तोषी अभी सोकर भी नहीं उठी थी, झगड़े की आवाजें सुनाई देने लगी तो आज उसकी नींद तय समय से पहले ही खुल चुकी है। झगड़े की वजह वही पुरानी थी कपड़ों को लेकर। दरअसल तोषी की मां के साथ एक अजीब सा जुनून है कपड़ों को साफ रखने का, तो उन्हें कहीं भी थोड़े गन्दे कपड़े दिखते हैं वो तुरंत उनको धोकर सुखा देती है।
तोषी का भाई अंशुल आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। नहाने के बाद जब उसने कमरे में अपना पेंट खोजा तो उसे अपना कपड़ा मिला नहीं, पता चला कि उसका पेंट छत में सूख रहा है। उस पेंट को पहने हुए तो उसे बस एक ही दिन हुए थे, ज्यादा गंदा भी नहीं हुआ था, ठंड में तो वैसे भी कपड़े ज्यादा गंदे होते नहीं है, कम से कम पेंट को तो रोजाना धोने की जरूरत नहीं है, दो या तीन बार तो पहन ही सकते हैं।
अंशुल नाश्ते की टेबल पर बैठा तो उसने कपड़े धोने की अतिशयता को लेकर मां के सामने जाकर गुस्सा कर दिया कि रोज ऐसे कपड़े धोने की जरूरत क्या थी।
मां ने वही पुराना जवाब दिया- तुम लोग बस मेरे को ही सुनाते हो, तुम ही लोग साफ सफाई से रहोगे, इन्फेक्शन नहीं होगा इसीलिए साफ कर देती हूं।
अंशुल ने कहा- हद होती है किसी चीज की, एक दिन इस पेंट को और पहनूंगा तो कौन सा इन्फेक्शन हो जाएगा।
मां- तुम लोग मेरी बात समझते ही नहीं हो।गंदा है तभी तो धोती हूं।
अंशुल- नहीं यार मम्मी, सुबह से नहा के तैयार हो के इंसान कुछ मिनट के लिए सोचता है कि चलो आज उस कपड़े को पहन के जाऊंगा आप उसी को धोने के लिए डाल देते हो।
मां(मुंह फेरकर)- ठीक है आज के बाद किसी का एक भी कपड़ा नहीं धोऊंगी।
अंशुल(गुस्से में)- यार! सुबह से दिमाग खराब मत किया करो मेरा, बढ़िया अपने मन का कपड़ा भी पहन के नहीं जा सकते आपकी वजह से। हां रहने दो, बिना पूछे मेरा एक भी कपड़ा मत धोना, हद होती है साफ-सफाई की। जब देखो सबको तंग करके रखे हो।
मां कभी अपनी गलती नहीं मानती थी ये सब सुनकर अब वो भी गुस्सा होने लगी, अंशुल और मां के झगड़े के कारण तोषी की नींद टूट चुकी है, अब झगड़ा खत्म होने को है अंशुल अपने आफिस के लिए निकल गया है, और तोषी उठ चुकी है।
तोषी जाकर मां के पास बैठ गयी, उसने मां को बड़े सरल भाव से समझाने की कोशिश की पर मां के अंदर कपड़ों को साफ रखने का जो 'Obsession' है वो कुछ इस तरह गहरे तक हावी है कि उन्हें लगता है कि वही सही हैं। तोषी की एक भी बात का मां पर कोई असर न हुआ। मां के जिद्दीपन को देखते हुए तोषी भी नाराज हो गई, सिर पकड़कर बैठ गई कि मां के इस बर्ताव से आखिर कैसे छुटकारा मिले।
मां जहां कहीं भी थोड़े देर के लिए भी पहने हुए कपड़ों को देख लेती, वहां वो अपनी जिम्मेदारी समझकर किसी से पूछ-परख किए बिना उन कपडों को धो देती। तोषी जब अपने जीन्स और कुछ पसंदीदा कपड़ों को देखती है तो वो भी अपना गुस्सा संभाल नहीं पाती, मां ने बिना बताए कपड़ों को बारंबार धोकर ये हाल कर दिया है कि अब उसके कुछ कपड़े फटने को हैं।
मां के इस जुनूनियत को ऐसे समझें कि जैसे बच्चे या घर का कोई सदस्य जब दिन भर के काम से या बाहर से कहीं घर में प्रवेश करता है तो गेट से घर के अंदर कदम रखने के बीच ही मां उन्हें टोक देती है कि गंदा कपड़ा बिस्तर या कहीं और मत रखना। यानि कि मां के मनोविज्ञान में ये चीज बसी हुई है कि कोई बाहर गया है और अब घर आ रहा है भले समयावधि कितनी भी क्यों न हो लेकिन कपड़े तो गंदे हुए ही हैं। बाहर से आते अपने बच्चों या पति को देखते ही मां का ये एक स्वाभाविक निष्कर्ष उन पर टूट पड़ता है। जो आगे जा के घर के सभी सदस्यों के लिए एक परेशानी का कारण बन जाता है।
और तो और जब घर पर कोई मेहमान आता है तो मेहमान जिस सोफे पर कुछ देर के लिए बैठते हैं मां उस सोफे के कवर को उसी दिन धोने के लिए डाल देती है।
यहां हम बताना चाहते हैं कि मां की इस आदत से छुआछूत या भेदभाव का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। इस जुनून में जितनी विचित्रता विद्यमान है उससे कहीं ज्यादा अतिशयता भी है, जितना कर्त्तव्यबोध है उतना अहम् भी है।
तोषी की मां एक कर्तव्यपरायण, मनस्वी महिला है जो अपने घर को हमेशा सजा कर रखती है, खूब साफ-सफाई रखती है। सफाई और घर के कुछ काम के लिए कामवाली तो पहले से रखे हुए हैं फिर भी तोषी की मां घर की देखभाल में अपना पूरा दिन बिता देती है।खाली समय में जैसे कहीं बाहर जाना भी है तो बेटी की सहायता लेती है। तोषी की मां ने मोपेड(स्कूटी) चलाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन सीखने के दौरान कई बार जब वो चोटिल हो गयीं तो उन्होंने स्कूटी चलाने से हाय तौबा कर ली, बार-बार गाड़ी से गिरने के बाद जब उन्हें डर सा हो गया तो फिर उन्होंने कभी सीखने को हाथ नहीं आजमाया। अब उन्हें कुछ काम के लिए बाहर जाना होता तो घर के बाकी लोगों की मदद ले लेती।
चार लोगों के इस हंसीखुशी परिवार में ये एक छोटी सी समस्या कई बार चिंता का विषय बन जाती है। कई बार घर के बाकी तीन सदस्य मां के कपड़े धोने के इस प्रवृत्ति को लेकर हंसी मजाक में कुछ बोलते हैं तो भी मां को कोई खास फर्क नहीं पड़ता वो भी साथ में हंस देती है। कभी शांति से समझाते हैं तो कहने लगती है कि ठीक है अब से कपड़ों को हाथ ना लगाऊंगी, यानि रुष्ट हो जाती है। जब कोई गुस्सा करता है तो बदले में मां भी गुस्सा कर देती है।
सारे उपाय धरे के धरे रह जाते हैं अंत में बच जाता है तो वही मजबूती से टिका हुआ 'Obsession'. और आखिर कोई किसी के obsession को उससे अलग करे भी तो कैसे।
मां को हमेशा ये महसूस होता है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। कुल मिलाकर अंत में हर कोई उनके इस अजीबोगरीब जुनून के सामने परास्त हो जाता है।
Saturday, 3 December 2016
~ Obsession ~
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment