Saturday, 25 January 2020

My one year in Bhubaneswar

                         दो तीन साल तक रूक-रूककर पहाड़ों में बंजारा जीवन जीने के पश्चात (खैर बंजारा जीवन कम और निर्मोही जीवन कहना ज्यादा उचित होगा) जब लंबे समय के लिए मैदान लौटा तो मैदान में हमेशा की तरह निराशा हाथ लगी। घुमन्तु स्वभाव से अलग नयेपन की भूख थी, जीवन में सब किसी भी पहलू के दुहराव ना कर पाने की जिद भी थी। आखिरकार जब नहीं रहा गया और खालीपन घेरने जैसा महसूस होने लगा तो किसी और जगह की तलाश में जुट गया। लेकिन अब समय बदल चुका था, मेरे सामने ऐसी स्थिति आन पड़ी थी कि घर के आसपास कभी-कभी महीने में दर्शन देना भी अत्यावश्यक हो गया था, इसलिए सोचा कि ये एक साल भुवनेश्वर में रहा जाए और फिर जुलाई 2018 को मैं भुवनेश्वर चला गया।

                         इस दौरान ये पूरा साल मैंने आराम में बिताया, इस नये कल्चर को अपनाने में मुझे कोई बहुत ज्यादा समय नहीं लगा। शहर मुझे अपना रहा था और मैं इस सुंदर हरे-भरे शांत शहर को। इस दौरान कुछ अच्छे साथी दोस्त मिल गये, साथ मिलकर कभी मैदान में दौड़ लगाते, थोड़ा बहुत जिम कर लेते, थोड़ा बहुत अपनी मन की कुछ किताबें पढ़ लेते, ग्राउंड बनाकर खेल भी खेलते, अपने मन का खाना खाते और खूब घूमते। पूरा एक साल का ये समय अपने मन और शरीर को दिया, खूब दिया, इतना दिया कि जितना उसको चाहिए, कभी ज्यादा कोई खींचतान नहीं की, न कोई जोर लगाया न कोई तपस्या जैसी चीज रही। खींचतान या तपस्या के नाम‌ पर बस एक चीज यह रही कि कुछ कारणवश ट्रेन का सफर खूब करना पड़ा, संभवत् इस एक साल में अब तक की सर्वाधिक रेलयात्राएँ मैंने की होगी। सामने पूरा एक भविष्य पड़ा हुआ था, क्या आगे करना है से कहीं अधिक क्या क्या जीवन में बिल्कुल नहीं करना है, इन सब चीजों को लेकर गहन मंथन भी इसी दौरान चलता रहा, इसी एक वर्ष से आगे के एक मेरे पूरे जीवन का निर्धारण होना था, इसलिए अपने प्रति सजग भी रहना था और सावधान भी रहना था।
क्या और कौन मेरे लिए प्रेरणादायी हैं, क्या नहीं है?
किन किन तरीकों से मेरा व्यक्तित्व का उत्तरोत्तर विकास हो?
क्या मैं नहीं है और क्या मैं असलियत में हूं?
मेरी अपनी क्षमताएँ और सीमाएँ क्या हैं?
आगे के जीवन में मुझे क्या क्या करना है?

              ऐसे अनगिनत सवालों को लेकर रोज मंथन चलता रहा, रोज रूपरेखा बनती रही, बिगड़ती रही, ये सिलसिला चलता रहा फिर भी इस पूरे समय को मैंने सम्यक् भाव से बिताया, और उसे बिना किसी झोल के संपूर्णता के साथ जिया।
                इस शहर से मुझे एक अलग ही तरह का लगाव हो गया है, जो शायद अब मेरे स्मृतिवन में आजीवन रहे। सचमुच इस शहर ने मुझे बड़े मन से स्वीकारा, खूब प्रेम दिया। अंत में जब इस शहर को छोड़कर जब मैं अपने नये सफर पर निकलने वाला था, तो इस शहर ने मई 2019 में विध्वंसकारी साइक्लोन फनी झेला, सब कुछ कुछ घंटों में तबाह हो गया था, लाखों पेड़ टूटकर गिर चुके थे, खूब नुकसान हुआ, चारों ओर त्राहिमाम जैसी स्थिति हो गई थी, इन सब का मैं भी भागी रहा। वैसे तो दो दिन पहले शहर खाली करने का लिखित नोटिस आ गया था, फिर भी मैंने सोचा कि इतने लोग तो अभी भी हैं, वे कहाँ जाएंगे, सब यहीं तो रहेंगे, बस इस एक बात ने रोक लिया। बिना बिजली, पानी के सप्ताह के सप्ताह जीवन कैसे जिया जाता है, लोगों की स्थिति कैसी हो जाती है, यह खुद वहाँ रहकर भोगा, देखा, जाना, समझा। वहाँ की यादों के नाम पर तो मेरे पास बहुत कुछ है, लेकिन सब कुछ लिखकर बता दिया जाए ऐसा भी कई बार संभव नहीं होता है इसीलिए तस्वीरों के माध्यम से इस यात्रा को समेट कर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।



पिंक हाउस, पुरी


चक्रतीर्थ रोड, पुरी



फ्रेंड्स कैफे


चंद्रभागा की एक शाम


रोड ट्रिप, मरीन रोड, कोणार्क


चंद्रभागा


डिकॅथलान, भुवनेश्वर


मेरे द्वारा पहल हुई और बैडमिंटन कोर्ट बना था


हमसफर एक्सप्रेस


वाइल्डलाइफ रेस्तरां, पुरी


साइक्लिंग


एस्काॅन मंदिर, भुवनेश्वर


अपना कैब


Ekamra Park, Nayapalli


जनता मैदान, भुवनेश्वर



Eram rooftop, जयदेव विहार


हुक्का, नाइटलाइफ


पुरी भुवनेश्वर के बीच कहीं रात 3 बजे रोड ट्रिप के दौरान


रेल्वे स्टेशन, भुवनेश्वर


फोरम माॅल



साइक्लोन के समय की लिखित प्रतिलिपि


Odishi bhel


Veg thali only at 50 rupees


Chicken gupchup


Odisha's famous dahi vada


Macha thali means fish thali


Tandoori momos


Dahi pakhala


Sarbat at CRPF Square


Ram bhai's famous lemon tea, CRP Square


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