Tuesday, 27 December 2016

तुम्हारे लिए-

मेरे शब्द तुमसे क्या कहते,
वो ये नहीं कहते कि तुम खूबसूरत हो।
वे कहते कि उसने तुम्हारे इन बालों को देखा,
जो कभी-कभी खुलते हैं तो हवा में तैरने लगते हैं,
कभी माथे को चूमते हैं
तो कभी कानों में सुशोभित बालियों को छूते हुए मदमस्त लहराते हैं।
बेफिक्र, बेपरवाह तुम्हारे ये बाल छुपा देना चाहते हैं तुम्हारे चेहरे को भी,
वो कहना चाहते हैं कि तुम मेरा आभूषण भर नहीं हो,
तुम मेरा हिस्सा हो, तुम्हारे बिना अधूरापन सा लगता है।
तुम कभी मुझसे नाराज मत होना,
दिन में कम से कम एक बार मुझ लहराते बालों से मिल लेना,
कुछ एक मिनट के लिए बात कर लेना।
और हां तुम, अब तुमसे कह रहा हूं,
इन दोनों को न तुम ऐसे ही मिलने देना, बात करने देना,
ये दोनों जिन्दगी भर हमेशा तुम्हारा ख्याल रखेंगे।
तुम्हारा शुक्रिया अदा करेंगे।

और तो और जब भी तुम्हारे आसपास निराशा रूपी बादल आने लगेंगे,
तो मोर पंख की तरह तुम्हारे ये बाल लहराने लगेंगे,
चेहरे के करीब से एक लकीर बनाते हुए,
अपने क्षेत्रफल पर अधिकार जताते हुए,
विस्तार को विभाजित करते हुए,
तुम्हारे इन गालों को छूते हुए वो खुली हुवा में उड़ने लगेंगे।
हां तुम इन्हें रोक न पाओगी,
ये लहराने को इतना बैचेन हो जायेंगे कि तुम्हें इन्हें खोलना पड़ेगा,
खुली हवा के हाथों छोड़ना पड़ेगा।

देखो,
तुम्हारे आसपास कुछ पत्तियां गिरी हुई है,
हां वो झड़ चुकी हैं तुम्हारे किसी टूटे बाल की तरह,
वो भी कभी किसी पेड़ का हिस्सा थी।
पर वो अब अकेली पड़ गई है, हवा आती है और उन्हें दूर कहीं ले जाती है।
वो तुम्हारे इन बालों की तरह मजबूत नहीं हैं,
उनकी शक्तियां सीमित हैं,
उनके अणुओं का समुच्चय कमजोर है
इसलिए तो हवा, पानी और मिट्टी हर कोई उनको अस्तित्व विहिन कर देता है।
उन्हें भी पता है कि उनका जीवन क्षणिक है इसलिए उन्हें अब किसी पराये माध्यम(हवा) के सहारे यहां से वहां जाना नहीं पसंद,
वो अपने शरीर पर अब और मिट्टी लादना नहीं चाहती,
उन्हें पानी में भीगना भी नहीं पसंद,
देखो न सूरज की किरणों की वजह से उसकी त्वचा पहले से कितनी फीकी पड़ गई है।
अब तो इस आवारगी से बेहतर वो जल जाना पसंद करेगी।
बिना आवाज किए आग में कहीं जलकर तुम्हें रोशनी और ऊष्मा से भर देगी।
क्या तुम्हें उसका ये समर्पण दिखाई नहीं देता,
क्या तुमने उसके अकेलेपन को महसूस किया,
तुम्हें तो ये पतझड़ का मौसम लगता है।
और सुनो अभी भी वहीं कहीं बैठी न हो न तुम,
देखो वहीं पास में हवा के साथ-साथ एक चिड़िया आयेगी और दाने चुगकर चली जाएगी,
हां ये भी तो उसी हवा का हिस्सा थी, जिसने तुम्हारे बालों को आकर छुआ है।
तुमने उस चिड़िया को नहीं देखा न,
तुम्हें सच में उसे देखना था, 
उसके पंख भी लहराते हैं ठीक तुम्हारे इन बालों की तरह,
हां ये दुनिया की सबसे खूबसूरत सममिति है।

सुनो!
तुम्हारा माथा इतना सूना क्यों लग रहा है?
क्या कहा?
तुमने टीका नहीं लगाया,
काश तुमने टीका लगाया होता तो मैं कह पाता,
कह पाता कि लाल रंग का टीका तुम्हारे श्रृंगार को द्विगुणित कर देगा,
गाढ़े लाल रंग का टीका,
जिसमें कुछ पीले चावल चिपके होंगे जो तुम्हारे चेहरे की शोभा बड़ा रहे होंगे।
लेकिन कुछ देर के बाद तुम्हें ये अहसास होगा कि चावल के दाने जो चिपके हुए थे,
वो अब धीरे-धीरे झड़ने लगे हैं।
ये वही चावल के दाने हैं जो जमीन पर गिरने से पहले,
अपने अंग-प्रत्यंग को उस लाल रंग से लपेट देना चाहते हैं।
अपने मूल श्वेत रंग को तो उन्होंने पहले ही खो दिया है,
अब वे इस पीले रंग को त्याग कर लाल हो जाना चाहते हैं।
पता है वे ऐसा क्यों करते हैं,
वो इसलिए कि नीचे गिरने के बाद जब कोई श्वेत चावल का दाना उन्हें देख कर मजाक उड़ाने लगता है तो वे इस लाल रंग को एक साक्ष्य के रूप में दिखाते हैं और अभिमान से कहते हैं कि देखो मुझमें अब पीला रंग ज्यादा नहीं बचा है।
ये देखो लाल रंग, पता है इसे मैं कहां से लेकर आया हूं।
वो जल्दी देखो सामने,
श्वेत चावल - कितनी खूबसूरत है वो।
पीला चावल- हां मैं अभी उस लड़की के माथे पर था, तुम क्या जानो कि मैं उसके सौंदर्य का हिस्सा था। हां ये मेरा सौभाग्य है कि मैं उसकी त्वचा से लिपटकर आज उसके श्रृंगार का हिस्सा बना, उसी ने मुझे बदले में ये कीमती लाल रंग दिया है। पता है वो मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी लेकिन मैंने ही अपनी पकड़ ढीली कर ली और नीचे यहां तुम्हारे पास आ गिरा, पता है मैंने ऐसा क्यों किया ताकि वो फिर से मुझ पीले चावल को अपनाए। कल जब फिर से वो खुद को संवार रही होगी तो मैं एक नये पीले चावल का रूप धर लूंगा और पीतल की थाली में उसका इंतजार करुंगा।

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