Friday, 3 January 2020

Freethinking in 21th Century

                     फ्री थिंकिंग यानि स्वतंत्र सोच। बिना किसी मानसिक बोझ के पूरी उन्मुक्तता के साथ सोचना, लिखना, पढ़ना, और पूरी जीवंतता के साथ जीवन जीना। एक समय ऐसा था जब मैं Freethinking को बहुत ही समान्य सी चीज समझता था, निहायती बकवास चीज समझता था‌‌ या यूं‌ कह सकते हैं कि Freethinking को लेकर‌ बहुत‌ ही सीमित सोच थी कि इसकी कोई वैल्यू नहीं, ‌कोई पूछ-परख नहीं। आप स्वतंत्र रूप से दो लाइन लिखते हैं या अपना कोई विचार रखते हैं इसकी कोई खास कीमत नहीं है।

                       लेकिन मेरा यह भ्रम बहुत बुरे तरीके से तब टूटा जब मैंने लोगों को freethinking के रास्ते में जाने से रोके जाने के लिए मोटे पैसे, ओहदे और भौतिक सुख सुविधाओं की ओट में बेहोश होते देखा तो समझ आया कि freethinking की कीमत क्या है। जब देखा कि व्यक्ति को सिर्फ एक सीमित सोच के साथ बंधे रहने के लिए लाखों रूपए और तमाम तरह की सुविधाओं के इंद्रजाल में घेर कर उस पर अंकुश लगा दिया जाता है, और जो इस सोच एक फार्मेट में बंधने से सीधे इंकार कर अपनी सोच को प्राथमिकता देता है, उसे लोग समाज अकेला छोड़ देते हैं, कोई भी साथ खड़ा नहीं होता क्योंकि कोई भी सही मायनों में खुद को तपाना नहीं चाहता, परिणामस्वरूप वह व्यक्ति हताशा का शिकार होता है, रोज अपमान झेलता है।

                        यह सब देखने के बाद यह समझ आया कि हमारी एक एक स्वतंत्र सोच, विचार आदि की कीमत कितनी अधिक है। पैसे और सुविधाओं का क्या है, जब जिद से अलग रस्सी पकड़ा मिलना शुरू हो गया, लेकिन इन सब से इतर हटकर इसे तुच्छ मानते हुए खुद को वैल्यू देने से इसकी कीमत भी समझ आई कि freethinking क्यों पैसे सुविधाओं आदि से कहीं बढ़कर है। लेकिन आज‌‌ के‌‌‌ समय में जहाँ ‌हर‌ तरफ सुख सुविधाओं को‍ हथियाने‌‍‌ के‌ लिए गलाकाट‌ प्रतिस्पर्धा ‌चल रही है, ऐसे‌‍ में इन‌‍ सब ‌से‌ खुद को बचाना, और अलग रखते हुए अपने भीतर की स्वतंत्र सोच और अपने आत्मविश्वास को मजबूती से बचाए रखना बहुत ही अधिक साहस और अंदर की ईमानदारी की मांग करता है, स्व के बलिदान की मांग करता है। पुरातन समय से ही Freethinking लोगों के लिए एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण विषय रहा है क्यूंकि ये एक ऐसा रास्ता है जहाँ पग-पग खतरा है लेकिन एक बार विश्वास तैयार हो गया, अगर एक बार ढाल मजबूत हो गयी फिर डर हमेशा के लिए ख़त्म हो जाता है।

                          अब इसको एक उदाहरण से समझते हैं, जैसे मान लें कि एक मजदूर है जो अपनी कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने का काम करता है या अन्य ऐसे कुछ काम करता है, यानि वह अपनी कुल्हाड़ी चलाने की योग्यता से अपना पेट भरता है‌। अब वह अपनी योग्यता को लेकर इतना स्पष्ट है या यूं कहें कि इतना निडर हो चुका है, कि कोई उसे एक शब्द भी उल्टा कहे तो सीधे वह दो टूक जवाब देकर पूरी स्वतंत्रता से अपना रास्ता बदल लेता है यह कहते हुए कि तुम जाओ भाड़ में, मैं चला अपने रास्ते। मैं कहीं भी अपनी कुल्हाड़ी चला लूंगा, और वहाँ से सोना निकलेगा। वह ‌सीना चौड़ा करके कहता है कि मुझे अपने कुल्हाड़ी चलाने की योग्यता पर सबसे ज्यादा भरोसा है। मेरा यह भरोसा, यह विश्वास ही मेरे लिए एक ढाल है, जो आजीवन मेरी रक्षा तो करेगा ही साथ ही अगर कल जाकर मेरे साथ कोई सदस्य जुड़ जाता है या मैं परिवार वाला हो जाता हूं, तो उनकी भी रक्षा करेगा। यह मेरे विश्वास की ही ताकत है कि कोई भी लालसा, भौतिक सुख सुविधाएँ पैसे आदि मुझे हिला नहीं पाते हैं, मेरे आसपास फड़कते हुए भी मुझे अपना गुलाम नहीं बना पाते हैं। ऐसी चीजें मेरे पास आ तो जाती हैं लेकिन जब लगता है कि वे मुझे अपने गुलामी के चंगुल में नहीं घेर पाएंगी तो वह घबराकर पूरे सम्मान के साथ वापस लौट जाती हैं।



"विश्वास की यही ताकत है और यह तभी आता है जब व्यक्ति freethinking को अपने जीवन में उतारता है। "


Slowing Down in the foothills of Himalayas





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