E1- एक घंटे तक वह ध्यानावस्था में था। ध्यान के ठीक पहले उसने जंगल का फल खाया था और ध्यान के ठीक बाद उसने उसी फल को खाया, उसे स्वाद में परिवर्तन महसूस हुआ। फल तो वही था, लेकिन बदलाव जिव्हा ने महसूस किया। घंटे भर में हवा बदल चुकी थी।
E2- उस दिन उसने दोपहर में आधे घंटे ध्यान किया, इसके पश्चात् वह बच्चों के साथ खेलने लग गया, बच्चों के साथ बिताया गया पंद्रह मिनट उसे आधे घंटे के ध्यान से कहीं अधिक कीमती महसूस हुआ।
E3- उसने एक दिन पंद्रह से सोलह मिनट ध्यान किया, उसे लगा कि शायद वह योगारूढ़ तो नहीं है, क्योंकि दसवें मिनट से ही पद्मासन में बैठने के बावजूद उसके पाँव तेजी से ऊपर उठने लगे थे और वह पंद्रहवें मिनट में पीछे पीठ के बल गिर चुका था।
E4 - घंटों इस तरह बैठने के बाद उसकी समझ बनी कि ध्यान एक अलग ही चीज है, उसका संबंध सिर्फ आसन में बैठने से नहीं है, ध्यान कहीं भी कभी भी कैसे भी संभव है। चित्त की स्थिरता भर के लिए आसन में बैठने वाला व्यक्ति भी क्रूर घातक हिंसक हो सकता है, इसलिए ध्यान की संपूर्णता सिर्फ आसन में नहीं वरन् शीलपूर्वक किए गये आत्म अनुशासन में है।
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