आज सुबह जब मैंने उसे अपने छत से देखा तो रूक सा गया, लगा कि मेरे सामने सिर्फ वही एक थी जो चलायमान थी, मानो सिर्फ उसी ने गति को धारण कर लिया हो, और उसकी गति की वजह से बाकी सब कुछ स्थिर सा हो गया हो।
असल में मेरे सामने एक दस साल की लड़की थी। शायद वो 5th या 6th क्लास में होगी। मेरे कमरे की छत से लगभग दो घरों की दूरी पर उसका छत था। इससे पहले उस पर कभी मेरा ध्यान नहीं गया लेकिन आज उसने मेरा ध्यान खींच लिया। दस साल की वो लड़की श्र, उसके वो छोटे-छोटे पैर, सांचे में ढला उसका गोल सा चेहरा, और उस चेहरे में सपनों से डूबा उल्लास लिए वो लड़की उस समय एक किताब हाथों में लिए कुछ सोच रही थी। आखिर वो कौन सा सब्जेक्ट पढ़ रही होगी, क्या वो सचमुच अपने सबजेक्ट के बारे में ही सोच रही थी क्योंकि आज जब मैंने उसे देखा तो वो खुली हवा में आकृतियां बना रही थी, और फिर थोड़ी देर बाद या तो मुस्कुराती या फिर हंसने लगती हां किसी झूमती तितली की तरह कभी यहां कभी वहां। कभी वो पास में खड़े पीपल के पेड़ को देखती तो कभी खुले आसमान की ओर गर्दन उठाकर देखने लग जाती। फिर वो किताब खोलती, थोड़ी देर के लिए कुछ पढ़ती और चहकते हुए फिर यही प्रक्रिया दुहराती।
मेरी नजर तो उसे देखते ही रूक सी गई थी, ये ठीक उसी तरह था जैसे सिनेमा देखते-देखते हम एक विशुद्ध अवस्था के द्वारा रोक लिए जाते हैं। अब जब मैं उसे एकटक देख रहा था, इसी बीच ऐसा हुआ कि अचानक उसने मुझे देख लिया। वो कुछ सेकेण्ड भर के लिए वहां रूकी और फिर कदमों की एक विशेष लयबद्धता का अनुगमन करते हुए वहां से तुरंत चली गई।उसने अपने हाथ ढीले कर लिए, हवा में लहराते हुए वो पहले सामने की ओर एक कदम रखती और पीछे दो कदम, कुछ इस तरह धीरे से वो मेरी आंखों से ओझल हो गई। शायद उसे मेरा देखना पसंद नहीं आया या शायद वो खुद को ऐसे देखा जाना पसंद ही नहीं करती। वो नहीं चाहती कि उसकी इस छोटी सी दुनिया पर किसी का ध्यान केंद्रित हो।
उसकी इस छवि ने मुझे आज आश्चर्य में डाल दिया है। क्या मैं उसके सोच की परिधि माप सकता हूं, शायद ये मेरे बस की बात नहीं है। लेकिन आज उसकी इस रहस्यमयता का मैं कायल हो गया। लेकिन यह दृश्य मैं और कब तक देख पाऊंगा,बमुश्किल एक साल। उसके बाद तो वो बड़ी हो जाएगी। पीछे छोड़ जाएगी अपनी कुछ झलकियां। अब वो ऐसे खोये हुए अंदाज में शायद ही पहले जैसे बात कर पाए।ये पेड़, ये खुले आसमान धीरे से उसकी स्मृतियों से मिटते जाएंगे। शायद उसे इस बात का अंदाजा भी न होगा कि कब वो बड़ी हो गई और उसकी ये रहस्यमयी दुनिया कहीं पीछे रह गई। अब चूंकि वो बड़ी होने वाली है तो उसकी मां के द्वारा उसे समझाया भी जाएगा कि बेटा अब तुम बड़ी हो रही हो, तुम्हें अब खुद अपना ख्याल रखना पड़ेगा, तुम्हें ये सीखना पड़ेगा, अपने दोस्तों खासकर अपने आसपास के लड़कों को समझना होगा। साथ ही अपनी सीमाओं का विशेष ख्याल रखना होगा।
और धीरे-धीरे उस लड़की की रहस्यमयी दुनिया सिकुड़ती जाएगी। उसे अब अपने उन ख्यालों की दुनिया से बाहर आकर भीड़ का हिस्सा बनना होगा। अब वो सब के बीच हंसना सीखेगी। घूमना, बातें करना सीखेगी। घर, परिवार ,समाज की प्रतिष्ठा बढ़ाये, सबको गौरवान्वित करे इसके लिए उसकी प्रतिभा को और अधिक परिष्कृत करने हेतु सारे उपाय किए जाएंगे और कुछ इस तरह वो इस नई दुनिया का हिस्सा बन जाएगी।
Monday, 2 January 2017
~ A Mystic Girl ~
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