जब कभी दिल्ली का नाम सुनने में आता है तो सबसे पहले एक ही वाक्य दिमाग में आता है और वह है " दिलवालों की दिल्ली "। और इस वाक्य को मैंने चरितार्थ होते भी देखा है, यह शहर आज भी सचमुच दिलवालों की है। दस साल पहले सरकारी पेपरों की टेस्ट सीरीज के नाम पर यहां जाना हुआ था, और पहली बार में ही इस शहर ने मुझे अपना लिया और मैंने इस शहर को। थोड़े समय में ही ऐसा गहरा लगाव हो गया कि वह आज भी बना हुआ है।
किसी भी शहर को अपनाने के लिए जो सबसे बड़ा तत्व होता है, वह वहां के लोग होते हैं, उनसे की गई बातचीत ही आपका दिन बनाती है, आपको ऊर्जा देती है। इसके बाद वहां के खान-पान की बारी आती है जो कि दूसरी बड़ी भूमिका निभाती है। बस यह समझिए कि पूरे भारत भर का स्वाद सारी डिशेज आपको गुणवत्ता के साथ और बहुत ही कम रुपयों में यहां मिल जाती है, घर से निकलते ही गली में ही आपको मनपसंद की चीजें मिलने लगेंगी, चाहे बेकरी की चीजें या गरमा गरम बिस्किट, चाट का तो क्या कहूं मुगलकाल से ही इसके उद्भव का विशद इतिहास है। इतने तरह-तरह के जूस आसानी से मिल जाएंगे, क्या ही कहने। चाहे नार्थ ईस्ट की डिश हो या साउथ इंडियन, सब कुछ दिल्ली में जबरदस्त मिलता है। इस शहर के खान-पान के बारे में अगर लिखने लगूं तो शायद अलग से कुछ पेज जोड़ने पड़ेंगे, इसलिए इसे यहीं विराम देते हैं।
मुझे बाकी लोगों का नहीं पता, लेकिन यहां के लोग, यहां की बोली भाषा यहां के लोगों का तेवर, सब कुछ मुझे बेहद पसंद है। लोग बेझिझक खुलकर बात करते हैं, ऊंचा बोलते हैं। आप किसी छोटे से ठेले चौपाटी कहीं भी कुछ खाइए, आप जैसे अतिरिक्त चटनी या कुछ मांगेंगे आपको इतना दे दिया जाएगा कि आपको मना करना पड़ेगा। इतने मन से खिलाते हैं कि दिन बन जाता है। दिल्ली में रहते जब पहली बार आटो में सफर करना हुआ तो रास्ते में बैठने वाली एक सवारी ने जो 40°C की गर्मी की शाम में मोमो की प्लेट लेकर चढ़ रहा था, दिन भर का काम निपटाकर आफिस से लौटता वह नौजवान उस चलते आटो में बाजू में बैठे मुझ अनजान को कहने लगा कि लो भाई साहब आप भी खाओ। ये मेरे लिए बहुत अलग अनुभव था। मतलब मौज में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। ये वाला पागलपन आपको सिर्फ और सिर्फ दिल्ली में ही मिल सकता है, कुछ लोगों को शायद यह सब से असहजता हो जाएगी लेकिन मैं तो इसमें इस शहर से पैदा हुए अपनेपन को महसूस करता हूं। एक रिक्शेवाला भी 20-30 रुपये में कुछ किलोमीटर जब आपको ले जाएगा, वह आपसे खुले दिल से बात करेगा, आपको शहर के वर्तमान और इतिहास से जुड़ी कुछ बातें बताने लग जाएगा, आप एकदम ही शांतचित्त किस्म के हों तो बात अलग है, वरना उससे बात करते-करते आप इस शहर को महसूस कर लेंगे। एक बार पटेल नगर चौराहे में एक रिक्शावाला अचानक गिर गया, मिर्गी के दौरे से छटपटाने लगा, मैं यह सब दूर से देख रहा था, जैसे ही पास पहुंचा, एक जवान लड़का जो दौड़ते वहां पहुंचा था, उसे तुरंत कंधे में उठाकर एक दूसरे आटो में बैठाया और पास के सरकारी अस्पताल में छोड़ आया, सब कुछ मिनट भर के अंदर हो गया। जवान लड़का मेरे यहां के मकान मालिक का ही बेटा था। इस तरह का वाकया मैंने किसी और शहर में अभी तक नहीं देखा है। ऐसे न जाने कितने अनुभवों की एक लंबी फेहरिस्त है।
दिल्ली का आदमी अपने आज को संपूर्णता में जीता है। कल जो होगा देखा जाएगा, वह अपने आज में बिल्कुल भी समझौता नहीं करता है, तनाव चीज क्या होती है, दिल्ली का आदमी नहीं जानता है, छोले कुलछे और कचौरी समझ कर वह रोज तनाव का भोग कर बड़ी आसानी से पचा लेता है। ऐसा स्किल आपको भारत में किसी और शहर के लोगों में नहीं मिलेगा। दिल्ली के लोगों के तनाव झेलने की क्षमता का कोई सानी नहीं है। एक दिल्लीवाला यही मानता है कि जीवन की सबसे बड़ी लक्जरी यही है कि तमाम विद्रूपताओं के बावजूद इंसान अपना आज पूरी जीवटता से जिए। एक वाक्य में कहें तो यह शहर चलते-फिरते डोपामाइन की खान है। आप कितने भी निराश उदास हों, आपको यह शहर ऊर्जावान करते हुए एक गति दे जाता है। दिल्ली की तासीर कुछ ऐसी ही है।
दिल्ली में बहुत से बाहरी लोग आकर काम करते हैं। उनके लिए कहा जाता है कि दिल्ली में काम करने वालों का पैसा दिल्ली में ही रह जाता है। यह बिल्कुल सही बात है, आप इस बात की गहराई में जाएंगे तो आपको सहज ही इसमें दिल्ली की खूबसूरती समझ में आ जाएगी। बाकी शहरों में यह होता है कि लोग किसी शहर में एक मजदूर की भांति जाते हैं, काम करते हैं, सेविंग करते हैं और लौट आते हैं। लेकिन दिल्ली के साथ यह ऐसा नहीं है। यहां लोग इस शहर की अपनी धुन के साथ कदमताल करते हुए जी भरके लुटाते हैं और जीवन को संपूर्णता में जीते हैं, इतने खुशमिजाज लोग आपको भारत के और किसी महानगर में नहीं मिलेंगे। तपती गर्मी में रेहड़ी खिंचते व्यक्ति के चेहरे में भी आपको एक अलग ही किस्म की जिंदादिली देखने को मिलेगी, जीवन के प्रति एक आग्रह देखने को मिलेगा।
दिल्ली में साल भर बहुत अलग-अलग तरह के मेले लगते हैं, उनमें एक प्रसिध्द विश्व पुस्तक मेला भी है। वैसे तो पुस्तक मेले देश के और भी महानगरों में लगते हैं लेकिन जो बात दिल्ली में है, वो कहीं और कहां। इसमें कहीं से भी अतिशंयोक्ति नहीं है, आप जाएंगे, आपको खुद अंतर महसूस होगा।
यहां जैसे किसी बच्चे का जन्म होता है या जैसे किसी की मौत भी होती है, तो इस अवसर पर उस परिवार के लोग आपको सड़क किनारे कहीं भंडारा खिलाते मिल जाएंगे। ये वाली संस्कृति दिल्ली में खूब चलती है। एक शहर के न जाने कितने ऐसे रंग होते हैं।
इतनी बातें हो गई अब मौसम की बात कर लेते हैं। चूंकि यह दिलवालों की दिल्ली है तो यहां सब कुछ एक्सट्रीम होता है। ठंड के मौसम में ठंड ऐसी कि हड्डियां गला दे और गर्मी के मौसम में वैसे ही प्रचण्ड गर्मी, बारिश में कई जगह मीटर पार पानी भर जाता है, तो दिल्लीवासी उसमें भी बोटिंग करने निकल जाते हैं। एक कुत्ता जिस बेरहमी से हड्डियां चबाता है, कुछ उसी तरह दिल्ली का आदमी तनाव को चबा के फेंक देता है। आपको यहां अतिवादिता महसूस होगी, लेकिन यहां का तो यही फ्लेवर है, और इसी आनंद में यह शहर जीता है। हर बार मौसमी तूफान भी खूब इस शहर के हिस्से आता है, और तो और साल में एक दो भूकंप भी यह झेल लेता है। लेकिन इस शहर के लोगों की जिजीविषा ऐसी है कि ये सब कुछ पूरी मौज के साथ झेल जाते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए इनका तेवर, इनकी मौज, इनकी खुमारी बरकरार रहती है।
आप इतना पढ़ने के बाद कहीं न कहीं यह सोच रहे होंगे कि यह तो नाइंसाफी है, दिवाली में इतना प्रदूषण और रेप जैसे विवादित मामलों से इतर दिल्ली के प्रति इतनी सदाशयता, सब कुछ मानो चासनी में लपेटकर पेश किया गया है। नहीं, ऐसा नहीं है। असल में सबका अपना नजरिया होता है, हमारी अपनी पृष्ठभूमि का भी अहम रोल होता है कि हम चीजों को कैसे देखते हैं, मुझे तो दिल्ली ऐसा ही दिखता है, प्रदूषण आज कम अधिक हर शहर में एक जैसा ही है, पानी की समस्या यहां भी खूब है। लेकिन इससे मेरी स्मृति में जो दिल्ली है, उस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, पता नहीं क्यों मुझे यह शहर जीवन के प्रति एक अलग ही रोमांच से भर देता है, यहां की आबोहवा, यहां का मेट्रो, यहां के लोग, यहां का खाना-पीना सब कुछ जुदा है। इतना लिखने के बावजूद बार-बार ऐसा लग रहा है कि कितना कम लिखा है, मानो बहुत कुछ छूट रहा हो। अंत में यही कि यह शहर कम और कला का एक बेजोड़ नमूना अधिक है, इसलिए आप देखेंगे कि जो एक बार दिल्ली आता है, वह हमेशा के लिए दिल्ली का होकर रह जाता है, यह शहर उसके भीतर रच बस जाता है।
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