Tuesday, 31 January 2017

-जादूगर गायब हो गया-

                 एक शहर में एक जादूगर हुआ करता था।दो चार जादू दिखाकर वो ठीक-ठाक कमाई कर लेता था। एक समय ऐसा आया कि लोग उसके जादू से ऊबने लगे। क्योंकि जादूगर के पास लोगों को दिखाने के लिए कुछ भी नया नहीं बचा था। आखिरकार जादूगर का धंधा पूरा बैठ गया। उसने बहुत सोच-विचार किया, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं दिखा, जादूगर को अपने बारे में ये बहुत अच्छे से पता है कि उसके पास अब कोई नयापन बचा नहीं है, रचनात्मकता की कमी है।        
                 एक दिन जादूगर को उपाय सूझा कि वह लोगों को वही दिखाएगा जिसमें लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। और उसने लोगों की भावनाओं के बीच जादू परोसना शुरू किया, उसने कुछ पौराणिक कथाएं उठाई और अपने तरीके से पेश करना शुरू कर दिया, बहुत से नये नये मिथक गढ़ लिए,  जादू भी दिखाता और अपनी बनाई मिथकीय बातों से लोगों का मनोरंजन भी करता। जादू और कहानियों का ये मिश्रण लोगों को खूब भाया, लोग जादूगर को देखने के लिए दूर-दूर से आने लगे, जादूगर की चर्चाएँ होने लगी, आये रोज टेलीविजन और समाचार पत्रों में उसका नाम आने लगा। अब जादूगर पहले से कहीं ज्यादा विश्वसनीय हो चुका था। लोगों की नजर में अब वो एक भरोसेमंद कलाकार था।
                  इसी बीच जादूगर ने जनमानस के बीच कुछ ऐसा कर दिया की लोग नाराज हो गये। असल में जादूगर कई बार अपने स्वार्थसिध्दि के लिए जादू के माध्यम से लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचा देता था। जादूगर को भी अच्छे से पता है कि उसकी इस छेड़खानी से लोग गुस्सा होंगे, विरोध करेंगे, लेकिन उसकी चर्चा तो होगी ही। लोग फिर से उसका जादू देखने आएंगे ये जानने के लिए कि वो ऐसी क्या गलती करता है, जो लोग इतने खफा हैं। जादूगर इस मनोविज्ञान से भली-भाँति परिचित था। वो ये सब करके बहुत खुश होता था। कई बार तो वो जादू दिखाता था और मंच पर लोग चप्पल जूते फेंक देते। जादूगर उन अतिउत्साही आस्थावान लोगों की हरकत से अपने हिस्से की सहानुभूति खोज लेता, तुरंत चप्पल उठाता और सीने से चिपकाकर शुक्रिया अदा करता। कई बार जादूगर सही गलत की तर्कणाओं से काफी आगे निकल जाता, उसे भी ये अच्छे से पता था कि ये भारतभूमि है यहां जनमानस की सात्वंना हमेशा मार खाने वाले के साथ होती है न कि मारने वाले के साथ। और कुछ इस तरह जादूगर का कद अपने प्रशंसकों की नजर में और बढ़ने लगा। अब उसका धंधा दुगुनी गति से फलित होने लगा।
                   शहर में ऐसा माहौल पनपने लगा कि लोग भ्रमित होने लगे, क्या सही क्या गलत, लोग इसका फैसला नहीं कर पा रहे थे। मतिभ्रम की इस स्थिति से निपटने के लिए शहर के कुछ जिम्मेदार लोगों ने एक संयुक्त सभा का आयोजन किया। बहुत से नेता, लेखक, पत्रकार, शिक्षकगण एवं प्रशासनिक अधिकारी शामिल हुए। सब ने मिलकर सर्वसम्मति से ये फैसला लिया कि हर उस व्यक्ति/विषयवस्तु को लोगों की पहुंच से दूर रखा जाए जो सिर्फ और सिर्फ लोगों को भ्रमित करते हैं और उनके मनोविज्ञान में बेवजह दखल डालते है।
                   अब इस फैसले के आने से ऐसा हुआ कि जादूगर जब भी कहीं जादू दिखाता, उसके बारे में लोगों ने पेपर में छापने से मना कर दिया। जादूगर ने ज्यादा पैसे चुकाने की बात रखी, फिर भी कोई राजी न हुआ। पोस्टर वालों ने उसके पोस्टर छापने से भी मना कर दिया, बदले में साफ-साफ कह देते कि ये पाप हमसे मत करवाइए, अपने बीवी-बच्चों की नजर में हम और नहीं गिरना चाहते। धीरे-धीरे जादूगर का धंधा ठप पड़ गया। जादूगरी के इस मिथकीय मिश्रण की कमर टूट चुकी थी। जादूगर ने तंग आकर सामान समेटा और शहर छोड़ दिया। किसी को नहीं पता कि अभी वो जादूगर कहां है।
और कुछ इस तरह जादू दिखाने वाला वो जादूगर हमेशा के लिए गायब हो गया।

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