Sunday, 3 May 2020

आजादी के मायने -

                   सन् 2009 की बात है, 12th खत्म करने के बाद हम छोटे कस्बेनुमा शहर से निकले आधे दर्जन लड़कों का एक जत्था एजुकेशन हब कहे जाने वाले शहर भिलाई को चला गया। हम निकले तो थे एक महीने का क्रैश कोर्स करने, ताकि किसी अच्छे इंजीनियरिंग काॅलेज में एडमिशन के लायक रैंक मिल जाए, लेकिन यह एक महीना हमारे लिए किसी टूर की तरह ही था। शुरूआती कुछ दिन अच्छे बच्चों की तरह सुबह उठ कर क्लास गये, उसके बाद फिर जाना ही बंद हो गया। अच्छी बात यह भी थी कि हममें से एक भी किसी लड़के ने कभी न तो पढ़ने का ढोंग किया न ही पढ़ाकू होने का अभिनय किया हम पिकनिक मनाने आए थे तो बस आए थे और इस सच्चाई को हम लोगों ने पूरी ईमानदारी के साथ जिया। तो हमारा क्लास जाना वैसे भी बंद हो गया था, तो हमने सुबह उठना भी बंद कर दिया था। तो अब उठते ही नित्यकर्म के बाद हमने मनोरमा वाली कहानियाँ पढ़नी शुरू कर दी। हममें से सब के पास नोकिया का सामान्य सा फोन था लेकिन एक लड़के के पास मल्टीमीडिया फोन था, उसी के फोन में नेट का रिचार्ज करवाया करते थे। तब एयरटेल का दस रूपए वाला मोबाइल आफिस पैक प्रचलन में था। हम तो दिन रात पागलों की तरह कहानियाँ ही पढ़ने लगे, खाने के पहले, खाने के बाद, सोने के पहले, उठने के बाद। बस यही चलता रहा। शाम को रोज घूमने चले जाते बाकी दिन भर गोल्लर की तरह कमरे में पड़े रहते। मकान मालिक और बाजू के कमरे में रह रहे पढ़ाकू लड़कों की नजर में हम सब की छवि ऐसी बन चुकी थी कि हम बस महीने भर के लिए घूमने आए हैं, हमने भी कभी पढ़ने की नौटंकी नहीं की। 

                    हमारा कमरा असल में ऐसा था कि बाकी अन्य कमरों के लिए जो रास्ता था हमारे कमरे से होकर ही जाता था, जब भी बाकी लड़के गुजरते थे उन्होंने कभी हमें किताबों के साथ नहीं देखा। हम थे भी बेशर्म, हमको घंटा फर्क नहीं पड़ता था, उल्टे दाँत दिखा के उन्हीं की बेइज्जती कर देते थे, वे भी हमसे घबराते थे। तो इसी बीच एक और मजेदार वाकया हुआ। उस घर में इंजीनियरिंग करने वाला एक लड़का भी किराए में रहा करता था, जो कि एक आदर्श बालक की तरह था, असल में था महाचूतिया वो चीज हम उस उम्र में ही समझ गये थे लेकिन अगला हमारे साथ अलग ही खेल गया। उसने जब देखा कि हमारी पढ़ाई में बिल्कुल रूचि नहीं तो वह हमें एक दिन घुमाने के बहाने ओम शांति वाले केन्द्र ब्रम्हाकुमारी ले गया। हममें से कुछ लोग लहालोट हो गये, उनमें मैं भी एक था, ब्रम्हाकुमारी जाने के बाद जो सबसे खराब चीज हमारे साथ हुई, वो यह थी कि हमने गाली-गलौच एकदम से कम कर दिया था, कुछ दिनों के लिए तो नाॅनवेज खाना भी बंद कर दिया था, दिन रात सरस सलिल टाइप की सैकड़ों कहानियाँ यूँ निपटाने वाले हम लोगों ने अब सत्य अहिंसा की राह पकड़ ली थी, सुविचार की बातें करने लग गये थे। वो तो अच्छा हुआ कि महीने भर बाद हम वापिस अपने घर आ गये वरना उस मोहपाश में तो हम उस इंजीनियरिंग वाले लड़के की तरह श्वेत वस्त्र धारण करने ही वाले थे।

                    हमने महीने भर के लिए दो वक्त का खाना एक टिफिन वाले से बँधवा लिया था। वो इतना घटिया खाना देता था कि हममें से कोई भी एक तिहाई से ज्यादा खाना खा नहीं पाता था, लेकिन हमारे बीच एक अपवाद था वही मल्टीमीडिया फोन वाला लड़का, वो बैल सबके हिस्से का खाना ठूँस लेता था। 

                    सब तो खाली ही थे तो हमने एक और काम शुरू कर दिया था। दोपहर भर जम के सोने के बाद हम शाम से इधर-उधर बेफिजूल लोगों को फोन करना शुरू कर देते थे, फोन क्या करते थे, तंग करते थे, क्या डीएसपी, क्या टीआई, सबको फोन कर धमकाते रहते थे, उस समय काॅल ट्रैकिंग जैसी नौटंकी नहीं होती थी, इस बात की हमें बखूबी जानकारी थी‌। तो हम बेफिक्र होकर आए रोज दस रूपए का स्क्रैच कूपन पाॅकेट से निकालते, सिक्के से खुरचते, रिचार्ज करते, दस में से नौ रूपए मिलते, उसमें नौ मिनट ही बात हो पाती, हम 59 सेकेंड का टाइमर सेट करते, और धुआंधार चालू फिर। हमने कितने लोगों को गाली की होगी, कितनों से लड़ाई की होगी, अपने ही कितने दोस्तों से लड़की की आवाज में बात की होगी, हमें भी नहीं पाता, तब हम क्यों ऐसा करते थे पता नहीं, बस हमारे लिए वो एक अलग ही किस्म का मनोरंजन था, उसका सुख सिर्फ हम ही समझ सकते थे। वो एक महीना हमने जो जिया, उसमें जितना हम हँसे, वैसे पागलों की तरह शायद ही हम जीवन में दुबारा कभी उतना हँस पाएं। 

                   चलो ये तो हँसी मजाक वाली बातें हो गई, अब आपको एक असल चीज बताता हूं, जिसकी वजह से आज मुझे ये सब लिखने का मन कर गया। हम जिस घर में किराए लेकर रहते थे, उस घर के मालिक यानि पति-पत्नी दोनों अच्छी सरकारी नौकरी में थे। मकान मालकिन बहुत ही अधिक हिंसक प्रवृति की महिला थी, उतनी हिंसक महिला मैंने अभी तक के अपने जीवन में नहीं देखा है। उनके पतिदेव तुलनात्मक रूप से भले मानुष मालूम होते थे। उस महिला ने पूरे महीने कभी हमसे सीधे मुँह बात नहीं की, खैर ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। बड़ा मुद्दा यह था कि उनका जो एकलौता बेटा था, उसे एक तरह से गुलाम की तरह घर में बंद रखा जाता था, उनके यहाँ एक पालतू कुत्ता भी था, सच कहूं तो उनके पूरे घर में उस काले धूसर कुत्ते को उस लड़के से कहीं अधिक आजादी थी। अपने बेटे को वह आंटी जानवरों की तरह घर में बंद करके मारती थी, कभी-कभी सहयोगी के रूप में उसका बाप भी हाथ साफ करता था लेकिन मुख्य भूमिका में माँ ही थी, वह लड़का खूब रोता था, गश खाकर बंद घर में पड़ा रहता था। एक चीज मैंने भारत में देखी है, जहाँ कहीं माता-पिता दोनों सरकारी नौकरी या किसी हनक वाले पद में होते हैं, तो या तो बच्चा खुला सांड बन जाता है या फिर इस बच्चे की तरह वह नजरबंद हो जाता है, शोषण का शिकार हो जाता है, अधिकांशत: मैंने अभी तक यही होते देखा है।

                       वह निर्दयी आंटी अपनी सारी कुंठा रोज अपने बच्चे पर निकालती थी, उनमें मानों अपनी जीवन भर की तमाम असफलताओं का बोझ उस बच्चे पर लादने का एक तरह से भूत सवार था। वह लड़का लगभग 15 साल का होगा, स्कूल भी जाता था। लेकिन उसकी स्थिति ऐसी थी कि हमने जब शुरू में देखा तो हम उसके हावभाव चलने-फिरने के तरीके से उसे पागल, खिसका हुआ या मानसिक रूप से कमजोर समझते थे, वह ऐसा दिखने भी लगा था, लेकिन ऐसा नहीं था। असली पागल तो उसकी माँ थी, जिसने मार-मार कर उस बच्चे का ये हाल कर दिया था, पता नहीं कितने सालों से वह ऐसा कर रही होंगी। उस बच्चे को उसके माँ बाप रोज शाम को टहलाने के लिए इस तरह ले जाते मानो वो कोई पालतू कुत्ता हो, बस उसके गले में एक पट्टा बाँधने की देरी थी। हम भी उस लड़के को देखने के लिए बाहर निकल आते कि आज भाई दर्शन दिया है, कम से कम घूमने के लिए निकला है। हमसे पहले से वहाँ रह रहे पड़ोस के कमरे के लड़कों से पूछताछ करी तो पता चला कि वह लड़का बहुत समझदार है, एकदम नाॅर्मल है, माँ-बाप की बहुत इज्जत करता है, खूब डरता भी है, बहुत कम और धीमी आवाज में बात करता है और उसे बस इसलिए घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता कि वह बाकी लड़कों की संगत में बिगड़ैल हो जाएगा और पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पाएगा। उसे फुटबाल की तरह मार-मार के घर में बंद करके जबरदस्ती पढ़ने के लिए दबाव डाला जाता था। उसका आत्मविश्वास तो पूरा मर चुका था, तब तो यही समझ आता था, पता नहीं वह इन सब से ऊबर पाया होगा भी या नहीं, आज वह लड़का किस हाल में होगा कह नहीं सकता लेकिन एक माँ अपने बच्चे के लिए इस स्तर तक हिंसक हो सकती है, यह मैंने उसी समय पहली बार अपने जीवन में देखा था। 


In Picture - यह अभी दो दिन पहले की तस्वीर है, यहीं पास में ही हम कभी रहा करते थे।

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