जब भी हमारे यहां कार खरीदने की बात आती है तो इसे अमूमन एक स्टेटस सिंबल के तौर पर देखा जाता है। कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन क्या यह एकलौता कारण है जिस वजह से लोग कार खरीद रहे हैं, नहीं ऐसा नहीं है। असल में लोग कार इसलिए खरीदते हैं ताकि वे अपमान से बच सकें, तनाव से बच सकें। अब आप पूछेंगे कि कैसा अपमान, कैसा तनाव?
अभी के समय में भले पब्लिक ट्रांसपोर्ट का जाल विस्तृत हुआ है लेकिन अब सुविधाओं के नाम पर अनावश्यक सिरदर्दी ज्यादा है। पहले बड़ी संख्या में एक आबादी जिसे 300-400 किलोमीटर का सफर तय करना होता, इस सफर को तय करने में 10-12 घंटे लगते, इसे लोग 3rd AC ट्रेन में बड़ी आसानी से कर लेते थे, लेकिन आज यह संख्या घटी है, ट्रेन में सुविधाओं की गुणवत्ता की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं है। मुझे आजतक यह समझ नहीं आया कि ट्रेन में इतना खराब इतना स्वादहीन खाना आखिर कैसे ये पैसेंजर को देते हैं, सिविक सेंस की बात है। एक शताब्दी जैसी ट्रेन में थोड़ा ढंग का नाश्ता मिल जाता है, उसकी भी आज वर्तमान में क्या स्थिति होगी, कह नहीं सकता। बाकी राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेन जो सभी राज्यों को दिल्ली से जोड़ती है, जिसमें टिकट के साथ खाना साथ में जुड़ा होता है, उसमें भी आजकल एकदम ही निचले दर्जे का खाना परोसा जाता है। और ये पिछले दशक भर में चीजें और खराब हो गई हैं, इसके लिए मैं किसी सरकार या पार्टी को दोष नहीं दे रहा हूं। ट्रेन का फेयर थोड़ा महंगा हुआ है, ये चलो कोई समस्या की बात नहीं, लेकिन अगर आप टिकट कैंसल करते हैं, उसकी पेनाल्टी बढ़ी है, जिससे लोगों का अब भारतीय रेल से मोह भंग हो रहा है। कोई मुझे कहे तो आज के समय में तो ट्रेन का सफर करने से मैं परहेज ही करूंगा। वैसे भी लोग आजकल अपने विचारों को लेकर बहुत ज्यादा कठोर और एकपक्षीय होने लगे हैं, ऐसे में एक भीड़ वाली बोगी में सफर करना आपके अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए कहीं से भी ठीक नहीं है।
अब फिर से उस बात पर आते हैं कि जो लोग 300-400 किलोमीटर कभी महीने दो महीने में ट्रेन से सफर करते थे इनके पास क्या विकल्प बचता है कि या तो वे फ्लाइट ले लें। लेकिन पिछले तीन सालों में खासकर कोरोना के बाद से जहां फ्लाइट्स की संख्या बढ़ी है, वहीं फ्लाइट के रेट्स भी बहुत ज्यादा बढ़े हैं, भले लोग जो 2nd AC ट्रेन तक में सफर करते थे, वे सब अब फ्लाइट में शिफ्ट हुए हैं। लेकिन इन दो तीन सालों में ही झटके से 1000-1500 रूपया बढ़ा दिया गया है, पैर रखने तक का स्पेस ना के बराबर रहता है, एकदम खटारा सरकारी बस में जैसे ठूंस ठूंस के भरा जाता है, वैसा कर दिया गया है, इसमें भी आपको थोड़ा बैठने लायक आरामदायक जगह चाहिए तो आप 2 से 3 हजार रूपये अतिरिक्त दीजिए, मतलब गजब ही लूट मची है। लक्जरी के नाम पर नागरिक सुविधाओं का भूसा बना दिया गया है।
अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट के सबसे छोटे स्तर के विकल्प पर आते हैं जो कि बस है। वैसे तो अमूमन बस में लंबा सफर करना हर किसी को पसंद नहीं होता है लेकिन जिस तरह से सड़कों का जाल बिछा है, उसमें आज के समय में अगर आप किसी अच्छे बस में लंबे सफर पर जाते हैं तो आपको एक अच्छी कीमत पर ठीक-ठाक सुविधाएं मिल जाती हैं, दक्षिण भारत में तो बसों का जाल बहुत ही बढ़िया है, बाकी राज्यों में भी अब बस की सुविधाओं में विस्तार हुआ है जो कि नागरिकों के लिए एक शुभ संकेत है। पहले बस की सुविधाएं इतनी अच्छी नहीं थी तो लोग ट्रेन में ही सफर करते थे, आज यह उल्टा हुआ है। ट्रेन में सफर करने वाले वे तमाम लोग जो किसी कारणवश फ्लाइट नहीं ले पाते हैं, वे बसों की ओर शिफ्ट हुए हैं।
लेकिन बात वहीं रुकी हुई है कि एक परिवार जिसे 300-400 किलोमीटर जाना है, उसके पास क्या बेहतर विकल्प है, आज के समय में जहां सबके पास तेजी से पैसा आया है, मुद्रा हावी हुई है और हमें चौतरफा संचालित कर रही है, ऐसे में कोई नहीं चाहता है कि वह सफर के नाम पर suffer करे। वह इतने लंबे सफर के लिए नहीं चाहता कि सपरिवार बस से जाए, ट्रेन में अलग भसड़ मची हुई है, फ्लाइट से जाएगा तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा। तो ऊपर लिखे गये इन सब विकल्पों से दो चार होने के बाद व्यक्ति सोचता है कि भले थोड़े पैसे लगेंगे लेकिन मैं तनावमुक्त होकर अपनी खुद की कार से जाना पसंद करूंगा। उसके पास व्यवस्था ने और विकल्प ही क्या छोड़ा है। लोग इसीलिए भी आजकल कार खरीदने लगे हैं, और सरकार को खूब सारा रोड टैक्स और टोल दे रहे हैं, सार यही है कि लोग सरकार की वजह से कार खरीद रहे हैं। सरकार ने बड़ी मासूमियत से सभी को कार वाला बना दिया है। वैसे हम फिलहाल बाइकर ही ठीक हैं, क्रूज कंट्रोल लग जाए फिर इसमें जो सुकून है, जो स्वतंत्रता है वह तो प्राइवेट जेट में भी नहीं है।
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