हमारे सामने इंसानी खोज और आविष्कारों की एक लंबी फेहरिस्त है, उसमें भोजन के प्रयोगों में मुझे व्यक्तिगत रूप से आइसक्रीम की खोज सबसे बेहतरीन आविष्कारों में से एक लगती है। भारत में खासकर गर्मी के महीने में ही लोग आइसक्रीम को याद करते हैं, इसका स्वाद लेते हैं। लेकिन मेरे साथ उल्टा है, आइसक्रीम का असली सुख तो माइनस डिग्री की ठंड में आता है, आप आइसक्रीम के सहारे उस ठंडे मौसम को अपने भीतर आत्मसात कर रहे होते हैं, वो एक ऐसा अहसास है, जो आपको किसी और मौसम में मिल ही नहीं सकता है। वह एक ऐसा सुख है जिसे ठीक-ठीक शब्दों में बयां करना आसान नहीं है, महसूस करने वाली चीज है, यूं समझिए कि इसके सामने बरसात में गरमा गरम पकोड़े खाने का अहसास भी फीका है। मैंने तो अपने जीवन का 80% आइसक्रीम ठंड के महीनों में ही खाया होगा।
भारत के अलग-अलग कोनों में घूमते हुए लगभग हर तरह की आइसक्रीम खाई है, लगभग सारे तरह के कसाटा खाए हैं, मतलब शायद ही कोई फ्लेवर छूटा हो, गाड़ी का पेट्रोल जलाने के बाद शायद जीवन का दूसरा बड़ा खर्च भोजन के नाम पर यही माना जाएगा। ठंडा गरम हर तरीके का आइसक्रीम खाया है, चाहे वो नेचुरल हो, पैरानेचुरल हो सब हर तरह का स्वाद चखा है। नेचुरल आइसक्रीम इतना ज्यादा नेचुरल हो जाता है कि उसमें आइसक्रीम वाला अहसास ही नहीं मिल पाता, पैरानेचुरल आइसक्रीम की बात करें तो आजकल अब मिलता ही नहीं है, बचपन में कटोरे में चावल के बदले चार-पांच रंग बिरंगे आइसक्रीम मिल जाते थे, दूध रहित उन आइसक्रीम का जिसे हम बर्फ कहा करते, उसका अपना अलग ही सुख था। वैसे भारत घूमते हुए मुझे बहुत से फर्जी आइसक्रीम प्रेमी भी मिले, उनमें आइसक्रीम के प्रति वैसा लगाव वैसी सनक देखने को नहीं मिली। एक अच्छा आइसक्रीम प्रेमी होने के लिए जरूरी शर्त यह है कि वह हर तरह के आइसक्रीम के प्रति लगाव रखे।
चाहे वो लोहे के रोलर में घुमाकर बनाने वाला आइसक्रीम हो या फिर आजकल वो चाकू आरी से काट काटकर रोल बनाने वाला आइसक्रीम, मैंने सबका स्वाद चखा है। पता नहीं क्यों स्वाद और प्रक्रिया दोनों में ही रोलर वाला ज्यादा बेहतर लगा, ये कसाईबाज आइसक्रीम ओवररेटेड है, फलों का भला ऐसा पोस्टमार्टम कौन करता है, बनने की प्रक्रिया में अजीब तरह की हिंसा है, इनके बड़े बड़े आउटलेट हैं, कंपनीबाजी ज्यादा है, जबरन महंगा और स्वाद भी उतना कुछ खास नहीं रहता है। एक पहाड़ों में साॅफ्टी मिलती है, वो तो सीधे सीधे आइसक्रीम का अपमान है, आइसक्रीम के नाम पर उसमें अहसास कम और धोखा ज्यादा है। एक बार अहमदाबाद में अपने एक दोस्त के स्टार्टअप में नमक वाली आइसक्रीम भी खाई है, फिर पता चला कि सेनफ्रांसिस्को में एक जगह लहसुन की आइसक्रीम भी मिलती है, मुझ लहसुन प्रेमी को एक बार वहां इसलिए भी जाने की इच्छा है।
हर किसी का अपना अलग टेस्ट होता है। किसी को ब्लैक करेंट पसंद आता है तो किसी को तिरामिसु, कोई चाकलेट पसंद करता है तो कोई ड्रायफ्रूट के कसे हुए फ्लेवर(काजू, बादाम), कोई राजभोग प्रेमी है तो कोई कुछ चुनिंदा फलों ( स्ट्राबेरी, आम, संतरा) के फ्लेवर चखने वाला। लेकिन मुझे पता नहीं क्यों केसर पिस्ता दुनिया की सबसे बेहतरीन चीज लगती है। पिछले 15-20 सालों में इतने फ्लेवर चख लिए लेकिन इसके बराबरी का कोई दूसरा मुझे नहीं मिला। भले इतने सालों में स्वाद और गुणवत्ता में थोड़ा अंतर आया है, लेकिन अहसास वही है।
आइसक्रीम के नाम पर हर राज्य में अलग-अलग कंपनियां चलती है, कहीं अमूल है तो कहीं मदर डेयरी, कहीं क्वालिटी वाल्स तो कहीं टाॅप एंड टाउन, 90's के बच्चों को वनीला स्ट्राबेरी खिलाने वाली कंपनी दिनशाॅ तो अब गायब ही हो गई है, बाकी अभी वादीलाल कंपनी के फ्लेवर बड़े सही आ रहे हैं। तस्वीर भी उसी कंपनी के आइसक्रीम की है और फ्लेवर है - केसर पिस्ता।
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