Monday, 9 January 2017

- वीर -

                 उसका नाम वीर था। वो मेरी ही कालोनी में रहता था। वो हमेशा अपने नाम को चरितार्थ करता, यानि नाम जैसा काम वैसा। मैंने अभी तक की जिंदगी में इतना साहसी लड़का नहीं देखा। वो किसी भी चीज से नहीं डरता था, कहीं भी कोई जहरीला सांप या बिच्छू निकलता तो वो तुरंत उसे मारने के लिए पहुंच जाता और मारने के बाद उसे अपने साथ लेकर घूमता और पूरी कालोनी के बच्चों को डराता। वो दिखने में भी किसी शूरवीर जैसा था, किसी गली के गुंडा/दादा जैसी शारीरिक बनावट लिए हुए। इस एक वजह से पूरी कालोनी के बच्चे उससे डरते। वो साहसी होने के साथ-साथ बहुत बदमाश था। जिसको चाहता उस बच्चे को थप्पड़ मार देता, रेत के ढेर में पटक देता। उसे न तो अपने मां-बाप का डर था न ही किसी और का।
                 वो जब मुझे मारता तो गुस्सा होकर मैं भी उसे इशारों से चिढ़ा देता। उसे मेरा चिढ़ाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। मेरे चिढ़ाने से वो इतना गुस्सा हो जाता कि मुझे किसी फुटबाल की तरह वो धुन देता। मैं भी निर्लज्ज की तरह उसकी मार सह लेता और आखिर तक आंसू न निकालता। कई बार वो आंसू निकालते तक मुझे पीट देता। जब मुझे हारा हुआ महसूस होता तो मैं घर वालों से शिकायत करता, तो मुझे वीर से दूर रहने की हिदायत देते और साथ ही वीर के घरवालों से शिकायत भी करते। वीर के बड़े-पापा डंडे से उसे पीटते, मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती लेकिन थोड़ी ही देर बाद मैं मायूस हो जाता क्योंकि वो राक्षस की तरह हंस हंस के अपने बड़े-पापा से मार खा जाता। और वहीं मेरे को धमकी भी दे देता कि रूक तेरे को बताऊंगा। उसके बड़े-पापा फिर उसे पीटते लेकिन वो कभी न रोता।
                   मैं 3rd या 4rth क्लास में था। और वो 9th या 10th में था। वो कई बार परीक्षा में फेल भी हो चुका था। हालात ऐसे हो जाते कि उसकी मार से बचने का मेरे पास कोई भी उपाय नहीं था सिवाय छिपने के। वो इतना साहसी था कि चलती हुई जीप में दौड़ के चढ़ जाता। उस समय एक रुपए की शर्त पर वो ऊंची किसी बिल्डिंग से नीचे कूद जाता। हमारे लिए ये सब उस समय बड़ी बात होती। एक बार वो चलती जीप में चढ़ रहा था और जोर से फिसल के छाती के बल गिर गया, उसके हाथ पांव बुरी तरीके से छील गए, पेंट भी फट गया, मैं तो मन ही मन बहुत खुश हुआ कि जा बढ़िया हुआ, मेरे को मारता था न। मैं उत्सुकतावश यह भी देख रहा था कि इतनी जोर से गिरा है, आज तो रोएगा लेकिन वो नहीं रोया। मैं उसके आंसू देखने को तरस जाता लेकिन वो हर दर्द झेल लेता, कभी भी न रोता, वो सच में वीर था।
                  मैं दिन रात उसे मारने के ख्वाब देखता। एक दिन छिपकर मैंने उसे पत्थर दे मारा। गलती से उसकी नजर मुझ पर पड़ गई। उस दिन उसने मुझे बुरी तरीके से पीट दिया। मैं हर रोज यही सोचता कि जल्दी से एक बार बड़ा हो जाऊं फिर तो इस वीर को इतना मारूंगा इतना मारूंगा कि इसके आंसू निकल जाएंगे।
                 वीर को सिगरेट और फिजूलखर्ची की लत लग गई थी। असल में वीर अपने बड़े-पापा और बड़े-मम्मी के साथ रहता था, एक दिन वे किसी सामाजिक कार्यक्रम में बाहर गए और वीर को यह कह दिया कि वापस आते शाम हो जाएगी। उसी दिन वीर ने अपने ही घर की आलमारी तोड़ ली। अब उसने तिजोरी का सारा सामान निकालकर कर बिखेर रखा था, जिसमें गहने और पैसे थे। उसी बीच उसकी बड़ी-मम्मी कुछ गहने पहनने के सिलसिले में अचानक वापस आ गई। अब ये याद नहीं आ रहा कि उसकी बड़ी-मम्मी दरवाजा खटखटा कर आई या फिर वीर ने कहीं दरवाजा खुला छोड़ रहा था। क्योंकि उनके घर में प्रवेश करने के दो दरवाजे थे।
हुआ ये कि वीर की चोरी के बारे में उसकी बड़ी-मम्मी को पता चल गया। उन्हें कार्यक्रम में जल्दी जाना था तो वो वहां से जाते-जाते वीर को धमकी देकर चले गई कि शाम को आ रहे हैं तेरे बड़े पापा, अब वही तुझे देखेंगे।
                   शाम हो चुकी थी। वीर के बड़े-मम्मी और बड़े-पापा घर लौटे। घर में सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा हुआ था, खाने-पीने की बहुत सी चीजें बिखरी पड़ी थी। सब तरफ दरवाजे खुले थे। और वो जब वीर के कमरे में गए तो उन्होंने पाया कि वीर ने फांसी लगा ली है। जब मुझे पता चला तो बड़ी जिद करके पापा के साथ मैं भी उसे देखने चला गया। उस उम्र में पहली बार मैंने देखा कि ऐसे लोग मरते हैं। उसका फांसी से लटका हुआ चेहरा याद कर करके मैं कई रात सो नहीं पाया। उस समय पूरी कालोनी में कई दिनों तक शोक का माहौल बना रहा। हम बच्चों ने तो कई दिनों तक शाम के समय बाहर खेलना-कूदना भी बंद कर दिया था, जब हमारे साथ के बच्चे कहीं मिलते तो यही चर्चा होती कि सच में वो पूरा खत्म हो गया क्या, सच में अब वो कभी नहीं आयेगा न। उस समय हमें यही लगता कि मान लो थोड़ा बहुत चांस होगा, वो जिंदा हो के आ भी तो सकता है। इस अनजाने डर की वजह से हम बच्चों में से किसी ने वीर को बुरा-भला नहीं कहा।
                  मैं कई बार रात-रात को डर से उठ जाता, ऐसा लगता कि वो मुझे सपने में भी आकर डरा रहा है, मार रहा है। उसकी मौत से अगर सबसे ज्यादा किसी को दुख पहुंचा था तो वो मैं था। एक तो वो बिना रोये हमेशा के लिए चला गया। अब पता नहीं ये वीर की वीरता थी या कायरता, लेकिन चोरी के पकड़े जाने पर उसने इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा फैसला ले लिया। वीर सबके मनोविज्ञान में ऐसे घुसा हुआ था, उस समय तो मुझे महीने भर तक यही लगता रहा कि वीर तो कभी मर ही नहीं सकता वो तो यहीं कहीं मेरे आसपास है। मैं उस उम्र में यही सोचता कि वीर बस एक बार के लिए जिंदा तो हो जा, तेरे हाथ-पांव बांध के खूब मारूंगा। जो बचकाना मन बड़ा होकर उसे पीटने के ख्वाब देखा करता था, अब वो वीर को जिंदा देखना चाहता था।

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