एक चैन है...
काम खत्म हुआ..
ठेकेदार के पास पैसा भी खत्म हुआ...
दोनों ओर से विश्वास खत्म हुआ..
मजदूर घरों को लौटने लगे...
सरकार नदारद थी, नदारद रही...
अब नहीं रोक सकता कोई...
उन्हें घर लौटने से..
क्योंकि रोकने वालों के पास कोई वजह नहीं है।
मजदूरों के पैरों का सम्मान करता यह चप्पल वितरण कार्यक्रम..
उनके आगे के सफर के लिए एक प्रोत्साहन राशि की तरह है।
मजदूर, प्रवासी मजदूर ये शब्द हमारे चिकने गालों पर..
अब एक नया तमाचा हैं।
या तो हम तमाचा खा लें,
या बचाव के लिए इन शब्दों को ही अपशब्द बना लें।
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