Thursday, 23 January 2020

यादों के‌ झरोखे से - भाग-१

‌              मार्केट का उपभोक्ता बनकर कुछ चीजें बस यूं ही इसलिए भी खरीद लेता हूं क्योंकि ये छोटी-छोटी दैनिक जरूरत की चीजें सिर्फ मेरे लिए एक वस्तु न होकर यादों का एक पुलिंदा होती हैं। इनमें छिपी सुगंध कई वर्ष पीछे ले जाकर स्मृतियों से रूबरू कराती हैं, लोगों से बातें कराती हैं, घरों से, उन गलियों से मिलवाती हैं, जिन्हें दशकों पहले छोड़ आए थे। उन गानों की याद दिलाती हैं जो सालों पहले चबूतरे में बैठकर सुना करते थे या फिर खान-पान के वे‌‌ तरीके जिसे हमारी जिव्हा कब का छोड़ चुकी होती है। सहेजने वाले लोग क्या-क्या नहीं सहेजते हैं, कितनी वस्तुएँ इकट्ठा कर लेते हैं, अपनी यादों के झरोखों से एक पूरा कमरा भर लेते हैं और शायद मैं ऐसा कभी नहीं कर पाता हूं इसलिए भी एक निकृष्ट सी वस्तु की थोड़ी सी स्निगधता से पूरे एक समयकाल को संजोने की उधेड़बुन में जुट जाता हूं।

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