Friday, 8 May 2020

My take on Aurangabad Train Incident


                 कहीं गलती से रास्ता न भटक जाएँ और किसी ट्रेन में लटककर कुछ दूर चले जाएँ इसी उम्मीद में पटरी के सहारे भूखे प्यासे सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के बाद बेसुध वहीं सो रहे लोगों से ये यह भी उम्मीद करेंगे कि पटरी पर आखिर क्यों सोया। थोड़ा किनारे सो जाना था। इनकी सोच यह तक कहती होगी कि पटरी पर सोया भी तो ठीक बीच में उल्टे मुंह सो जाना था ताकि मरने से बच जाते। सरकार को बदनाम करने के लिए इनको पटरी ही मिला था क्या।

                आप अपने आसपास ऐसे सवाल करने वालों को देखिए, देखिए इस मानसिकता को, देखिए इस नयी किस्म की हिंसा को। और उन्हें जाकर यह भी कहिए कि अगर इतना ही सवाल करने का मन है तो चले जाएँ उन पटरियों पर और पूछ आएँ अनगिनत सवाल मरने वालों की छिन्न-भिन्न हुई अतड़ियों से, खून से सने कपड़ों से, बिखरी रोटियों से। इतना सवाल करने को कहिए कि मरने वालों की आत्मा चिथड़ों से बाहर निकल आए और सरकार से माफी माँग ले।


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