यार भाई स्थिति बहुत खराब है। जिन लोगों की तबियत खराब है वे लोग तो थोक के भाव निपट रहे, ये समझो कि लोगों को अब देख के समझ आ रहा कि ये चार दिन में निपटेगा, ये पांच दिन में, ऐसी स्थिति है, लाश भी सही समय से डिस्पोस नहीं हो पा रहा है, अधिकतर लोग तो जो मरीज को छोड़ गये हैं, वे समय पर वापस देखने भी नहीं आ रहे हैं, बाॅडी क्लेम करने वाला कोई है नहीं तो लाशों का ढेर भी लग जाता है, इसमें भी सरकारी प्रक्रिया, कौन बीच में खुद को फंसाए। यहाँ लगातार 48-48 घंटे काम करके हालत टाइट है बाबा। कोरोना से ऐसा नहीं रहा कि सिर्फ एकदम बीमार और बुजुर्ग ही निपट रहे, हर उम्र के लोग निपट रहे। मेरे दो सीनियर डाॅक्टर निपट गये, दोनों की उम्र 40 से 50 के बीच, कहीं कोई खबर नहीं, एक 25 साल का डाॅक्टर वो भी पॉजिटिव था, निपट गया, कहीं कुछ खबर नहीं, सब दबा दिया जा रहा है। सबका मुंह बंद कर दिया गया है, मीडिया वाले जो बड़े हीरो बन रहे कि सरकार हाय हाय, वेंटिलेटर नहीं है, बेड नहीं है आदि आदि। असल में ये भी गिध्द लोग हैं, मुंह में मोटा पैसा फेंक दिया गया है इसलिए एक सीमा में रहकर ही फड़फड़ा रहे हैं। अभी के समय में किसी मीडिया चैनल में कुव्वत ही नहीं जो असल वस्तुस्थिति को लोगों के सामने पेश कर सके। यानि सोचिए कि जो राजधानी की मीडिया इतनी जागरूक रही है कि शहर की एक नाली तक के अवैध निर्माण को पेपर टीवी में प्रमुखता से छाप के समाज का ठेकेदार बनती रही है, उसको क्या राजधानी में हो रही मौतों की, इस बंदरबांट की खबर नहीं होगी, लोगों की लाशों पर कमीशनखोरी का गंदा खेल जो चल रहा है, खैर छोड़िए इन बातों को।
सरकारी अस्पताल में जो थोड़े ठीक हो रहे, उनको जबरन तुरंत तुरंत फर्जी नेगेटिव रिपोर्ट बना के वापस भेजा जा रहा, सब कुछ हमारे ही हाथों से हो रहा है क्या कहें अब, ऊपर से दबाव ही ऐसा है। ऊपर हमारे से बड़े जो हेड डाॅक्टर हैं वे बस वीडियो कांफ्रेसिंग में ऊपरी हालचाल ले रहे हैं और तो और यह भी कहा जा रहा कि तीन-तीन दिन में आप लोगों को परेशान करके भगाइए, मोटा मोटा यह कि नर्स स्तर के लोगों पर ही सब कुछ छोड़ दिया गया है, यही लोग अस्पताल चला रहे हैं, बाकी अधिकतर सीनियर डाॅक्टर साहब लोग तो अपने घरों में खुद को बंद किए हुए हैं। रही बात दवाई देने की, तो दवाई उन्हीं को दी जा रही है जो ठीक होने की स्थिति में आ गये हैं तो उन्हें आखिरी दिनों में दवाई खिलाकर विदा किया जा रहा है ताकि यह लगे कि दवाई से ठीक हुआ, जबकि वह ऐसे भी ठीक हो ही जाता बाकि जिनकी स्थिति खराब है वे तो सीधे निपट ही रहे हैं जिनमें किडनी, सुगर, कोलेस्ट्राॅल, बीपी वाले सर्वाधिक हैं, हम देख के बता देते हैं कि फलां तीन दिन तक ही टिकेगा, बस औपचारिकता के लिए भर्ती करना पड़ता है ऐसी स्थिति है।
रही बात टेस्टिंग किट की और अन्य सुविधाओं की, तो फंड और सुविधाओं के नाम पर कोई कमी नहीं है लेकिन चौतरफा भ्रष्टाचार चल रहा है। टेस्टिंग अभी बस सरकारी अस्पताल में ही हो रहा, प्राइवेट में भले ही अनुमति दे दी गई है लेकिन ये मान के चलिए कि सब कुछ कागज में ही है, प्राइवेट वाले डाॅक्टर्स भी स्टाफ और अन्य चीजों की कमी का हवाला देकर पल्ला झाड़ रहे हैं।
मैं यह सब बताकर डरा नहीं रहा हूं या नकारात्मक बात नहीं कर रहा हूं, बस एक डाॅक्टर होने के नाते वस्तुस्थिति बताने की कोशिश रहा कि ये सब चल रहा है। एक चीज यह भी कहूंगा कि बीमारी से डरने की कोई बात नहीं है, लेकिन एकदम से बेफिक्र भी नहीं होना है, सतर्कता जरूरी है।
इलाज की बात करें तो ऐसा भी नहीं है कि हर जगह इलाज खराब है, बात असल में वातावरण का है, स्टाफ के रवैये का है, अभी एम्स और माना रायपुर के कोविड सेंटर में सबसे बढ़िया इलाज हो रहा है, बात गोली दवाई से इलाज से कहीं अधिक एक सकारात्मक और भयमुक्त माहौल तैयार करने की है, और वह सिर्फ अभी के समय में इन दो जगहों में ही बेहतर है, लेकिन वही है सीटें फुल हैं, सीटें खाली भी हुई तो क्या गारंटी है कि आपको यहीं ही भेजा जाए। खुद जो डाॅक्टर पाॅजिटिव हो रहे या यूं कहें कि जिनकी तबियत कुछ ठीक नहीं है, वे खुद होम आइसोलेशन तक नहीं ले पा रहे, जबरन जान जोखिम में डालकर ड्यूटी कर रहे हैं, वही ऊपर से दबाव, नौकरी जाने के खतरे और आपात स्थिति वाली धमकियाँ अलग। रसूख वाले लोग अस्पताल आकर आए दिन हल्ला मचाते हैं, सुनना पड़ता हैं क्या करें, हम भी विवश हैं, हम खुद दिन रात नींद भूख त्याग कर काम कर रहे। ऐसी स्थिति हो चली है कि कभी-कभी तो लगता है कि कहीं अचानक लोगों की भीड़ ही हम डाॅक्टरों पर सारा गुस्सा न उतार दे, सच बता रहा हूं ऐसी स्थिति बनने में देर नहीं है, रोज आए दिन इसका डेमो दिख ही रहा है।
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