अभी कुछ दिन पहले की बात है। एक अनजान ने मेरी लिखी कोई साल भर पुरानी बात मुझे ही मैसेज करके कहा कि आपका ये आर्टिकल वार्षिक पत्रिका में छापना है, आपकी अनुमति चाहिए। मैं भूल गया था कि मैंने ये लिखा था, मैंने उन्हें हां कर दिया। मैसेज करने वाले वे कौन हैं मैं उन्हें नहीं जानता इसलिए अचानक कल रात उत्सुकतावश उनकी फेसबुक प्रोफाइल देखा था।
अब हुआ ये कि कल रात यानी आज सुबह चार बजे के आसपास वे मेरे सपने में आये थे। क्यों आये ये पता नहीं, सपने में वो मेरे सामने थे, वे शादीशुदा हैं, शायद किसी पार्टी में मुझे वे मिले, उन्होंने मेरी तारीफ की और कहने लगे यार सुना है तुम्हारे बारे में। इतना कहने के बाद उन्होंने अपनी बातों से मुझ पर हावी होने का प्रयास किया, और मुझसे इस तरीके से बात की जैसे मैं उनके लिए कच्चे माल के रूप में कोई आदर्श ईंधन हूं।
कुछ इस तरह से बात करने लगे कि एक पल को ऐसा लगा कि एक सामान्य से व्यक्ति ने अचानक एक व्यापारी का भेष धारण कर लिया हो। मुझे उनका एक-एक शब्द कांटे की तरह चुभने लगा, जाते-जाते उन्होंने पीठ थपथपाते हुए कहा, चलो कभी घर आना। मैं तो पूरी तरह गुस्से से भर गया, उन्हें भी अच्छे से पता है कि उनके घर मैं कभी जाऊंगा ही नहीं फिर भी उन्होंने जाते-जाते ऐसा कहकर मुझे चोट पहुंचाई।
ये तो हुई सपने की बात जो इतनी ही थी। अब मैंने अपने एक दोस्त से बात की और उससे मैंने बातों में ही पूछ लिया कि यार इनको जानता है क्या? मैंने अपने दोस्त को नहीं बताया कि मैंने ऐसा अजीब सा सपना देख लिया है। जब दोस्त ने कहा कि यार हां जानता हूं तब मैंने दोस्त से कहा कि यार इनके बारे में ऐसा ऐसा सुना हूं कितना सही है, बताना?
दोस्त बोला- भाई सौ प्रतिशत सच्ची बात है ये।
मैं तो ये सुनके एकदम शांत पड़ गया, टूटा तो मन में जैसे कोई भाव ही न बचा।
आप सोच रहे होंगे कि मुझे चार बजे ही सपना आया, ये कैसे याद है। तो वो इसलिए याद है क्योंकि मैंने उसी बीच एक और सपना देखा था जिसके बाद मेरी नींद टूट गई।
ये कोई और थी जिससे पिछले एक महीने से मेरी बातचीत बंद है। ये वही है जिसे मैंने सिर्फ दो दिन मैथ्स पढ़ाया था, हां ये तब की बात है जब मैं हिमाचल के एक पहाड़ी गांव में था। जब मैं उस गांव को छोड़ मैं मैदानों में आ गया। उससे मेरी बात होती तो वो बताती कि उस रफ कापी को वो रोज तकिये के नीचे रखकर सोती है।ये वही रफ कापी था जिसमें मैंने दो चार पेज मैथ्स पढ़ाया होगा। अब तो मैं इससे हजार किलोमीटर दूर हूं तो उसकी बात पर मुझे यकीन न होता, लेकिन वो इस अंदाज से कहती कि शक करने की सारी गुंजाइश वहीं खत्म हो जाती। मैं उस समय के लिए यकीन कर लेता। एक बार जब वो अपने नौनिहाल जा रही थी तो उसके एक दिन पहले जब सामान की पैकिंग कर रही थी तब मेरी उससे बात हुई, मैंने उससे पूछा कि सारी पैकिंग हो गई?
उसने कहा- हां बस कुछ गरम कपड़े रखने हैं बाकी हो गया।
फिर मैंने मजाक में पूछा- और वो रफ कापी कहां है?
उसने कहा- उसे तो सबसे पहले रख चुकी हूं अब तो कपड़ों के नीचे होगा कहीं।
मैं उसकी बात मान लेता, आखिर मैं इस बात की सत्यता क्यों प्रमाणित करूं। जैसा है वैसा स्वीकार कर रहा हूं। उसने एक दिन गुस्से में मुझसे कहा था कि एक परिवार वाले रिश्ता लेकर आये थे, लड़का आर्मी में है। मैंने उन्हें मना कर दिया, इससे पहले कि मैं पूछता, वो रोने जैसे हो गयी। इससे पहले कि मैं उसके बातों की गहराई समझ पाता, उधर से फोन कट हो गया।
मैंने उसे शांत कराने की हरसंभव कोशिश की थी पर कोई अफसोस नहीं जताया। और कुछ इस तरह महीने भर से बात बंद है।
लेकिन कल रात वो सपने में आयी। वो रो रही थी। किसी ने कागज में उसके नाम के साथ कुछ लिखकर रोड में किसी दीवार में चिपका दिया है। उस कागज को कोई हटा नहीं रहा, जो देख रहा है, संशय की स्थिति में है। मानो कुछ श्राप जैसा है इसलिए कोई उसे हटा नहीं पा रहा है। मैं वहां जाता हूं वो कागज फाड़कर फेंकता हूं। उसका घर वहीं है तो वो वहीं पास में खड़ी है, जाते-जाते उसके सिर को सहलाने के अंदाज में छूता हूं और उसके आंखों से ओझल हो जाता हूं।
सपना यहां खत्म होता है।और मैं उसे इस सपने के बारे में कभी नहीं बता सकता क्योंकि न ही वो मेरे इस व्यतिक्रम को समझ पायेगी न ही मैं उसे समझा पाऊंगा।
ये कुछ ऐसा ही था कि एक अणु जो सहसंयोजी बंध बनाना तो चाहता है लेकिन अपने गुणधर्मों को लेकर सचेत है। ये अनावस्था मेरे साथ भी उतनी ही थी जितनी उसके साथ। उसका अपनी पीड़ा बताकर मुझसे बदले में जवाब न लेना, मेरे बोलने से पहले ही उसका संपर्क तोड़ लेना इस बात का सूचक है कि वो भी एक मुक्त इलेक्ट्रान की भांति भ्रमण कर पाती है।
लेकिन आज उसके लिए मेरे भाव बदल गये हैं उसका वो चेहरा जो मैंने सपने में देखा था उसके सामने तो खुली आंखों से देखी हुई हर चीज तुच्छ सी नजर आने लगी है। अंदर सब कुछ कांच के टुकड़े से भी ज्यादा पारदर्शी हो चुका है। अब उस हिमाचल के सुदूर गांव में कभी जाऊंगा कि नहीं ये मुझे भी नहीं पता। मैंने अभी तक उस गांव के दोस्तों से उस लड़की का हाल नहीं पूछा है, और शायद पूछूंगा भी नहीं।
पिछले महीने भर से जिसे मैं पूरी तरह से भूल चुका था। आज वो एक मीठी याद के सहारे,इस एक सपने के सहारे वो फिर से मेरे आसपास है। मैं इस भाव को आदर स्वरूप अपने अंतर में कोई कोना ढूंढकर छुपा लूं यही बेहतर हो।
सपना सिर्फ सपना नहीं होता, वो तो एक दूसरी दुनिया का आह्वान होता है। हमारे देखे हुए सपने उन्हीं विशेषणों के इर्द-गिर्द होते हैं जिसे हमने पूरी सच्चाई से जिया है या जिनकी बात पानी की तरह एकदम शुध्द रूप में हमारे पास आती है जो हमसे दूर होके भी हमारे सबसे निकट होने का अहसास देते रहते हैं। जिनसे हम ज्यादा बातचीत या बहस करना पसंद नहीं करते, जिनके व्यक्तित्व को बस याद करके मन ही मन पूज लेते हैं, ये कुछ चंद लोग ही हमारे सबसे खास होते हैं।और जब इनके साथ कोई घटना या परिघटना होती है तो सपने आते हैं।
और जहां सपने अपना आकार ग्रहण कर रहे होते हैं वहां तर्कशास्त्र अपना वजूद खो देता है, वर्गीकरण समाप्त हो जाता है, सिर्फ भावनाएं होती है और फिर किसी प्रकार की प्रामाणिकता की आवश्यकता नहीं पड़ती।
कभी-कभी महसूस होता है कि असल जिंदगी वो नहीं जो हम जी रहे हैं बल्कि वो है जो हम सपनों में होते हैं। सुबह उठने के बाद जो जिंदगी शुरू होती है वो तो इन सपनों का कितना थोड़ा सा भाग होता है, यूं कहें कि एक प्रोटोटाइप जैसा होता है। इस बात को एस. रामानुजन से बेहतर शायद ही कोई समझता हो जिनके सपनों में फार्मुलेशन आते थे, कभी-कभी वे सपने में देखते कि उनके पैरों में कोई फार्मूला लिख के चला गया। रामानुजन जब अपने फार्मूले को कागज पर उतार रहे होंगे तो कितना कुछ उनके दिमाग में चल रहा होगा, हमें कितना थोड़ा मिलता है। असल दुनिया तो वही है जहां रामानुजन आंख बंद कर के चले जाते थे। शायद दुनिया में बाकी वैज्ञानिकों ने भी कुछ एक सपने देखे होंगे फिर नयी खोज हुई होगी।शायद वे अपने सपनों में गुम रहते होंगे और किसी से इस बात का जिक्र भी नहीं करते होंगे।शायद इसलिए कि उनके देखे सपनों की व्यापकता को उनसे बेहतर कोई समझ न पायेगा। आइन्सटीन, न्यूटन, डार्विन शायद इन्होंने भी सपने देखे होंगे।
शायद.......
एक लिखने वाला यही चाहता है कि आप उसकी लिखी बात ध्यान से पढ़े या ना पढ़े लेकिन ये जरूर पढ़ने की कोशिश करें जो वो लिख नहीं पाता, जो वो लाइनों के बीच में कहीं छुपा देता है आपके सोचने,विचारने के लिए छोड़ देता है। हां तब आप उस लिखने वाले के आस-पास होते हैं उससे बातें कर रहे होते हैं।
मैं जो लिख देता हूं वो इन सपनों का कितना थोड़ा सा है। ऐसा लगता है जैसे देखा गया सपना कुकर में पका हुआ चावल था जिसे मैंने पेट भर खा लिया हो और किनारों में कुछ चावल के कुछ दाने चिपक कर रह गये, उन्हीं को अपनी कला से, एक भाषायी खूबसूरती से आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।
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