Sunday, 1 January 2017

जुबान का फर्क -॥

कल रात स्टेशन रोड पर मुझे मेरे कालेज के एक प्रोफेसर दिखे। हां जिन्हें हम Faculty पुकारते थे। पांच मिनट तक वे वहां खड़े रहे, शायद कहीं से आ रहे होंगे, मैं छिपकर उन्हें देखता रहा, लेकिन मिल नहीं पाया, थोड़ी देर के बाद उन्हें कोई लेने आ गया और वे वहां से चले गए। पता है मैं उनसे क्यों नहीं मिला, क्योंकि मेरे को उनका नाम याद नहीं आया, मैंने बहुत कोशिश की लेकिन आखिर में सिर पकड़ के बैठ गया, दूर से छिप के बस उन्हें देखता रह गया। 
कल जो हुआ ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी।
                       आप सोच रहे होंगे कि कोई अपने टीचर का नाम कैसे भूल सकता है। वो भी मेरे जैसा इंसान जिसे अपने KG-1 की मिस के पहनावे और कान के झुमके से लेकर चूड़ियों के रंग तक याद होते हैं। जिसे ये याद है कि जब वो चार साल का था तो अचानक से एक कोई साधु बाबा आये थे और हाथ में ताबीज देकर तुरंत कहीं चले गये थे। जिसे ये भी याद है कि जब वो छः साल का हुआ तो सबसे पहली बार चेतना के स्तर पर जाकर इसलिए रोया था क्योंकि उसने गलती से बहकावे में आकर स्कूल से एक चाक चुरा ली थी।लेकिन कल क्या मेरी मति मारी गई थी। आखिर क्यों मुझे अपने ही सर का नाम याद नहीं आया। इसे जानने के लिए चार साल पीछे चलते हैं।
                      वे जब हमें क्लास में पढ़ाते थे, तो हमारे मैकेनिकल डिपार्टमेंट में सिर्फ एक ही लड़की थी।वो अच्छा पढ़ाते थे, लेकिन यहां बात उनके विषय विशेषज्ञता को लेकर बिल्कुल भी नहीं है। अगर वो अच्छा नहीं भी पढ़ाते तो भी कोई मलाल न होता। असल में जब किसी स्टुडेंट से कोई लापरवाही होती तो उस समय उनकी भाषा कुछ ज्यादा ही खराब हो जाती। चूंकि हमारे क्लास में एक ही लड़की थी। वे उस लड़की को कैंटीन या बाहर पानी पीने भेज देते। और फिर पूरे क्लास के ऊपर अपशब्दों की बौछार कर देते। कुछ सामने बैठे लड़के बेवजह डरने जैसा चेहरा बनाते, कुछ लोग उनके बर्ताव को नोटिस करते तो कुछ लोग उन्हें बाद में बराबर गाली देते।
                       हमारे उन कुछ प्रोफेसर्स का लहजा कुछ ऐसा होता जैसे कि वे कोई ठेकेदार हैं और हम छात्र उनके कामगार और ये पांच-छह महीने तक हम उन्हीं के भीतर काम करेंगे। गालियां भी सुनेंगे और उनके साथ चाय-नाश्ता भी करेंगे, सेशनल नंबर ऐसे लेंगे मानो उन्होंने अपने घर से लाकर हमें दिया है। कभी-कभी लगता है एक ठेकेदार भी तय समय में काम लेने के लिए अपने कर्मियों से कभी ऐसे बर्ताव नहीं करता होगा।
                      जब जब टीचर्स अपशब्दों की बौछार करते। मैं उसी समय क्लास से बाहर हो जाता। मेरे दोस्त सोच रहे होंगे कि ये कब बाहर गया, ये तो हमारे साथ ही बैठा रहता था। हां मैं अपना शरीर वहीं छोड़ देता और बड़े भारी मन से कहीं और ही कुछ देर के लिए घूमने चला जाता, अब समझ आता है कि मैं पूरे चार साल उस कैम्पस में होकर भी नहीं था। हां ये तकलीफ़देह है, और ये तकलीफ किसी प्रेमी को उसके प्रेम में मिली विफलता से कहीं ज्यादा बड़ी है।
                     जब हमारे टीचर्स ऐसे सुनाते तो लगता कि इनके पास टेढ़े बच्चों को समझाने का कोई और तरीका क्यों नहीं है। कभी लगता कि जाकर घुटने टेक दूं और कहूं कि हमें माफ करें आप, हम ऐसी भाषा और नहीं सुन पायेंगे, ऐसे में आप हमें एस्ट्रोनामी भी पढ़ायेंगे तो भी सुनने का मन नहीं लगेगा। मेरी स्मृतियों को इससे पहले इतना नुकसान कभी न हुआ था। आगे चलके ऐसा हुआ, समझ लीजिए कि मैंने तार ही काट दी, टोटल बायकाट। मतलब नहीं चाहिए आपकी दी हुई पढ़ाई। कुछ इस तरह ऐसे सारे टीचर्स मेरी स्मृतियों से मिटते गए, मैंने ऐसे सभी लोगों को संजोने की कोशिश भी की, लेकिन सब कहीं पीछे छूटते गए।
                     मैंने उन सीनियर्स को भी संजोने की कोशिश की जो हमें इंजीनियरिंग का पहला मंत्र यही सिखाते की बिना अपशब्दों के, बिना किसी नशे के आपकी यहां दाल नहीं गलेगी। जो उम्र में हमारे बराबर के ही होते वो हमें इतनी तल्लीनता से बेटा पुकारते कि लगता यही हमारे माई बाप हैं। सच कहूं मेरे मां-बाप ने आज तक मुझे इतनी बार बेटा नहीं पुकारा होगा जितना हमसे एक साल बड़े इन सीनियर्स ने पूरे तीन-चार साल में पुकारा।
                     मुझे कभी-कभी लगता, अरे! नहीं मुझे रोज ऐसा लगता कि पढ़ाई के लिए घर से बाहर क्या निकला, किसी दूसरी दुनिया में ही आ गया। हां पूरे चार साल, आठ सेमेस्टर यही लगता रहा। किसी से कह न पाया कि मुझे ऐसी ऐसी समस्या है, मुझे बड़ी घुटन सी होती है, कोई तार दीजिए, इस उलझन से मुझे बाहर निकालिए, कुछ जादू सा कर दीजिए भाई, कर दीजिए समाधान। मैं इस आबोहवा में कहीं पागल न हो जाऊं, संभाल लीजिए। एक बार तो मैंने एक ज्योतिषी से भी संपर्क किया, उन्होंने भी कुछ साफ-साफ नहीं कहा तो खाली हाथ वापस आ गया। अब जब मेरे पास और कोई रास्ता शेष न था तो किसी प्रकार का कोई विरोध न करते हुए मैंने अपने हाथ-पाँव ढीले कर लिए, खुद को हमेशा-हमेशा के लिए अनजान से हाथों में सौंप दिया और फिर चारों तरफ की अंधेरी गहराइयां मुझे उछालती रहीं, उछालती रहीं।

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