Wednesday, 28 December 2016

~ पलकों का धोखा ~


एक बार स्कूल में बाजू वाली टेबल में बैठे लड़के ने अपने साथ बैठे दोस्त को सेकेंड भर में चकमा दिया और उसकी एक किताब छुपा ली, तो इसी बीच उस लड़के पर हमारी नजर पड़ गयी। हमने देखा कि उसने हमें देखते हुए बड़ी चालाकी से अपनी एक आंख छुपा ली।हमें बड़ा गुस्सा आया कि ये किस तरह की कलाबाजी दिखा रहा है। हमें साफ-साफ दिख रहा है कि सामने वाला छल कर रहा है फिर भी उस वक्त हम कुछ कह न पाए।

एक बार घर में काम चल रहा था, मजदूरों को हमने देखा तो पता चला कि काम के बीच में उन्हीं मजदूरों में दो लोग तीसरे साथी मजदूर को परेशान करने वाले हैं और ऐसा करने के ठीक पहले उनकी एक पलक झपकते हुए बंद होने लगती है।
सवाल करने का मन हुआ कि आखिर कहां है कार्य-कारण का सिद्धांत।

एक बार एक लड़का और एक लड़की चौपाटी में नाश्ता करने आये थे तो नाश्ता करने के बाद उन्होंने पैसे चुकाए। असल में जब लड़की पैसे चुका रही थी तो ठेले वाले ने उसे खुल्ले वापस किए और गलती से अतिरिक्त दस रुपए दे दिए। थोड़ी ही देर बाद ऐसा हुआ कि लड़की ने शायद लड़के को बताया होगा कि फलां ठेले वाले ने गलती से उसे दस रुपए ज्यादा थमा दिए हैं तो लड़के ने तुरंत अपनी एक आंख ढंक ली और वे दोनों तुरंत वहां से चलते बने।

अभी कुछ महीने पहले की बात है। एक बार हम यहीं अपने कसौली शहर में खाना खाने एक होटल में गए। ठीक-ठाक भीड़ थी। तंदूरी रोटी और सब्जी, सत्तर रुपए का बिल बन रहा था। खाना खत्म होने के थोड़े ही देर पहले होटल में काम करने वाला लड़का हमारे पास आकर आग्रह करने लगा कि भैया सत्तर हुआ न आपका। बीस रुपए मेरे को दे देना, मैं उधर काउंटर में आपका पचास रुपए बोल दूंगा।
हमने उसकी बात मान ली और उसे बीस रुपए दे दिए। होटल से जब हम वापस जा रहे थे तो गलती से जब उस काम करने वाले पर नजर पड़ी तो उसने हमें देखते हुए अपनी एक आंख ढंक ली।

बचपन में हम एक बार मामा घर गए, नानी से दस रुपए मांगे तो उन्होंने नाना को पैसे देने के लिए आवाज लगाई और सख्त अंदाज में मुझसे कहा कि सारे पैसे आज ही खत्म मत कर देना। हम जब नाना के पास गये तो उन्होंने हमें पंद्रह रुपए थमा दिए और कहा कि तेरी नानी तक बात पहुंचने मत देना और इतना कहने के पश्चात् नानाजी ने अपनी एक आंख ढंक ली। हमें लगा कि नानाजी कितने प्रतिभावान हैं।
और तो और हमारे पापा, चाचा, मामा उनको भी ये कला आती है।

हमारे साथ में पढ़ने वाली स्कूल और कालेज की अधिकतर लड़कियां आसानी से जब मौका मिले अपनी एक आंख ढंक लेती हैं।
कभी-कभी लगता है कि ये कैसा छलावा है और आखिर किसने हमारे सामने ये प्रतीकात्मकता रच दी है। किसने ये चालबाजी इजात की है।

हमने भी आजमा कर देखा, बारंबार प्रयास किया। एक बार कोशिश करने के दौरान ऐसा हुआ कि हमारे साथ पूरी एक दुर्घटना हो गई। जब हम अपने दोस्त के सामने अपनी एक आंख बंद कर रहे थे तो उसने कहा- भाई बोलना क्या चाह रहा है, बे! ये कैसा मुंह बना रहा है। आगे जब उसने कहा कि क्यों पलक झपका रहा है तब हमें पूरा मामला समझ आया कि हमारी दोनों आंखें बराबर बंद हो रही है। हमें बड़ी हंसी आई और हमने अपनी बात वापस ले ली। हम असफल हो चुके थे।
हमारी नेत्रिन्द्रयां हार मान चुकी थी।
जवानी का चौबीसवां पार चुके लेकिन ये आंख मारने की कला अभी तक हमारे पाले में न आई।

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