है जीने लायक तमाम व्यवस्थाएं,
लेकिन रोज करता हूं मरने की तैयारी।
हैं जरूरत के साजो सामान,
लेकिन अब जीने की तैयारियों से ऊब होती है।
लिख दिए हैं कागज की एक डायरी में,
सारी डिजिटल तिजोरियों के पासवर्ड।
जिसमें मिलेंगी कुछ लंबी यात्राओं की झलक,
मिलेंगे नदी, पहाड़, विस्तृत मैदान और चंद इंसानी रिश्ते,
कुछ अनुभव, दो-चार कहानियाँ और मुट्ठी भर कविताएं।
क्योंकि इंसान कितना भी ऊंचा हो जाए,
अपने पीछे कम अधिक इतना ही छोड़ जाता है।
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