मुझे पता है तुम कहाँ आकर थम जाओगे,
मैं जानता हूं कि वहाँ से आगे भी नहीं बढ़ पाओगे,
रोओगे, चिल्लाओगे, निराश हो जाओगे
फिर भी कोई सुनने वाला न होगा।
मैंने उस ऊँचाई का प्रताप देखा है,
जहाँ से नीचे सब साफ दिखाई देता है,
और जहाँ सिर्फ विरले ही जा पाते हैं।
इसलिए फिर कहता हूं अंधाधुंध बढ़े चलो,
तुम्हारी नियति में यहीं तक का सफर लिखा है।
जिसे तुम अंत समझते हो, वह मेरी शुरूआत है।
मैं पूरी सरलता से यहाँ तक आया हूं,
और तुम अनगिनत जटिलताओं के साथ।
इसलिए हो सके तो मुझे क्षमा करना,
और अपने दुःखों का पहाड़ मुझे मत बताना।
No comments:
Post a Comment