आज वो गमले में पानी डाल रही थी। अचानक से वो ठहर गई, एक गाय को वो देखने लग गई, हां एक गाय के द्वारा वो रोक दी गई। इतनी जिज्ञासा भरी आंखें वो भी एक पालतू पशु के लिए। फिर मैंने जब उस गाय को देखा तो पता चला कि वो कचरे के ढेर में पड़ा बासी खाना खा रही थी। लेकिन उस दस साल की लड़की ने उस गाय की इस छोटी से हरकत में ऐसा क्या देख लिया कि वो ऐसे स्थिर हो गई। शायद वो ये तो नहीं सोच रही कि उस गाय को यहां से दूर चले जाना चाहिए, शायद वो चिल्ला कर कहना चाहती है कि मत खाओ ...ये खाना, और रुको, थोड़ा संभल के, वहां पास में प्लास्टिक की थैलियां भी है, तुम उनसे दूर रहना। अगर वहां कहीं स्टेनलेस स्टील के ब्लेड के टुकड़े होंगे तो कैसे करोगी, पता है तुम्हारे लिए ये कितना तकलीफ भरा होगा। तुम दर्द से रोने लगोगी और कोई यहां तुम्हारी नहीं सुनेगा। इसलिए अब मैं और तुम्हें नहीं देखना चाहती। काश मैं तुम्हें अपने इस छोटे से घर में रख पाती, लेकिन ये संभव नहीं है। मेरी विवशता अब यही चाहती है कि तुम इस कचरे के ढेर से हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाओ और मुझे इस जन्म में फिर कभी न दिखो।
लेकिन वो जब इतना सोच रही थी तो उसने कोलाहल का सहारा क्यों नहीं लिया। क्यों वो एकटक उस गाय को निहार रही थी। क्या सच में उसने एक पशु की पीड़ा को अपना लिया था। उसे देखने पर ऐसा मालूम हुआ जैसे एक गाय का दर्द उसके लिए अटूट करूणा का बहाना बन गया हो, उसने एक बड़ी अजीब सी खामोशी को अपने अंदर संभाल के रख लिया हो, हां कुछ है जिसे मापना असंभव सा है, इसी मौन रूपी खामोशी के दर्शन शायद आंख वालों को ही होते हैं।
उस लड़की ने थोड़ी देर बाद फिर से गमले में पानी देना शुरू कर दिया, इसी दौरान आज उसने फिर से मुझे देखा। उसके घर के छत की ऊंचाई मेरे कमरे की छत की ऊंचाई से काफी कम है और मेरे कमरे से पश्चिम दिशा में उसका घर होने की वजह से वो मुझे सिर उठाकर देख रही थी। सुबह की धूप सीधे उसके आंखों में पड़ रही थी अब उसने अपने दोनों आंखों को एक हाथ से छाया देते हुए सायबान जैसा बना लिया। उसने कुछ देर मुझे देखा फिर वो गमलों में पानी देकर चली गई। उसने आज जिस तरह से मुझे देखा, ऐसा लगा जैसे वो मुझसे आग्रह कर रही हो कि आप कृपा करके इस गाय को या तो यहां से कहीं और ले जाइए या किसी साफ सी जगह में ही बासी खाना परोस दीजिए। शायद वो हमें एक संदेश देकर छुप जाना चाहती है कि ये जो भी सब हमारे आसपास हो रहा है, इससे मैं संतुष्ट नहीं है। मैं बार-बार अपनी खामोशी से विरोध करूंगी, नाराजगी जताऊंगी। आपको अगर कुछ लगता है, आपके ह्रदय तक अगर सूचना पहुंचती है तो आप इसे ठीक करने को प्रयत्नशील हों। मैं चुपचाप मुस्कुराकर आपका अभिवादन करूंगी।
लेकिन वो जब इतना सोच रही थी तो उसने कोलाहल का सहारा क्यों नहीं लिया। क्यों वो एकटक उस गाय को निहार रही थी। क्या सच में उसने एक पशु की पीड़ा को अपना लिया था। उसे देखने पर ऐसा मालूम हुआ जैसे एक गाय का दर्द उसके लिए अटूट करूणा का बहाना बन गया हो, उसने एक बड़ी अजीब सी खामोशी को अपने अंदर संभाल के रख लिया हो, हां कुछ है जिसे मापना असंभव सा है, इसी मौन रूपी खामोशी के दर्शन शायद आंख वालों को ही होते हैं।
उस लड़की ने थोड़ी देर बाद फिर से गमले में पानी देना शुरू कर दिया, इसी दौरान आज उसने फिर से मुझे देखा। उसके घर के छत की ऊंचाई मेरे कमरे की छत की ऊंचाई से काफी कम है और मेरे कमरे से पश्चिम दिशा में उसका घर होने की वजह से वो मुझे सिर उठाकर देख रही थी। सुबह की धूप सीधे उसके आंखों में पड़ रही थी अब उसने अपने दोनों आंखों को एक हाथ से छाया देते हुए सायबान जैसा बना लिया। उसने कुछ देर मुझे देखा फिर वो गमलों में पानी देकर चली गई। उसने आज जिस तरह से मुझे देखा, ऐसा लगा जैसे वो मुझसे आग्रह कर रही हो कि आप कृपा करके इस गाय को या तो यहां से कहीं और ले जाइए या किसी साफ सी जगह में ही बासी खाना परोस दीजिए। शायद वो हमें एक संदेश देकर छुप जाना चाहती है कि ये जो भी सब हमारे आसपास हो रहा है, इससे मैं संतुष्ट नहीं है। मैं बार-बार अपनी खामोशी से विरोध करूंगी, नाराजगी जताऊंगी। आपको अगर कुछ लगता है, आपके ह्रदय तक अगर सूचना पहुंचती है तो आप इसे ठीक करने को प्रयत्नशील हों। मैं चुपचाप मुस्कुराकर आपका अभिवादन करूंगी।
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