Wednesday, 4 January 2017

~ A Mystic Girl-3 ~

आज वो छत पर नहीं थी। शायद मैंने ही देरी कर दी। अब इसे संयोग कहें या कुछ और, जब मैं रोड पर टहलते हुए कुछ काम से जा रहा था तो वो मुझे आज फिर दिख गई। लेकिन आज वो मुझे देख न पाई।मेरे ठीक सामने वो साइकल पर थी। जब वो साइकल चला रही थी मेरा ध्यान सीधे उसके पांव पर गया, उसके पांव खाली थे। पैरों में उसने कुछ भी नहीं पहना था। जैसे ही मैंने उसे देखा, उसके थोड़ी ही देर बाद उसके साइकल की चेन उतर गई। एक पल को लगा कि कोई चीज मेरे नजर के सामने स्थायी क्यों नहीं है। इस चैन को भी क्या अभी उतरना था, इतना अच्छा मैं पैडल पर उसके छोटे-छोटे पैरों को गोल घूमते देख रहा था, साथ ही सेकेंड सेकेंड के अंतराल में मिट्टी की एक परत लिए उसकी वो सुंदर ऐंड़ियां देख रहा था। लेकिन ये किसकी नजर लग गई। शायद मैंने ही नजर लगा दी होगी।
                        मुझे लगा कि लो बच्ची अब तो तुम्हारे साइकल का चैन उतर गया अब तो तुम उदास होगी, निराश हो जाओगी, अब मैं छुपकर देखना चाहता हूं तुम्हारे चेहरे के ये भाव। लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उल्टा,  वो तो जस का तस मुस्कुरा रही थी। कुछ ऐसे जैसे कुछ हुआ ही न हो , जैसे उसे इस बात से फर्क ही न पड़ा हो। झूमते हुए साइकल दोनों हाथों में पकड़कर वो अपने घर के सामने आई और उसने साइकल वहीं रख दिया, और फिर दौड़कर छत की ओर चली गई।
                     आज छत पर तीन बच्चे पहले से हैं जो वहां कुछ-कुछ खेल रहे हैं। हां पत्थर के टुकड़ों का कोई खेल है, जहां तक मुझे लगता है, इस खेल का शायद ही कोई भाषायी नाम है, हां पर बोलियों में अनेकों नाम हो जाते हैं। इसमें पैर से पत्थर या खपरैल के एक छोटे टुकड़े को मारते हुए एक खाने से दूसरे खाने में ले जाते हैं। अब वो लड़की छत पहुंच चुकी है, मुझे लगा कि वो भी उनके साथ खेलने लग जाएगी। लेकिन वो मेरी सोच पर पानी फेर देती है। वो वहीं पर पड़े चाक के टुकड़े को उठाती है, और छत पर अपने लिए अलग से एक सुंदर सा चौखाना बनाने लगती है। और जब वो आयताकार चौखाना बन जाता है तब वो पत्थर से अकेले खेलने लगती है। वहां उसके ठीक पास में जो तीन बच्चे खेल रहे होते हैं। उनमें से एक बच्ची जो छ: या सात साल की होगी, वो इस नये चौखाने और इस पर अपनी इस दीदी के खेल से ऐसा प्रभावित होती है कि वो बच्ची अपना पुराना चौखाना छोड़कर इस नये चौखाने के पास आकर कहती है कि दीदी, दीदी मैं आपके साथ खेलूंगी। लड़की उसे हां कर देती है। और फिर दोनों खेलने लग जाते हैं।
                 उस रहस्यमयी लड़की का हर दिन ये नया रंग देखकर मैं ये भूल जाता हूं कि मैंने इससे पहले इसका कौन सा रूप देखा था। आज फिर उसे देखकर ऐसा लगा जैसे मैं पहली बार किसी नयी सी लड़की को देख रहा हूं। हर दिन एक नयापन, एक नया रहस्य।
               आज जिस तरह से उसने दूसरे बच्चों से अनुरोध किए बिना ही खुद अपने लिए एक नया चौखाना बनाया, और जब एक बच्चा अपना खेल छोड़ खुद ही उसके पास आ गया इससे ये साफ मालूम होता है कि उसकी अपनी गति है, अपने रास्ते वो खुद बनाती है वो भी बिना किसी अड़चन के। लेकिन ये गति उसे कहां से मिलती है, शायद वहीं से मिलती होगी जहां से उसने पेड़ों को महसूस करना सीखा है, आसमान को देखना सीखा है, उस दिन उस गाय से बात करना सीखा और तो और आज साइकल चैन के खुल जाने के बाद कुछ समय के लिए उसे नजर अंदाज करना सीखा।
            वो जब कुछ करने लगती है तो वो अपने आप में नया हो जाता है, आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। आखिर दस साल की इस छोटी सी उम्र में वो इतना सब कुछ कैसे कर लेती है। वो ये सब कर पाती है शायद इसीलिए वो रहस्यमयी है।

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