Monday, 27 January 2020

भारत का‌ नौकरीपेशा तंत्र


                   सरकारी तंत्र को जितना देखा है, जाना है‌, समझा है, जितना उसके बारे में पता चला है, उससे ये एक बात उभरकर सामने आती है कि वहाँ प्रतिशोध भी आहिस्ते से होता है, लंबे समय तक चलता है। आपकी उमर निकल जाएगी लेकिन आपका विरोधी आपसे बदला लेने के लिए कई बार आपको बहुत लंबा इंतजार करा देता है। 

              जैसे कि अगर कोई व्यक्ति भाग्यवश या चुनाव से ही वरिष्ठता में ऊपर है या कार्यालय में सीनियर है और अगर किसी अधीनस्थ या जूनियर ने कुछ उटपटांग कह दिया या कुछ नोंक-झोंक हो गई तो उसे उस वक्त छोटी सी सीख देकर किनारे कर दिया जाता है, फिर भी उसे हमेशा एक विचित्र किस्म का खतरा महसूस होता रहता है और अगर उसमें थोड़ी बहुत जमीर बची होती है तो वह एक बंद फाइल की तरह घुटन महसूस करने लगता है, क्योंकि मामले को किसी सरकारी फाइल की तरह पूरी तरह रफा-दफा नहीं किया जाता है, भविष्य के लिए संभाल‌कर रखा जाता है, पता नहीं कब कहां कैसे काम आ जाए। 

                  सरकारी विभागों में झगड़ों का निपटान भी चिरकाल तक चलता रहता है, कई दफा ऐसा भी होता है कि आपकी एक छोटी सी चूक को किसी ने सालों तक ह्रदय के किसी कोने में हवा पानी देकर जीवित रखा होता है, और एक दिन आपको अचानक से जबरदस्त झटका लगता है, आप धड़ाम से औंधेमुंह गिरते हैं, आप एक बार के लिए समझ नहीं पाते हैं कि यह कैसे हो गया, क्यों हुआ। इसलिए अधिकतर आप देखेंगे कि सरकारी तंत्र से जुड़ा व्यक्ति कुछ सालों में ही बहुत ही विनम्र और शांतचित्त सा प्रतीत होने लगता है। क्योंकि उसे ऐसा होने के लिए ट्रेन किया जाता है। और शायद सरकारी अमलों में झगड़े इसलिए भी रिटायरमेंट तक बने रहते हैं क्योंकि समय खूब होता है और सही मौके की तलाश कर दे मारते हैं। आज सरकारी तंत्र की इस खूबी का जिक्र इसलिए किया क्योंकि इस खूबी का शिकार भारत में सर्वत्र सभी तंत्र हो चुके है‌ं।

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