Essential Services की जिम्मेदारी पाल लो,
20 लाख करोड़ वापस अपनी झोली में डाल लो।
"सड़क को लंबा होने का घमंड था, मजदूरों के हौसले ने पैदल नाप लिया।"
इस वाक्य में संवेदनशीलता और हिंसा/क्रूरता का प्रतिशत बताइए?
20 लाख करोड़ का पैकेज सिर्फ उन्हें दिख रहा है, जिनका उस पैसे से हिस्सा बँधा हुआ है।
सबके अकाउंट में 15 लाख, स्वदेशी और ये 20 लाख करोड़ का पैकेज,ये सब नशे की गोलियाँ हैं।
प्रतिरोध वाले कहाँ है आजकल?
आपद धर्म निभाना भूल गये क्या?
सेवक जी- 20 लाख करोड़ का पैकेज।
मजदूर- इतना भी मजाक ना बनाओ कि हम चैन से मर ना पाएँ।
सेवक जी- 20 लाख करोड़ का पैकेज।
मजदूर- मेरी पहचान छीन लो और एक दिन के लिए भात दे दो।
सेवक जी - 20 लाख करोड़ का पैकेज।
मजदूर - मेरा सब कुछ लूट लो, बस घर पहुँचा दो।
पटरी में सोएंगे तो मरेंगे ही =< मुझे बहुत दु:ख पहुँचा है।
पैदल चलकर घर लौटने वालों की पूरी जिंदगी essential service जुटाने में ही निकल जाती है।
ट्रक भरकर सामान शिफ्ट करने वाले झोला लेकर पैदल चलने वालों का दर्द कहाँ समझ पाएँगे।
छत्तीसगढ़ में अब सिर्फ सप्ताह के पाँच दिन ही कोरोना फैलाने की अनुमति रहेगी। शनिवार रविवार कम्पलीट लाॅकडाउन।
बचपन में जब लाल,नारंगी और हरे रंग को मिलाते थे,गाढ़ा लाल रंग ही बन जाता था।
#lockdown
गाँव वालों को जो टोनही भूत मसान पकड़ देता था, शहरों में उसे ही "पैनिक अटैक" कहते हैं।
हे! लाल फीतों, अगर शर्म बची है तो 72 घंटे के कम्पलीट लाॅकडाउन की नौटंकी बंद कर दो।
कोरोना वाॅरियर्स पर जो पुष्पवर्षा होती है, क्या उन फूलों को सेनेटाइज किया जा रहा है?
भारत में अधिकतर लोग बस इसी एक धारणा को लेकर मस्त हैं कि उन्हें कैसे कोरोना हो जाएगा।
सरकारी तंत्र आए दिन लोगों को तमाचा मार रही, लोगों में असर नहीं, वो अलग चीज है।
हमें इस बात को स्वीकार लेना चाहिए कि पीड़ितों का दर्द हम घर बैठे नहीं समझ सकते हैं।
असभ्य - कुछ लोगों की वजह से जाति/धर्म/देश को बदनाम करना बंद कीजिए।
सभ्य - कुछ लोगों की वजह से मैं शर्मिंदा हूं।
हजारों किमी पैदल चलकर घर लौट रहे पीड़ितों को श्रमवीर की उपाधि मध्यवर्ग ही दे सकता है।
भारतीय दर्शन में सबसे मजेदार चीज पता है क्या है। कहीं भी श्रम शब्द का उल्लेख नहीं है।
वो कोरोना 3rd स्टेज का क्या हुआ?
अभी तक भारत में आया है या नहीं?
श्रमिक ट्रेनें लेट नहीं हो रही हैं। असल में नवतप्पे की वजह से ट्रेन चालक की आँखों में पराबैंगनी किरणें इतने जबरदस्त तरीके से प्रहार कर रही हैं कि उन्हें चलती ट्रेन के सामने पटरी में ही रेगिस्तान जैसी मृग मरीचिका होने का आभास हो रहा है फलस्वरूप उन्हें औरांगाबाद में ट्रेन से कुचले हुए लोग अचानक से बार-बार पटरी पर सोए हुए दिखाई दे रहे हैं, इसीलिए वे क्रुध्द होकर ट्रेन को एक दूसरी ही दिशा में ले जा रहे हैं, दूसरे शहर क्या सीधे 500-1000 किलोमीटर दूर दूसरे राज्य में ले जाकर ट्रेन को खड़ा कर रहे हैं ताकि मृतकों का साया उन्हें परेशान ना कर पाए।
नर सेवा के साथ नारायण सेवा जोड़ने की धूर्तता करने वाला समाज ही विश्वगुरू बनने का ढोंग कर सकता है।
ध्यान रहे, "अतिथि देवो भव:" में भी अतिथि को एक साधारण मनुष्य मानने की छूट नहीं है।
खान-पान से लेकर रहन-सहन तक, झाड़ू पोछे से लेकर युध्द करने तक, पारिवारिक रिश्तों से लेकर पर्व त्यौहारों तक, हर जगह इन वेद पुराण रचने वाले बागड़बिल्लों ने बड़े शातिराना तरीके से धर्म, दर्शन और अध्यात्म की एक अभेद्य मोटी परत चढ़ा रखी है।
मजदूर काम की थकान से नहीं बल्कि शोषण की थकान से तंग आकर नशे का सहारा लेते हैं।
असभ्य - कुछ लोगों की वजह से जाति/धर्म/देश को बदनाम करना बंद कीजिए।
सभ्य - कुछ लोगों की वजह से मैं शर्मिंदा हूं।
हजारों किमी पैदल चलकर घर लौट रहे पीड़ितों को श्रमवीर की उपाधि मध्यवर्ग ही दे सकता है।
भारतीय दर्शन में सबसे मजेदार चीज पता है क्या है। कहीं भी श्रम शब्द का उल्लेख नहीं है।
वो कोरोना 3rd स्टेज का क्या हुआ?
अभी तक भारत में आया है या नहीं?
श्रमिक ट्रेनें लेट नहीं हो रही हैं। असल में नवतप्पे की वजह से ट्रेन चालक की आँखों में पराबैंगनी किरणें इतने जबरदस्त तरीके से प्रहार कर रही हैं कि उन्हें चलती ट्रेन के सामने पटरी में ही रेगिस्तान जैसी मृग मरीचिका होने का आभास हो रहा है फलस्वरूप उन्हें औरांगाबाद में ट्रेन से कुचले हुए लोग अचानक से बार-बार पटरी पर सोए हुए दिखाई दे रहे हैं, इसीलिए वे क्रुध्द होकर ट्रेन को एक दूसरी ही दिशा में ले जा रहे हैं, दूसरे शहर क्या सीधे 500-1000 किलोमीटर दूर दूसरे राज्य में ले जाकर ट्रेन को खड़ा कर रहे हैं ताकि मृतकों का साया उन्हें परेशान ना कर पाए।
नर सेवा के साथ नारायण सेवा जोड़ने की धूर्तता करने वाला समाज ही विश्वगुरू बनने का ढोंग कर सकता है।
ध्यान रहे, "अतिथि देवो भव:" में भी अतिथि को एक साधारण मनुष्य मानने की छूट नहीं है।
खान-पान से लेकर रहन-सहन तक, झाड़ू पोछे से लेकर युध्द करने तक, पारिवारिक रिश्तों से लेकर पर्व त्यौहारों तक, हर जगह इन वेद पुराण रचने वाले बागड़बिल्लों ने बड़े शातिराना तरीके से धर्म, दर्शन और अध्यात्म की एक अभेद्य मोटी परत चढ़ा रखी है।
मजदूर काम की थकान से नहीं बल्कि शोषण की थकान से तंग आकर नशे का सहारा लेते हैं।
शोषण के उपरांत टीवी,सिनेमा शोषितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
14 दिन के क्वारंटीन के बाद 15वें दिन कोरोना उड़नछू हो जाता है।
Lockdown S01 E05 is now Unlock S01 E01. #vishwagurukehardcorechutiyaape
पहले कोरोना दिन में फैलता था, अब से रात में फैलेगा। #Lockdown5 #Unlock1
सोनू सूद की बसें घर तक, कांग्रेस की बसें बार्डर तक। #खेलयेबड़ागंदाहैप्रिये
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