Thursday, 24 November 2016

~ एक मिनट ~


शाम के छः बज चुके हैं..ठंडियों की शाम है तो दिन ढल चुका है, गाड़ियों की लाइटें जल चुकी है। सब अपना काम निपटाकर घर को लौट रहे हैं, इन सब लोगों की तरह वो भी घर को लौटने वाली है, बस स्टापेज से उतरकर वो रोड के दूसरी तरफ अपने घर की ओर जाने वाले रास्ते में स्कार्फ बांधे हुए खड़ी है ,जहां उसका भाई उसे लेने आता है।
भाई को तो लेने आने के लिए उसने पहले से फोन लगा दिया था, लेकिन अभी तक वो लेने नहीं पहुंचा है। तो इस बीच चौराहे में खड़े-खड़े उसे थोड़ी बोरियत होती है तो अपना फोन निकालकर स्क्राल करने लग जाती है। तभी वो असहजता महसूस करती है, लगातार गुजरती गाड़ियों की रोशनी जो उसके आंखों में पड़ रही थी, इस बीच एक छाया अड़चन बन कर आ रही है जो उसके सामने बेफिजूल मंडरा रही होती है, असल में दो लोग जो उसके आसपास हैं, एक किसी से फोन में बात कर रहा होता है, और एक जो ऐसे ही हाथ मलते हुए टहल रहा होता है, वे दोनों बार बार उसके नजदीक से होकर गुजरते हैं, लड़की भी जो फोन में नजर गड़ाये हुए है, हल्के कदमों से ही सही अपनी जगह बदल रही होती है, वे दोनों आदमी कभी उसके आगे से होकर जाते हैं तो कभी उसके ठीक पीछे से..कभी एक निश्चित दूरी बनाकर तो कभी कुछ इंच दूर से।
लड़की अपनी असहजता दूर करने के लिए किसी को फोन लगाती है और कहती है, कहां है, इतना टाइम लगता है क्या आने में? जल्दी आ।
लड़की ने कुछ देर पहले ही तो भाई को फोन किया था, वो एक बार और फोन आखिर क्यों लगाती है?
शायद अब उसे इंतजार करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है।
इस बीच वो दोनों आदमी चले जाते हैं। लड़की का मन थोड़ा हल्का हो जाता है।
ये सब कुछ मिनट भर में हो जाता है।
लड़की को अच्छे से पता है कि चौराहा है, थोड़ा भीड़भाड़ इलाका है तो ये लोग चाह के भी मुझसे बात करने की कोशिश नहीं कर सकते न ही किसी तरीके से परेशान करेंगे। हां ह्रदयगति को थोड़ा छिन्न-भिन्न जरूर कर सकते हैं और ये तो नैचुरली है, नजर अंदाज करना पड़ेगा।
            उन दो आदमियों को भी अच्छे से पता है कि लड़की से उनका किसी प्रकार का कोई जुड़ाव हो नहीं सकता ना ही कोई बातचीत हो सकती है उनको ये भी पता है कि वो safe game खेल रहे हैं, उन्हें ये भी पता है कि इस भीड़ में उन्हें कोई नोटिस कर ही नहीं पायेगा न ही कोई कुछ बोल पायेगा। फिर भी "If you cant connect with her, atleast make her nervous" इस मनोवृति के सहारे वो उस लड़की के इर्द-गिर्द घूम लेते हैं और मिनट भर में चले जाते हैं।
             कुछ देर के बाद लड़की का भाई आ जाता है, लड़की अपने भाई की पीठ पर हल्के हाथ से मारती है और कहती है..पागल, कहां था, कोई इतना लेट लगाता है, अब से इतना लेट लगाएगा तो तुझे लेने आने के लिए कभी नहीं बुलाऊंगी मैं,समझा।
शायद इस छोटी से घटना ने उसके हाथ को अपने भाई की पीठ तक पहुंचा दिया, ये हल्की सी मार इस बात की गवाह है कि अभी लड़की के मनोविज्ञान में वे दोनों लोग, उनके द्वारा की गई ये छोटी सी ओछी हरकत कहीं न कहीं थोड़ी मात्रा में बची हुई है।
लड़की फिर अपने भाई के साथ घर चली जाती है, वो किसी को नहीं बताती कि मिनट भर में ऐसा कुछ हुआ, उसे लगता है कि भला ये भी कोई बताने की बात है।
अगले दिन फिर सुबह आफिस और कुछ इस तरह वो एक मिनट की असहजता मानो उसके रक्त कणों में घुलकर कहीं लुप्त हो जाती है।

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