हर शहर की अपनी कुछ पहचान होती है। इस शहर की भी है। शेयर बाजार को आज भी मुंबई नियंत्रित करता है। महाराष्ट्र दिवस हो या जैसे कल का दिन था, चुनाव था तो शेयर बाजार बंद था, इस मामले में तो देश की इस व्यवसायिक राजधानी का दबदबा है। मुंबई मां है, जी हां, इसे ऐसे ही पुकारा जाता है, क्योंकि मां कभी किसी को भूखा नहीं रखती, यहां का यही है, सबको यहां कुछ न कुछ रोजगार मिल जाता है।
सबसे पहले बात यहां के भूगोल की करते हैं, समुद्र किनारे होने की वजह से एक अजीब सी उमस साल भर रहती है। यानि ठंड के महीने में भी हवा में अजीब सी उमस बनी रहती है। मैं जब भी गया हूं, यहां की उमस को लेकर बड़ा परेशान हुआ हूं, कभी लंबा रूकने का मन ही न हुआ, जब जाता दुआ करता, कि कभी रोजगार या अन्य किसी कारण से यहां कभी लंबा रहना न पड़े तो ही बेहतर है। मुझे खुद से कहीं अधिक चिंता उन बाॅलीवुड सेलिब्रिटियों की भी होती है जो ऐसे मौसम में रहते हैं। ठीक है मान लिया दिन रात एसी में सुविधाओं में रहते हैं लेकिन खुली हवा में तो हर कोई कुछ देर के लिए ही सही रहता ही होगा। अंबानी या इस जैसे और लोग भी ये उमस झेलता होगा, क्या ही जीवन हुआ ये। इस बात में कोई दो राय नहीं कि उमस की वजह से स्किनटोन बड़ी सही रहती है, लेकिन ये क्या कि हमेशा साल भर पसीने से भीगते रहना। दस कदम चलते ही पसीना आने लगता है। गजब ही शहर है। खैर इस मामले में चेन्नई का हाल तो इससे भी बुरा है।
मुंबई की एक बड़ी अच्छी चीज यह है कि यहां लोग चलते खूब हैं, और क्या तेज चलते हैं, बस भागते रहते हैं। यहां रात भर मार्केट लगा रहता है। सही ही कहा है किसी ने कि ये शहर सोता नहीं है। सही भी है न, उमस तो दिन रात रहती है तो हर कोई क्यों रात को सोएगा, तो शहर के हिस्से निशाचर का तमगा लगना तो लाजिमी है।
खाने-पीने के मामले में ठीक है, लेकिन रहने का मामला गड़बड़ है, पूरे देश में सबसे महंगा किराया आपको यहीं मिलना है, बाकी फिल्मी सितारों तक को आसानी से ढंग का घर नहीं मिल पाता है जो कि ठीक भी है। मेरे दोस्तों में ही कुछ लोग ऐसे रहे हैं जो बड़े वाले बैंगलोर प्रेमी रहे हैं, ठीक वैसे ही कुछ लोगों को इस शहर से भी बड़ा प्रेम है। मुझे तो दोनों समझ नहीं आए कि रोजगार के अलावा खास शहर के प्रति ये प्रेम आता कहां से है।
मुंबई लोकल शहर की जान है। लोकल में जाने का थंब रूल ये है कि कभी आप अपना काॅलेज बैग पीछे मत टांगिए, सामने टांगिए। मैं अपने दोस्त के साथ गया था तो उसने भी मुझे कहा कि सामने रख लूं, चोरी होती है। मैंने कहा कि ऐसा कुछ खास है भी नहीं, मैं पीछे ही टांग लेता हूं। जैसे ही लोकल में चढ़ा, मेरा बैग एक छोटे कद के लड़के के मुंह में लग गया, उसने सीधे मुझे कहा कि भाई क्या यार, पहली बार आया है क्या मुंबई में। मैंने भी त्यौरियां चढ़ाते हुए कह दिया कि हां पहली बार। फिर वह चुप हो गया। तब मुझे बैग सामने रखने की अहमियत समझ आई। लोकल ट्रेन वैसे भी खचाखच भरी हुई चलती है इस लिहाज से भी दूसरों के लिए जगह बन जाए, इसलिए बैग सामने टांग लेना ही बेहतर है।
ट्रैफिक जाम की बात करें तो यह शहर बैंगलोर को कांपीटिशन देने की भरसक तैयारी कर रहा है लेकिन थोड़ी चौड़ी सड़कें बनी हुई हैं इसलिए ऐसा कर नहीं पा रहा है। आॅटो में आप सफर करेंगे तो ऐसा लगेगा कि आप मुंबई में नहीं यूपी में है, पूर्वांचल का लोग भरा हुआ है। अधिकतर यही लोग मुझे मिले, बाकी बिहार के लोग भी हैं। बाकी बाहरी लोगों से चिढ़ के मामले में मराठी लोग आज भी अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं, यहां भी मामला संस्कृति रक्षा से कहीं अधिक पैसे का है।
रहने की बात करें तो एक बार मैं विवश होकर बैंगलोर जैसे मृत शहर में कूट्टू परोठा और उडूपी रेस्तरां चैन के सहारे कुछ महीने रह जाऊंगा लेकिन ये मुंबई की उमस इतनी ज्यादा खराब है कि यहां कुछ दिन से ज्यादा रहने का मन ही नहीं करता है, पता नहीं कैसे यहां लोग रहते हैं, कुछ चीजें मुझ नासमझ को समझ आती ही नहीं है।
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