Sunday, 3 May 2020

Role of left in the time of corona

                          भारत में लेफ्ट के साथ सबसे बड़ी समस्या यही है कि इस समय जब पूरा देश एक विकराल समस्या से जूझ रहा हो, उसमें भी जो सबसे अधिक प्रभावित हैं, जिसे इनकी परिभाषा में सर्वहारा कहा जाता है, जिसके लिए यूटोपियन संसार के कसीदे पढ़े जाते हों, वो घुट-घुट कर मर रहा हो, और तो और सरकारी नीतियों की वजह से मर रहा हो, ऐसे समय में तो कायदे से इन्हें खुलकर सामने आना चाहिए। अरे भई जब एक किसी काॅलेज के फीस बढ़ाने के मुद्दे, और एक सरकारी कानून के विरोध में आप राष्ट्रव्यापी धरने के आयोजन‌ पर निकल पड़ते हैं, सोशल मीडिया, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक हर तरफ कुकुरमुत्ते की तरह फैल जाते हैं। अब ऐसे समय में जब पूरे देश के लोग सचमुच परेशान हैं, तब आपकी बुध्दि को क्या लकवा मार जाता है क्या?

                           जब सरकारी तंत्र बहुत से फ्रंट में बैकफुट पर आ गई हो, तब इनकी तरफ से प्रतिरोध, प्रतिवाद, प्रतिक्रिया आदि आदि की आप उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं। अभी इनके द्वारा कोई आंदोलन, विरोध प्रदर्शन (रोड पर नहीं, मीडिया माध्यमों पर ही सही) कुछ भी नहीं दिखेगा, ऐसे मौकों पर तो उल्टे सरकार से सवाल दागने चाहिए, अभी तक तो एक पूरी मुहिम खड़ी कर देनी चाहिए थी, लेकिन नहीं, आपको कहीं नहीं दिखेगा, इसलिए नहीं दिखेगा क्योंकि ऐसे मुद्दों पर इन्हें कभी अपार जन-समर्थन का चूतियापा नहीं मिलेगा, क्योंकि इस आपदा से एक बहुत बड़ा तबका प्रभावित है, जिसकी कोई क्लास आइडेंटिटी भी नहीं है। ऊपर से सीधे पेल दिए जाने की संभावना भी है, इसलिए भयाक्रांत होकर पड़े हुए हैं। कालांतर में इन्होंने इनके आकाओं ने खुद ही अपनी बर्बादी के लिए कब्र खोद रखी है तो ये बेचारे तथाकथित क्रांतिकारी पिछलग्गू क्या ही करेंगे।


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