Friday, 15 May 2020

कुछ लोग कभी आॅब्जेक्टिव हो ही नहीं सकते -

               मुझे याद नहीं आता है कि आखिरी बार कब मैंने देश के प्रधानमंत्री या किसी विपक्षी पार्टी के नेता का नाम अपने फेसबुक पर लिखा हो, या व्यक्तिगत होकर उनके नाम पर कुछ चर्चा की हो। या फिर कभी किसी पार्टी, पक्ष या वाद का समर्थन या विरोध किया हो। फिर भी कुछ लोग हमेशा घेरेबंदी करने में लगे रहते हैं, एक खेमे में ढकेलने की कोशिश करते रहते हैं। असल में ऐसे लोग इतने कमजोर होते हैं कि उन्हें हमेशा एक कोना चाहिए होता है, वे अपने लाइक कमेंट से इस बात को बखूबी बताते रहते हैं कि मेरा कोना यही है। जब आप उस कोने के बारे में लिख देते हैं, वे चौड़े होकर स्वागत करते हैं, और जब आप उस कोने की खामियाँ गिनाने लगते हैं तो वे बड़ी मासूमियत से चुपचाप किनारे हो जाते हैं। मेरी प्रोफाइल में आधे लोग ऐसे ही हैं, भले ही वे स्वीकार ना कर पाएं, लेकिन यही हकीकत है। इनकी वजह से जो सचमुच वस्तुनिष्ठता से जीवन जी रहे होते हैं, उनके लिए ये लोग व्यवधान पैदा करते रहते हैं, वास्तव में ऐसे लोग बहुत ही अधिक हिंसक प्रवृति के होते हैं। 

                 उदाहरण के लिए जैसे अभी कुछ महीने पहले देश में एक कानून को लेकर प्रोटेस्ट चल रहे थे, पूरा आर्गनाइज तरीके से देश भर में नौटंकियों का दौर चला। तब मुझे उस कानून का विरोध ना करने पर एक खेमे का भक्त तक घोषित किया गया, तब तो मेरी प्रोफाइल में खफा होने वालों का मौन हिंसक विरोध देखते ही बनता था और आज देखिए वही लोग, आज उनका मौन विरोध उग्र समर्थन में तब्दील हो गया है, क्योंकि उनको यह खुशफहमी होगी कि मैं जो आजकल आए रोज पोस्ट लिख रहा हूं वो देश के एक नेता को, एक पार्टी को कोस रहा हूं, हँसी आती है ऐसे लोगों पर, ऐसी मानसिकता पर। इसके ठीक उलट जो दूसरा धड़ा है वो भी क्या कम है, जो उस समय घोर समर्थक रहे, वे आज मुझे प्रतिरोध वाले खेमे का साथी समझ बैठे हैं, ये लोग पूरी बेशर्मी के साथ मुखर होकर कुतर्क कर रहे हैं कि चलिए आप फायरबाॅल हैं, सकारात्मक होकर आप ही कोई बेहतर उपाय बता दीजिए कि कोरोना से कैसे लड़ें।

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