उजाले को देखना,
बारिश में भीगना,
मौन रह जाना,
योग को महसूसना।
शरीर से चिपके कपड़ों से,
मन से चिपके विचारों से,
खुद को अलग करना,
और योग को महसूसना।
किसी को हँसते देखना,
किसी को रोते देखना,
किसी का गुस्सा देखना,
तो किसी का विलाप देखना,
योग को महसूसना।
कभी अपनी प्रतिक्रिया,
तो कभी अपना रोष,
कभी अपना उत्साह,
तो कभी अपनी बैचेनी देखना,
योग को महसूसना।
बंद करना चाहो,
तो सिर्फ आँखें नहीं,
पूरा मन शरीर बंद करना,
और फिर से शुरू करना,
इसी बीच कहीं,
योग को महसूसना।
योग व्यायाम नहीं,
योग कोई आसन नहीं,
योग इन सबसे अलग है,
योग स्थिर बैठना नहीं है,
योग अवलोकन है,
योग देखना है,
योग समझना है,
योग अपनाना है,
योग महसूसना है,
योग जोड़ते जाना है,
अपनी क्षमताओं को,
सही अनुपात में,
और बढ़ते जाना है।
योग घटाना भी है,
अपनी अयोग्यताओं को।
तुम कोई पेड़ नहीं,
तुम्हारी कोई जड़ें नहीं,
इसलिए तुम्हारा योग,
जड़/स्थिर रहने से नहीं,
आगे बढ़ते रहने से है।
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