Tuesday, 30 June 2020
टिकटाॅक, एप्प बैन और डेटा चोरी -
Sunday, 28 June 2020
Review of current chhattisgarh Government
Tuesday, 23 June 2020
Reality of Marriage in a Result Oriented Society
Paranoia in Language, Art and Culture
सुसाइड -
Monday, 22 June 2020
धमकी भरे फोन -
बाप दिवस पर बाप से चर्चा -
Sunday, 21 June 2020
सुसाइड पर चर्चा -
Saturday, 20 June 2020
बच्चों की मारपीट और मेरा बचपन
Friday, 19 June 2020
- वन संरक्षक -
B - तो?
A - भर लो, तुम भी भर लो।
B - क्यों ही करना ये सब?
A - कुछ तो करना ही है।
B - तो फिर कुछ भी कर लें हम।
A - मैं कहा, क्या पता हो जाए।
B - ऐसे कैसे हो जाएगा?
A - लोगों का तो होता है।
B - होने दो उनका।
A - तुम्हें नहीं होना?
B - जरूरत ही नहीं।
A - बढ़िया नौकरी है।
B - ये नशा तुम्हें मुबारक।
A - खूब आराम है।
B - अच्छा..
A - कुछ खास काम नहीं होता।
B - अच्छा जी...
A - मोटी कमाई है।
B - कैसे?
A - जंगल बेच डालते हैं।
B - ओह! कैसे?
A - लकड़ी, वनोपज नाम की भी चीज है।
B - वाह, क्या बात है।
A - अपने को क्या इन सबसे।
B - लेकिन पद का नाम थोड़ा अटपटा नहीं है..
A - ठीक तो है, वन संरक्षक।
B - कायदे से तो वन भक्षक होना चाहिए।
A - ऐ! तुम हमेशा नेगेटिव बात ही करोगे।
B - ठीक है, कुछ ना बोल रहा।
A - पाॅजिटिव सोचा करो यार।
B - जो आज्ञा प्रभु।
Thursday, 18 June 2020
संवेदनशीलता का व्यापार
Wednesday, 17 June 2020
मनोरोगियों का समाज और हम - अभय कुमार
Tuesday, 9 June 2020
- सरकारी कार्यवाही और मेरा बचपन -
Sunday, 7 June 2020
शाश्वत रिश्ते -
B - कर लो यकीन।
A - पहले लगा था, बात करते करते रो देंगे।
B - अरे!
A - अब देखो हँस रहे, स्माइल जा नहीं रही चेहरे से।
B - चलो मैं लोगों को हंसाना सीख गया इन गुजरते सालों में।
A - हां, तुम कैसे हो?
B - मैं बिल्कुल ठीक हूं, आप?
A - मैं भी ठीक हूं, और क्या बात करें?
B - मुझे भी समझ नहीं आ रहा।
A - स्माइल ही आ रही।
B - मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि आप से ही बात हो रही।
A - बातें करना सीख गये हो।
B - कुछ शब्द जुड़ गये हैं, बाकी वही सब पुराना है।
A - हाँ वो पता है मुझे।
B - मुझे लगा था कि अब कभी बात नहीं होगी।
A - भूल गये थे?
B - नहीं, याद करता था, लेकिन आप तो गायब थे।
A - हां, क्या करूं।
B - एक अरसा हो गया, इतना लंबा समय।
A - मैं भी सोचती थी, तुम कब कांटेक्ट करोगे?
B - लो आज कर ही लिया।
A - हाँ, कब ठीक होगा ये सब रे?
B - लग जाएंगे दो तीन साल..
A - अरे मारेगो क्या तुम मेरे को..
B - कोरोना के लिए कहा..
A - अरे हाँ, फिर ठीक है, मैं समझ नहीं पाई।
B - या शायद मैं नहीं समझ पाया।
A - पागल।
B - क्या बोलूं और? आप ही बोल दो कुछ।
A - हम समझ नहीं पा रहे, क्या कहें।
B - काश पहले ही याद कर लेता, जल्दी सब ठीक हो जाता है न?
A - हां न।
B - मैं बहुत खोजा, आप मिले नहीं। संपर्क नहीं हो पाया।
A - हाँ ये तो है। क्या करती।
B - कभी-कभी याद करता था फिर खामोश सा हो जाता था।
A - अरे क्यों?
B - पता नहीं, ऐसे ही।
A - नटखट बच्चा।
B - बेटा नहीं बुलाओगे?
A - बुलाएंगे न...क्यों नहीं बुलाएंगे
B - इतने सालों से सुना नहीं।
A - अब सुनोगे।
B - ...
B - अच्छा
A - मैं सोचती थी, बेटा भूल गया?
B - लो आज याद कर लिया।
A - क्या नया हुआ इस बीच?
B - दो किताबों में नाम छपा इस अभागे का?
A - हट, अभागा नहीं बोलते..
B - बस जो कह के सुनाता था, वो कागजों में है।
A - हमें कब दोगे किताब, बताओ?
B - जब आप चाहें, बस ये सब सामान्य हो जाए।
A - हम अब पढ़ तो नहीं पाते, हाँ लेकिन तुम्हें जरुर पढ़ेगें।
B - 😊
Saturday, 6 June 2020
Jio Addiction
जियो का नशा -
जियो ने सबसे पहले बहुत से सरकारी संस्थानों, पार्क आदि में जियोफाई बनने का काम किया, सिम तो बाजार में बाद में आया। शायद जियोफाई, जियो के सिम को लाने के लिए एक ट्रायल रहा होगा। क्योंकि जियोफाई की स्पीड इतनी जबरदस्त रही कि पार्क आदि में घंटों बस उस स्पीड का आनंद लेने के लिए लोगों की भीड़ देखते बनती थी। "इंटरनेट का लुफ्त उठाते युवा" बकायदा ऐसी न्यूज बनती थी वो भी धड़ल्ले से, क्यों ये सब होता था, समझदार के लिए इशारा काफी है। इस देश में जनगणना सर्वे के अलावा भी हजारों ऐसे सर्वे होते रहते हैं जो बड़ी मासूमियत से आपकी निजता को दीमक की तरह खोखला कर रहे होते हैं। लोकतंत्र के समस्त स्तंभों की क्रूरता समझने के लिए यह एक बहुत बढ़िया उदाहरण है। मदारी, नायक, गंगाजल, रेड, स्पेशल 26, जाॅली एलएलबी जैसी भ्रष्टाचार आधारित कबाड़ फिल्में इस क्रूरता को छिपाने के लिए एंटीडोट की तरह काम करती हैं।
एक दिन फिर मार्केट में जियो का सिम आता है, टेक्नोलॉजी के कीड़े जिन लोगों ने शुरुआत में सिम लिया, उन्होंने बताया कि काल इंटरनेट सब कुछ फ्री है, सिम भी फ्री है, अनलिमिटेट इंटरनेट है, धासू स्पीड है, लोग पागल हुए जा रहे थे, मुझे यह सब देखकर भयंकर हंसी आ रही थी और साथ ही उस फोकटछाप डेटा वितरण के पीछे की खतरनाक मंशा भी साफ दिखाई दे रही थी, तब हँस ही सकते थे। अंबानी रातों रात इंटरनेट के कीड़ों के भगवान बन चुके थे। एक ने बताया कि उसने एक दिन में 50 GB से अधिक की फिल्में आदि डाउनलोड कर ली। यहाँ तक सब कुछ अनलिमिटेड ही रहा, फिर दिखना शुरू हुआ जियो के नशे का असली स्वरूप। अब एक दिन में अनलिमिटेड डाउनलोड की लिमिट 30 GB कर दी गई, फिर 10 GB कर दी गई, फिर 4 GB और फिर शायद 2 GB में आकर मामला रूक गया। तब तक जियो के सिम का नशा मार्केट में फैल चुका था, बाकी सारी सिम कंपनियां प्रतिस्पर्धा से बाहर। और फिर जब सबको नशे की लत लगा दी तब जियो ने वापस अपने पैसे वसूलने शुरू कर दिये।