरी जाति बताऊंगा तो आप यकीन नहीं करेंगे"। हम भी दाँतों तले ऊंगली दबा लेते कि मास्साब तो भई गुरू आदमी हैं।

किसी को कुछ समझ आया मास्साब के बारे में? नहीं न? अरे जब हमको नहीं आया तो तुमको क्या समझ आएगा। एक लाइन में समझिए कि मास्साब बहरूपियों के भीष्म पितामह थे, बस।

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