Thursday, 30 May 2024

एक बीजेपी समर्थक व्यापारी दोस्त की जुबानी -

मैं वर्तमान सरकार का समर्थक हूं। मेरी यह इच्छा है कि इस बार भी केन्द्र में सरकार बने और बनेगी भी, मुझे इस बात को लेकर पूरा विश्वास है। लेकिन मेरी एक समस्या यह है कि किसी भी हाल में मोदी-शाह के हाथों सत्ता नहीं जानी चाहिए। आप कहेंगे कि मैं खुद उस व्यापारी बिरादरी का हूं फिर भी अपने बिरादरी के लोगों के खिलाफ कैसे बात कह रहा हूं। असल में बात ऐसी है कि हम व्यापारी लोग भले कहीं भी पहुंच जाएं, कितने भी बड़े नेता अधिकारी हो जाएं, हम लाभ हानि से आगे नहीं सोच पाते हैं। हमारा जीवन इसी के ईर्द-गिर्द होता है। हमारी बचपन से जो परवरिश होती है, परिवार में जो हमें सिखाया जाता है, उसका सार यह है कि अगर आपके पास पैसा नहीं है, आप आर्थिक रूप से भयानक मजबूत नहीं है तो आपका बाप भी आपका सगा नहीं है, हमारे यहां ऐसा ही होता है साहब। बाकी समाजों में बच्चों की अलग-अलग तरीके से ट्रेनिंग होती होगी, लेकिन हम बचपन से लाभ हानि ही सीखते हैं, हम कहीं भी चले जाएं ये तत्व हमारे खून में हमारे डीएनए में होता है। हममें एक ही जगह लंबे समय तक बैठने का हुनर है, आप इसे इस तरह से भी देख सकते हैं कि एक ही जगह घुन की तरह बैठने का काम हमारे ही हिस्से आता है। हमारे डीएनए में खेती बाड़ी नहीं है, हम एक जगह बैठकर काम करना ज्यादा पसंद करते हैं, हम यहां जोखिम उठाते हैं। सबके अपने-अपने जोखिम हैं, सबका अपना-अपना संघर्ष हैं। हमारे व्यापारियों में भी आप देखेंगे तो दिल्ली में खत्री हैं, राजस्थान में मारवाड़ी हैं, कुछ क्षेत्रों में कम अधिक संख्या में सिंधी जैन आदि हैं, लेकिन इनमें जो सबसे क्रूर आपको मिलेंगे वे गुजरात के लोग मिलेंगे। इनमें मुद्रा को लेकर जो भयावह किस्म का सनकीपन आपको दिखेगा, ये और कहीं न मिलेगा। नीरव मोदी से लेकर हर्षद मेहता और ऐसे न जाने कितने नाम है, सब के सब गुजराती, पैसे को लेकर एक अजीब का वहशीपन। एक तरह से आप ये कह सकते हैं कि जो मैंने कहा कि पैसे के लिए बाप बेटे का सगा नहीं, वह इन पर ही सबसे ज्यादा लागू होता है। क्या नैतिकता, क्या मानवीयता, क्या परिवार, क्या लोक-कल्याण, इनके लिए यह सब फालतू चीज हुई। बाकी जगह आपको ये तत्व मिल जाएंगे लेकिन गुजरात का व्यापारी वर्ग अलग ही खून का है। अब इसे इत्तफाक कहिए या दुर्भाग्य कहिए कि इस देश के राष्ट्रपिता का तमगा भी एक गुजराती के हिस्से है। और अब सत्ता में भी वही एक गुजराती है जो दिन रात अपने गुजरातीपने को दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है।

कहा जाता है कि हमारे देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था है। लेकिन अगर आप ध्यान से पिछले 10 साल को देखेंगे तो आप पाएंगे कि देश की अर्थव्यवस्था मिश्रित नहीं बल्कि पूरी तरह से गुजरात माॅडल पर चल रही है। देश न भाजपा के सिध्दांतों पर चल रहा है न ही संघ के सिध्दांतों पर चल रहा है, यह सिर्फ और सिर्फ लाभ-हानि के सिध्दांत पर चल रहा है। और इसका सबसे ज्यादा नुकसान तो हम छोटे मझौले व्यापारी झेल रहे हैं, हम अपना दुःख दर्द किसी को बता ही नहीं सकते कि हमारा कैसे चौतरफा शोषण हो रहा है। यूं समझिए कि गुजरातियों में emotional quotient सबसे कम होता है और व्यापार सबसे ज्यादा। इन सब कारणों की वजह से मैं दिल से चाहता हूं कि देश कभी भी गुजरातियों को नहीं चलाना चाहिए क्योंकि ये लाभ हानि से आगे चीजों को देख ही नहीं पाते हैं और देश लाभ हानि के सिध्दांत पर नहीं चलता है, देश परचून की दुकान नहीं है। 



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