Friday, 7 June 2024

नवीन पटनायक और उड़ीसा -

आज से 20-25 साल पहले जब भी उड़ीसा का नाम जहन में आता था तो हर कोई उसे एक पिछड़े गरीब राज्य की संज्ञा देता था। बचपन में पापा की नौकरी उड़ीसा बार्डर में ही थी, 1990-95 की बात होगी, वे बताते हैं कि उन सीमावर्ती ग्रामीण इलाकों में इतनी गरीबी थी कि लोग घर के आंगन में धोने के लिए रखे गये जूठे बर्तन इसलिए भी चुराकर ले जाते थे कि उनमें थोड़ा बहुत जूठा अन्न खाने के लिए चिपका हुआ रहता था। और तो और छोटे बच्चे घर में नमक तक मांगने आते थे ताकि नमक चाटकर भूख शांत कर सकें। सन् 2001 के आसपास की ही एक घटना याद आ रही है, मेरे एक रिश्तेदार अपनी स्पलेंडर बाइक में अपनी बेटी के यहां उड़ीसा जा रहे थे, रास्ते में कहीं निवृत होने के लिए कुछ मिनट के लिए रूके होंगे, उतने में किसी ने पीछे से सिर में डंडे से वार किया और गाड़ी चोरी करके ले गये। गाड़ी के अलावा उनका चश्मा, घड़ी, चप्पल और पेंट कमीज तक ले गये थे। इसी से अंदाजा लगा लिया जाए कि किस हद तक गरीबी थी। मुख्यधारा के समाज से दूर जंगल वाले इलाकों में होने वाली ऐसी कुछ छुट-पुट घटनाओं की वजह से राज्य की छवि एक गरीब राज्य के रूप में सबके सामने थी। लेकिन जब से नवीन पटनायक ने बतौर मुख्यमंत्री काम करने शुरू किए, इस पूरी छवि का एक तरह से कायापलट ही कर दिया। सब तरफ शानदार सड़कें बनवाई, इंफ्रास्ट्रकचर डेवलप किया, राज्य को गरीबी वाली छवि से मुक्त किया, लोगों को शांत किया। 

उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर है। देश का एकलौता ऐसा शहर है जिसके पास ग्रीन कैपिटल का तमगा है, आपको भुवनेश्वर जाते ही यह महसूस हो जाएगा। ट्रैफिक मैनेजमेंट भी बहुत शानदार है। व्यवस्थित बसाहट है। साल भर रहते हुए मैंने खुद इन चीजों को महसूस किया है। मैंने इस शहर को चौक चौराहों में, दुकानों में, ठेलों रेहड़ियों में, फल सब्जी के बाजार में, नुक्कड़ चौपाटी में, लोगों की अभिव्यक्ति में हर जगह महसूस किया है, लोगों के पास जो भी कम अधिक है, उसे लेकर उनके भीतर तनाव नहीं है, खुमारी में रहते हैं, खुश रहते हैं। और यही एक राजनेता की सबसे बड़ी सफलता है कि उसने लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था बनाई, जिसमें वे तनावमुक्त होकर जीवन जी रहे हैं। भारत में उड़ीसा के अलावा सिक्किम में मैंने लोगों को इतना शांत पाया है। इन राज्यों में आप जाएंगे, और अगर आपमें दृष्टि है तो लोक-व्यवहार में अलग से ही फर्क महसूस होता है। सिक्किम में भी पवन कुमार चामलिंग रहे, जो भारतीय राजनीति के एकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होंने लगातार 25 वर्षों तक शासन किया, दूसरे नंबर पर नवीन‌ पटनायक हैं जो 24 साल तक सत्ता में रहे। भारतीय राजनीति में बहुत कम ही नेता हुए हैं, जो ऐसा कर पाए हैं। लोगों की भावनाओं को ट्रिगर किए बिना राजनीति में बने रहना आज के समय में तो अब निरा स्वप्न जैसा हो गया है। पवन कुमार चामलिंग और नवीन पटनायक जैसे नेता इस मामले में अपवाद ही रहेंगे। 

साइक्लोन फनी के समय मैंने खुद राजधानी भुवनेश्वर का हाल देखा है, दो तिहाई पेड़ तहस-नहस हो गये थे, इतनी खराब स्थिति थी कि 10 दिन तक राजधानी में बिजली व्यवस्था ठप थी। इस बीच आपदा प्रबंधन की पूरी टीम युद्ध स्तर पर लगी हुई थी। 1 महीने बाद जब मैं वापस भुवनेश्वर लौटा तो मैंने स्टेशन से बाहर निकलते ही कैब में गुजरते हुए जब इस शहर को देखा तो मैं अवाक रह गया। कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि यहां महीने भर पहले इतना भयावह साइक्लोन आया था। ये नवीन बाबू के तैयार किए आपदा प्रबंधन टीम का कमाल था। बताता चलूं कि उड़ीसा की आपदा प्रबंधन टीम इतनी पारंगत है कि जब कहीं भी देश में कोई आपात स्थिति आती है तो यहां की टीम से सलाह मश्विरा किया जाता है, क्योंकि उड़ीसा हर साल दो साल में साइक्लोन झेलता है, तो वह इससे निबटना जानता है।

नवीन पटनायक जिसे पूरा राज्य प्यार से नवीन बाबू के नाम से पुकारता है, उन्हें उड़िया भाषा तक नहीं आती है, इसके बावजूद एक उड़ियाभाषी राज्य को उन्होंने 24 साल तक संभाला, यह मामूली बात नहीं है। भारतीय राजनीति के इतिहास में यह अपने आप में एक उपलब्धि ही कही जाएगी। नवीन बाबू के सीएम रहते हुए कंधमाल में एक बड़ी नस्लीय हिंसा की घटना हुई थी, मीडिया में खूब बवाल मचा था, लेकिन इन्होंने उस घटना को जिस तरह से संभाला वह अपने आप में एक नजीर थी। 

स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो एक बेहतरीन काम हुआ वह है - बिजू कार्ड। यह कार्ड आम लोगों के लिए संजीवनी की तरह काम कर रहा है। आयुष्मान कार्ड की तरह ही इसमें हास्पिटल में इलाज संबंधी छूट मिलती है, लेकिन जहां आयुष्मान कार्ड में नियम कानून बंदिशें हैं, वहां इस कार्ड के साथ ऐसा नहीं है, आयुष्मान कार्ड में मोटा मोटा सिर्फ बेडचार्ज से आपको राहत मिलती है, लेकिन इसमें ऐसी कोई बंदिश नहीं है, बिजू कार्ड के साथ आप बड़ी से बड़ी सर्जरी या कोई भी गंभीर बीमारी हो या कोई ट्रांस्प्लांट हो, इस कार्ड के माध्यम से आप निःशुल्क करा सकते हैं। आम गरीब लोगों के लिए यह तो वरदान की ही तरह है। यूं समझिए कि एम्स जो सुविधाएं देता है, उससे कहीं अधिक सुविधा तो स्थानीय लोगों को बिजू कार्ड के माध्यम‌ से ही मिल जाती है।

जब देश की हॉकी टीम को कोई राज्य गोद लेकर ट्रेनिंग देने के लिए तैयार नहीं था, तब नवीन बाबू ने उन्हें गोद दिया, उड़ीसा ने उन्हें तैयार किया। उड़ीसा के ही कलिंग स्टेडियम में प्रैक्टिस करते हुए उन्होंने 19वें एशियाई खेलों में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था। यह कोई मामूली बात नहीं थी। इसके अलावा 2020 ओलंपिक में भालाफेंक में स्वर्ण पदक लाकर देश का नाम रोशन करने वाले नीरज चोपड़ा की नींव तैयार करने में भी इस स्टेडियम की महती भूमिका रही है। 

नवीन पटनायक से आज के नेताओं को यह सीखने की जरूरत है कि राजनीति कैसे की जाती है और मीडिया मैनेजमेंट कैसे किया जाता है। नवीन बाबू बहुत कम बोलते हैं, इतना कम कि मीडिया के पसीने छूट जाते हैं कि आखिर इनसे क्या ही पूछा जाए। चाहे राष्ट्रीय मीडिया हो या क्षेत्रीय मीडिया, इतने संक्षेप में जवाब देते हैं कि कोई उलूल-जुलूल सवाल कर ही नहीं पाता है। विपक्ष के नेता भी उनके बारे में कभी कोई खराब टिप्पणी नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्होंने राजनीति का‌ अपना एक‌ मानक स्तर बनाकर रखा है, वे किसी को उस स्तर से नीचे गिरने नहीं देते हैं। उनका अपना शांतचित्त व्यक्तित्व, उनका कम शब्दों में ही गंभीर बात कह जाना, और ब्यूरोक्रेसी को स्पेस देते हुए उनसे बेहतर काम लेना, यही उनका पीआर था, यही उनकी पहचान थी। 

नवीन बाबू के व्यक्तित्व के बारे में लोगों को बहुत कुछ पता नहीं है, वही पुराने नेताओं की तरह हमेशा सादा सफेद कुर्ता पजामा पहनते हैं। वे कभी लाइमलाइट में नहीं रहते हैं, मीडिया से जितना जरूरी होता है, उतनी ही बात रखते हैं, और यही एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ की पहचान है। उनके इस इस्पात रूपी व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ताकत जो मुझे लगता है वो यह है कि वे अपने दैनिक दिनचर्या को लेकर बहुत सजग रहे हैं, समय पर सात्विक भोजन और समय पर नींद उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रहा है। नवीन बाबू के बारे में जानने के लिए उनकी लिखी गई किताबों के बारे में जानना जरूरी है। खासकर "The Garden of Life" किताब जो healing plants को लेकर उन्होंने लिखा है, इसे पढ़ा जाना चाहिए, उनके व्यक्तित्व के ठहराव की समझ विकसित करने के लिए यह किताब जरूरी है। 

इस बार नवीन बाबू की पार्टी हार गई है। लोग उदास हैं, किसी नेता के हारने के बावजूद उस व्यक्ति को कहीं इस देश में ऐसा इमोशनल सपोर्ट मिलते मैंने तो नहीं देखा है। जब वे सत्ता में भी थे तब विरोधी खेमे को भी कभी सोशल मीडिया में या कहीं और किसी प्रकार की अव्यवस्था को लेकर घटिया भाषा बोलते या अपशब्द कहते नहीं देखा है, जैसा बाकी राज्यों में दिखता है। उनके हारने के बाद आज लोग भावुक हो रहे हैं जिनमें विपक्ष के लोग भी हैं, और यह कोरी भावुकता नहीं है, भाषा से, भाव-भंगिमा से अलग से समझ आ रहा है कि वास्तव में यह राज्य के लिए एक बेहतरीन अभिभावक की तरह था, जिसकी कमी आने वाले समय में लोगों को खलेगी। 

You made odisha proud Naveen babu...blessings with you.



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