पबजी सिर्फ एक गेम नहीं था, एक नशा था, बहुत लोगों के लिए एक बिजनेस भी था, अभी-अभी एक पबजी नशेड़ी मित्र से बातचीत हुई तो पता चला कि इस गेम को खेलने वाले इतने बढ़ गये थे कि हर दस सेकेंड में आपके साथ आपके जोन के मुताबिक खेलने वाले चार अलग अलग लोग तुरंत जुड़ जाते थे, यानि एक बहुत बड़ी संख्या इससे जुड़ चुकी थी। दूसरी सबसे मजेदार चीज जो मित्र ने बताई वो यह कि इसमें खूब पैसा भी लगता था। पता नहीं कुछ स्कीन खरीदा जाता था, अलग अलग स्कीन खरीदने के लिए पैसे लगते थे, जैसे-जैसे लोग स्कीन खरीदने लगे, कंपनी स्कीन के दाम बढ़ाने लग गई। जो स्कीन पहले हजार रूपये तक मिलती थी उसका मूल्य धीरे-धीरे लाख तक पहुंच गया। यहाँ तक कि पबजी की स्कीन खरीदने के लिए बड़ी बड़ी यूट्यूब की शार्क मछलियाँ तो बकायदा अपने चैनल से लाखों रूपए स्कीन खरीदने में लगाती थी, और फिर वीडियो बनाकर बदले में उतने रूपए भी बना लेती थी। मतलब बहुत से लोगों का धंधा भी चौपट हुआ। एक तरफ रोजगार के आँसू भी इसी देश में बहाए जाते हैं, और वहीं दूसरी ओर एक पिद्दी से गेम के फीचर्स के लिए लाखों करोड़ों रूपयों के वारे-न्यारे किए जाते हैं। धन्य है यह माटी।
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