Thursday, 16 May 2024

Life in Bangalore

मुझे अगर किसी शहर के लिए भड़ास निकालने को कहा जाए तो मैं इस एक शहर के लिए एक पूरी किताब लिख सकता हूं, इतना‌ मेरे पास इस शहर की मनहूसियत को लेकर कंटेंट भरा पड़ा है। 

सबसे पहले इस शहर के भूगोल की बात करते हैं। असल में बैंगलोर की अपनी भौगोलिक अवस्था की वजह से इस पूरे क्षेत्र में साल भर खुशनुमा मौसम रहता है जो आपको इतना सुस्त कर देता है कि आपको कहीं और रहने लायक नहीं छोड़ता, असल में इसके पीछे प्रदूषण भी बड़ा कारण है। पिछले कुछ सालों में कांक्रीटीकरण और तमाम तरह के प्रदूषण आदि की वजह से थोड़ी सी गर्मी यहां भी बढ़ी है लेकिन बाकी अन्य बड़े महानगरों की तुलना में मौसम सुहाना ही रहता है। आईटी कंपनी का हब होने की वजह से पैसे का फ्लो जमकर यहां आया। और पैसे का फ्लो आया तो शेष भारत के अलग-अलग हिस्सों से भी लोग पहुंचने लगे। जो उस रोजगार के माॅडल के हिसाब से योग्य था उसने अपने हिस्से का रोजगार लपक लिया। और यहां के स्थानीय लोग जिनको आज भी बाहरी लोगों से भाषा संस्कृति आदि को लेकर समस्या है, उनके पेट में मरोड़ होने लगी, वैसे इसका मूल कारण असल में संस्कृति से कहीं अधिक मुझे रोजगार लगा या यूं कह सकते हैं कि सारा मसला पैसे का ही है। लालच किनमें नहीं होता, लेकिन यहां के स्थानीय लोगों में यह अलग ही निम्न स्तर पर आपको दिखाई देगा। तभी आप पाएंगे कि पूरे भारत में यही एकलौता शहर है जहां अगर आप 10-15 हजार रूपये का कमरा भी किराए पर लेते हैं तो आपको सिक्योरिटी मनी के रूप में अधिकतम 1 लाख रूपये तक जमा करना होता है। बाकी पूरे देश में कहीं आपको ऐसा नहीं मिलेगा। अधिक से अधिक आपको यही देखने को मिलेगा कि दो महीने का किराया आप एडवांस में दे दीजिए बस। लेकिन चूंकि यह नम्मा बैंगलोर है, जैसा कि इसे चाहने वाले लोग कहते हैं तो यहां कुछ भी नौटंकी जायज है। 

बैंगलोर में एक और चीज जो बड़ी विचित्र है वो यह है कि यहां इस शहर के पास अपना पानी ही नहीं है। आपको पीने, नहाने, धोने हर चीज के लिए पानी खरीदना होता है। आप अपने घर में पानी स्टोर करने के लिए बड़ी 1000-2000 लीटर की टंकी बनवाइए और उसमें टैंकर मंगवा के पानी स्टोर करिए। छी छी, ये भी कैसा जीवन हुआ। भले आप कितना भी कमाते हों, लेकिन आपका कमाई का एक बड़ा हिस्सा तो पानी में ही चला जाता है। 

आरटीओ की बात कर लेते हैं। पूरे देश में सबसे ज्यादा टैक्स यहीं है।‌ आपको कोई भी नई कार या बाइक लेनी है तो पूरे देश में आपको यहां सबसे महंगा मिलेगा। जब मैं पहली बार बैंगलोर पहुंचा तो मैंने अपने सर से ऐसे बात-बात में बैंगलोर की महंगाई को लेकर बात छेड़ी तो उन्होंने कहा कि कभी भी यहां के पुलिस के हाथ मत लगना, पूरे देश के सबसे करप्ट पुलिस वाले यहीं मिलेंगे। यहां की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था पूरे देश के सबसे भ्रष्टतम व्यवस्था में से एक मानी जाती है। धीरे-धीरे मुझे कारण समझ आ रहा था। यह भी समझ आ रहा था कि मेरे सर जो हिन्दी बेल्ट के थे उन्होंने यहां रहते हुए धाराप्रवाह कन्नड़ बोलना क्यों सीखा, ताकि कुछ तो राहत मिले, नब्ज पकड़ में आए, खेल समझ आए। 

अब ट्रैफिक की बात कर लेते हैं। पूरे देश में सबसे घटिया ट्रैफिक जाम अगर कहीं का है तो वह बैंगलोर का ही है। शहर बन गया है, लोगों का दबाव बढ़ा है, लेकिन सड़कों का‌ जाल वैसा है ही नहीं। भयानक जाम लगता है। एक औसत बैंगलोर वासी का तो रोज का कम‌ से कम दो से तीन घंटा जाम में ही बीत जाता है। एक मेरे आईटी कंपनी वाले दोस्त ने दोपहर से रात 10 बजे वाला टाइम स्लाॅट बस इसलिए ले रखा था क्योंकि दोपहर में जाते वक्त और रात को लौटते वक्त अपेक्षाकृत कम ट्रैफिक होता है जिससे समय की बचत हो जाती थी, तनाव कम महसूस होता था। ट्रैफिक जाम की बात निकली है तो लगे हाथ एयरपोर्ट की बात कर लेते हैं, शहर से 45 किलोमीटर दूर में स्थित है, आप शहर के किसी भी कोने से जाइए आपको कम से कम 2-3 घंटे लगेंगे ही लगेंगे। यानि आपको अगर कोई कार से ड्राॅप करने जाता है तो उसके वापस घर पहुंचने से पहले आप फ्लाइट से अपने गंतव्य तक पहुंच जाते हैं। 

अब खान-पान पर आते हैं। एक उत्तर या मध्य भारतीय के लिए तो यहां खाना पीना महंगा ही कहा जाएगा, आपको ढंग के रेस्तरां नहीं मिलेंगे, न ही रोटी या पराठे या वैसा स्ट्रीट फूड का अच्छा कल्चर मिलेगा जैसा हिन्दी बेल्ट वाले शहरों में आपको मिलता है। इस बात से पूरी सहमति है कि साउथ इंडियन फूड हेल्दी होता है, लेकिन इडली दोसा सांभर और मोटे चावल से भी आगे की दुनिया है, एक समय के बाद रोटी पराठा दाल फ्राई ये सब चाहिए होता है। ऐसा नहीं है कि बैंगलोर इतना बड़ा शहर है तो यहां ये सब नहीं मिलता है, मिलता सब है लेकिन आपको बहुत इसके लिए मेहनत करनी पड़ेगी, खोजना पड़ेगा और अपेक्षाकृत महंगा मिलेगा। वैसे यह भी एक विडंबना ही कहिए कि आपको देश के बढ़िया पब और रेस्तरां यहीं मिलेंगे, भले बाकी शहरों से महंगे हैं, लेकिन एक क्लास बना रखा है। 

जब भी किसी शहर को जीने और महसूस करने की बात आती है तो उसके कुछ पैमाने होते हैं। शहर को आप चौक चौबारों में, पान की गुमटी में, ठेलों रेहड़ियों में, फल सब्जी के बाजार में, नुक्कड़ चौपाटी में, परचून की दुकान में, अलग-अलग शापिंग काॅम्पलेक्स में, उसकी ट्रैफिक और शोर कोलाहल में, लोगों के चेहरों में और उनकी भाव-भंगिमा में, लोकव्यवहार के तरीकों में और उनके पहनावे में, आटो टैक्सी और बस में सफर करते फ्लाईओवर से लेकर अंडरब्रिज में या पार्क गार्डन में टहलते हुए पेड़ पौधों और फूलों तक में महसूस करते हैं। मोटा-मोटा यही तरीका होता है। शहर आपसे बातें करता है, आपसे कुछ पूछता है, आपमें कौतूहल पैदा करता है और अपने बारे में भी बताता है, लेकिन यह शहर न कुछ पूछता है न बताता है। यहां आपको सिवाय हाय पैसा के कुछ भी महसूस ही नहीं होता है। 

अंत में यही कि अधिकतर देखने में आता है कि इस शहर में लोगों को वाइब महसूस होती रहती है, मुझे तो साल भर में एक दिन भी महसूस नहीं हुई, साल भर रहते हुए भी मुझ जैसा घूमने फिरने वाला व्यक्ति एक दिन भी कहीं अलग से नहीं गया। मरूस्थल की भांति सूखा व्यवहार करने वाला शहर, इतने कठोर और शुष्क से लोग, क्या सिर्फ भाषा संस्कृति अलग-अलग होना इतना बड़ा अंतर पैदा कर सकती है या फिर मुद्रा का खेल है, जो भी हो लानत पहुंचे ऐसी सूखी नफरती संस्कृति पर। असल में देखा जाए तो इस शहर की अपनी कोई आबोहवा ही नहीं है, यहां लोग मिलते-जुलते नहीं है, मेल-जोल के नाम पर सिर्फ लेन-देन करते हैं, यह शहर न आपका हाल-चाल पूछता है, न अपना हाल-चाल बताता है, यह शहर किसी एक बैंक की तरह सुबह से शाम बस ट्रांजेक्शन और डिपाॅजिट करने वाले मोड में ही रहता है। ( दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों में ये चीज इतनी ज्यादा नहीं है ) संवेदना रहित इस शहर में सिर्फ शनिवार और रविवार को लोग जी भरकर वाइब महसूस करते हैं, और मोटे पैसे देकर किसी पब में जाकर नम्मा बैंगलोर कहकर इस शहर का गौरवगान करते हैं। 

No comments:

Post a Comment