आसाम की उस लड़की से मेरी बात बंद हो गई। वजह ये रही कि मैंने उसकी मासी से एक बार तू तड़ाक वाले लहजे में बात कर दिया था साथ ही और भी कुछ कुछ कारण थे। दोनों में से किसी ने एक दूसरे को मनाने बुझाने का प्रयास नहीं किया और हमारी बात पूरी तरह से बंद हो गई।
उसके पापा अब पूरी तरह ठीक हो गए हैं। इस बीच एक ऐसा संयोग हुआ कि मेरे पापा को ठीक वैसे ही हार्ट अटैक आया। पूरा Scenario हूबहू वैसा का वैसा। मंगलवार की रात के दो बजे हार्ट अटैक आता है और फिर हम अस्पताल जाते हैं।
अच्छा एक जरूरी बात बताता हूं। मान लीजिए आप गहरी नींद में सो रहे हैं और आपको अचानक इतना दर्द हुआ कि आपकी नींद टूट जाती है। तो समझ लेना चाहिए कि ये सामान्य घटना नहीं है, ये किसी बड़ी बीमारी का ही सूचक होता है।
उस लड़की से बमुश्किल दो महीने तक मैंने बात की होगी। फिर मेरी बात हमेशा के लिए बंद हो गई। हां तो क्या हुआ कि पांच साल बाद उसका मैसेज आया। मैं चौंक उठा। इन पांच सालों में कितना कुछ बदल गया था। वो पुराना हवा का झोंका फिर से याद आ गया, हां पांच साल पहले मैं उससे बात नहीं करता था वो तो कोई और ही था जो उससे बात करता था। हां वो भिलाई(छत्तीसगढ़) में रहा करता था, जहां वो रहता था, वहां नीचे एक किराने के सामान की छोटी सी दुकान थी। दो नारियल के पेड़ भी थे, उसी पेड़ के पास बालकनी में बैठकर वो बात किया करता था, बात करते हुए रोज पड़ोस के घर से अगरबत्ती की खुशबू उसके नासिका तक पहुंचती थी। चंदन की उस खुशबू को अपनाता, आंखें बंद कर लेता और जब आंखें खोलता तो नारियल पेड़ के लंबे लहराते पत्तों को एक टक देखते रहता। कुछ इस तरह बात करते-करते वो खो जाता, कहीं और ही चला जाता।
जब उधर से झटकाने की अंदाज में आवाज आती कि अरे तुम मेरा बात सुन रहा है न। तो वो कहता कि हां फिर से बोलो सुनाई नहीं दिया। खाने का वक्त हो जाता तो अपने दोस्तों से कहता कि यार आज मेस नहीं जाउंगा, खाना पैक करा के ला देना।अब उसकी बात हो चुकी है, लड़की ने फोन रख दिया है, फिर भी वो कुछ मिनट उस बालकनी की हवा में बैठा रहता। पूर्णिमा के चांद से उस नारियल पेड़ की परछाई को देखता और फिर कहीं गुम हो जाता।
बहरहाल लड़की से उसकी बात बंद हो गई है तो वो ये सब भूल चुका है लेकिन जब कभी कहीं से उसे चंदन की खुशबू आ जाती है वो फिर से पीछे चला जाता है और उसी नारियल के पेड़ की आड़ में खुद को पाता है। कभी गलियारे से गुजर रहा है, किसी घर से वही खुशबू उसे आ रही है, वहां कुछ सेकेंड के लिए रूक जाता है। उस घर को देखने लगता है फिर वो ये सोचकर आगे बढ़ जाता है कि यहां वो बात नहीं है। यहां तो नारियल का पेड़ भी नहीं है। और फिर अपने आज में वापस लौट आता है।
इतने लंबे समय के बाद जब मेरी लड़की से बात हुई तो उसने बताया कि वो अभी मम्मी और छोटी बहन के साथ गुड़गांव में रहती है और ऐमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही है।उसका बायफ्रेंड भी है, बोल रही थी कि बहुत पढ़ाकू है, फिर उसने चुटकी लेते हुए कहा कि तुम्हारा जैसा इधर दिल्ली में कोई मिलता नहीं है। आगे उसने बताया- मम्मी ने पालिटिक्स हमेशा के लिए छोड़ दिया है, पापा, दादा-दादी और बाकी लोग अभी गुवाहाटी में ही रहते हैं, और सुनो gg मेरा छोटा बहन तुम्हारा हिन्दी सिखाना बहुत याद करता है, कभी घर आना मिलने।
मेरी जिस दिन उससे फोन पर बात हुई थी उस दिन मैं नैनीताल में था, मैं उसे पहाड़ों के बारे में बताने लगा। उसने कहा कि मुझे पहाड़ नहीं पसंद, मुझे डर लगता है पहाड़ो से। आगे उसने डर की वजह भी बतायी कि एक बार कार से उत्तराखंड घूमने गये थे, मसूरी से धनौल्टी वाले रास्ते में जा रहे थे। एक गाड़ी में मामा, मामी और बच्चे थे और पीछे एक दूसरी गाड़ी में वो अपने मम्मी पापा और बहन के साथ थी। दुर्घटनावश मामा लोगों की गाड़ी खाई में गिर गई, कोई भी जिन्दा नहीं बचा। अब उसने अपने आंखों के सामने मौत का यह मंजर देख लिया तब से वो पहाड़ों से डरती है।
जब मैं नैनीताल से दिल्ली वापस आया तो उसे कहा कि चलो मिलना कभी , मैं महीने भर यही हूं। एक दिन मिलने का प्लान हो गया। मैं खुद बोल तो दिया था लेकिन पता नहीं क्यों एक घबराहट सी हो रही थी। आशंका रूपी बादल मुझे घेर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि लोग बात करते हैं फिर मिलते हैं चाय पीते हैं पार्टी करते हैं, फिर बात करते हैं फिर मिलते हैं और एक रिश्ता बन जाता है। लेकिन पता नहीं क्यों मैं इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पा रहा था। हां ये ऐसे मिल लेना मेरे लिए एक प्रक्रिया भर थी। एक पल को लगता कि आखिर मैं क्यों मिलूं। मिल लूंगा तो सब तबाह हो जाएगा, अभी जैसे दूर बैठे उसे याद कर पा रहा हूं, ये फिर कभी नहीं होगा। बिना मिले ही उसे ख्वाब में देख लेने का ये आकर्षण हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। क्यों न मैं इस प्रक्रिया को उलट दूं और उससे कभी ना मिलूं, हां वो कीमती है। उससे जुड़े ये खयाल, ये दमक, ये लालिमा, ये अहसास कीमती हैं, मैं इसे एक खजाने की तरह छुपा क्यों नहीं लेता।
मन में ये बैठ गया कि किसी से ना मिलना, मिलने से कहीं ज्यादा अच्छा है। शायद यही मेरा इनर्शिया था जो मुझे कहीं न कहीं मजबूती से पकड़ा हुआ था।
तो आखिरकार नेहरू प्लेस एक रेस्तराँ में मिलना तय हुआ। मैं करोल बाग से मेट्रो पकड़ के नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन पहुंच चुका था।कभी ट्रेवलिंग और रेस्तरां चेक इन करने का फेसबुक अपडेट नहीं डाला था लेकिन उस दिन नेहरू प्लेस के उस रेस्तरां का अपडेट पहुंचने से पहले ही डाल दिया। आटो लेकर आगे मुझे उस रेस्तराँ तक जाना था। उसके आने में अभी काफी समय था। अब पता नहीं क्यों मेरे कदम आगे बढ़ नहीं पा रहे थे। मैं कुछ देर के लिए वहां बैठा। मेरा इनर्शिया मुझे घेरे जा रहा था। एक बार को लगता कि यार मिल लेता हूं बेवजह ज्यादा सोचना भी ठीक नहीं।
आखिरकार मैं नेहरू प्लेस से वापसी की मेट्रो लेकर अपने कमरे को आ गया। हां मैं उससे नहीं मिला, उसको मैंने खतरनाक सा बहाना मार दिया और वो भी मेरी बात से संतुष्ट हो गई।
कमरे में आया तो दोस्त ने पूछा- वाह! नेहरू प्लेस स्टारबक्स, मिल आया?
मैंने कहा- हां भाई.
दोस्त ने कहा- बड़ी जल्दी आ गया।
इस पर मैंने उसे झूठ-मूठ की कहानी थमा दी।
पचास किलोमीटर के मेट्रो के सफर और गर्मी की तपिश के कारण मैं थक चुका था।मन में एक अजीब सी ठंडक घर कर गई कि मैं उतनी दूर गया और उससे बिना मिले वापस आया, हां मैंने उसे अपने अंदर संभाल लिया, यही तो मेरा इनर्शिया था, उससे 'ना मिलने का इनर्शिया'। और मैं अपने इनर्शिया को साथ लेकर सो गया।
The Balcony with a greenish light and closed window, A place where the whole background is overlapped by two coconut trees and nestle down by such beautiful memories.
this Picture is LIFE.
this is HEAVEN.
उसके पापा अब पूरी तरह ठीक हो गए हैं। इस बीच एक ऐसा संयोग हुआ कि मेरे पापा को ठीक वैसे ही हार्ट अटैक आया। पूरा Scenario हूबहू वैसा का वैसा। मंगलवार की रात के दो बजे हार्ट अटैक आता है और फिर हम अस्पताल जाते हैं।
अच्छा एक जरूरी बात बताता हूं। मान लीजिए आप गहरी नींद में सो रहे हैं और आपको अचानक इतना दर्द हुआ कि आपकी नींद टूट जाती है। तो समझ लेना चाहिए कि ये सामान्य घटना नहीं है, ये किसी बड़ी बीमारी का ही सूचक होता है।
उस लड़की से बमुश्किल दो महीने तक मैंने बात की होगी। फिर मेरी बात हमेशा के लिए बंद हो गई। हां तो क्या हुआ कि पांच साल बाद उसका मैसेज आया। मैं चौंक उठा। इन पांच सालों में कितना कुछ बदल गया था। वो पुराना हवा का झोंका फिर से याद आ गया, हां पांच साल पहले मैं उससे बात नहीं करता था वो तो कोई और ही था जो उससे बात करता था। हां वो भिलाई(छत्तीसगढ़) में रहा करता था, जहां वो रहता था, वहां नीचे एक किराने के सामान की छोटी सी दुकान थी। दो नारियल के पेड़ भी थे, उसी पेड़ के पास बालकनी में बैठकर वो बात किया करता था, बात करते हुए रोज पड़ोस के घर से अगरबत्ती की खुशबू उसके नासिका तक पहुंचती थी। चंदन की उस खुशबू को अपनाता, आंखें बंद कर लेता और जब आंखें खोलता तो नारियल पेड़ के लंबे लहराते पत्तों को एक टक देखते रहता। कुछ इस तरह बात करते-करते वो खो जाता, कहीं और ही चला जाता।
जब उधर से झटकाने की अंदाज में आवाज आती कि अरे तुम मेरा बात सुन रहा है न। तो वो कहता कि हां फिर से बोलो सुनाई नहीं दिया। खाने का वक्त हो जाता तो अपने दोस्तों से कहता कि यार आज मेस नहीं जाउंगा, खाना पैक करा के ला देना।अब उसकी बात हो चुकी है, लड़की ने फोन रख दिया है, फिर भी वो कुछ मिनट उस बालकनी की हवा में बैठा रहता। पूर्णिमा के चांद से उस नारियल पेड़ की परछाई को देखता और फिर कहीं गुम हो जाता।
बहरहाल लड़की से उसकी बात बंद हो गई है तो वो ये सब भूल चुका है लेकिन जब कभी कहीं से उसे चंदन की खुशबू आ जाती है वो फिर से पीछे चला जाता है और उसी नारियल के पेड़ की आड़ में खुद को पाता है। कभी गलियारे से गुजर रहा है, किसी घर से वही खुशबू उसे आ रही है, वहां कुछ सेकेंड के लिए रूक जाता है। उस घर को देखने लगता है फिर वो ये सोचकर आगे बढ़ जाता है कि यहां वो बात नहीं है। यहां तो नारियल का पेड़ भी नहीं है। और फिर अपने आज में वापस लौट आता है।
इतने लंबे समय के बाद जब मेरी लड़की से बात हुई तो उसने बताया कि वो अभी मम्मी और छोटी बहन के साथ गुड़गांव में रहती है और ऐमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही है।उसका बायफ्रेंड भी है, बोल रही थी कि बहुत पढ़ाकू है, फिर उसने चुटकी लेते हुए कहा कि तुम्हारा जैसा इधर दिल्ली में कोई मिलता नहीं है। आगे उसने बताया- मम्मी ने पालिटिक्स हमेशा के लिए छोड़ दिया है, पापा, दादा-दादी और बाकी लोग अभी गुवाहाटी में ही रहते हैं, और सुनो gg मेरा छोटा बहन तुम्हारा हिन्दी सिखाना बहुत याद करता है, कभी घर आना मिलने।
मेरी जिस दिन उससे फोन पर बात हुई थी उस दिन मैं नैनीताल में था, मैं उसे पहाड़ों के बारे में बताने लगा। उसने कहा कि मुझे पहाड़ नहीं पसंद, मुझे डर लगता है पहाड़ो से। आगे उसने डर की वजह भी बतायी कि एक बार कार से उत्तराखंड घूमने गये थे, मसूरी से धनौल्टी वाले रास्ते में जा रहे थे। एक गाड़ी में मामा, मामी और बच्चे थे और पीछे एक दूसरी गाड़ी में वो अपने मम्मी पापा और बहन के साथ थी। दुर्घटनावश मामा लोगों की गाड़ी खाई में गिर गई, कोई भी जिन्दा नहीं बचा। अब उसने अपने आंखों के सामने मौत का यह मंजर देख लिया तब से वो पहाड़ों से डरती है।
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मन में ये बैठ गया कि किसी से ना मिलना, मिलने से कहीं ज्यादा अच्छा है। शायद यही मेरा इनर्शिया था जो मुझे कहीं न कहीं मजबूती से पकड़ा हुआ था।
तो आखिरकार नेहरू प्लेस एक रेस्तराँ में मिलना तय हुआ। मैं करोल बाग से मेट्रो पकड़ के नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन पहुंच चुका था।कभी ट्रेवलिंग और रेस्तरां चेक इन करने का फेसबुक अपडेट नहीं डाला था लेकिन उस दिन नेहरू प्लेस के उस रेस्तरां का अपडेट पहुंचने से पहले ही डाल दिया। आटो लेकर आगे मुझे उस रेस्तराँ तक जाना था। उसके आने में अभी काफी समय था। अब पता नहीं क्यों मेरे कदम आगे बढ़ नहीं पा रहे थे। मैं कुछ देर के लिए वहां बैठा। मेरा इनर्शिया मुझे घेरे जा रहा था। एक बार को लगता कि यार मिल लेता हूं बेवजह ज्यादा सोचना भी ठीक नहीं।
आखिरकार मैं नेहरू प्लेस से वापसी की मेट्रो लेकर अपने कमरे को आ गया। हां मैं उससे नहीं मिला, उसको मैंने खतरनाक सा बहाना मार दिया और वो भी मेरी बात से संतुष्ट हो गई।
कमरे में आया तो दोस्त ने पूछा- वाह! नेहरू प्लेस स्टारबक्स, मिल आया?
मैंने कहा- हां भाई.
दोस्त ने कहा- बड़ी जल्दी आ गया।
इस पर मैंने उसे झूठ-मूठ की कहानी थमा दी।
पचास किलोमीटर के मेट्रो के सफर और गर्मी की तपिश के कारण मैं थक चुका था।मन में एक अजीब सी ठंडक घर कर गई कि मैं उतनी दूर गया और उससे बिना मिले वापस आया, हां मैंने उसे अपने अंदर संभाल लिया, यही तो मेरा इनर्शिया था, उससे 'ना मिलने का इनर्शिया'। और मैं अपने इनर्शिया को साथ लेकर सो गया।
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