Thursday, 22 December 2016

~ Hollywood Movies ~


हालीवुड का आफिस अमेरिका में है।अमेरिका एक ऐसा देश, जो देश कम और बिजनेसमैन ज्यादा है। जो पूरी दुनिया को प्रभावित करता है कभी अपनी नीतियों से, कभी अपने संगठनों के माध्यम से, कभी अपने साधनों(फूड चैन) से तो कभी अपने बनाये नैतिकता के पैमानों से। और साथ ही इन हालीवुड फिल्मों से।
               अमेरिका एक ऐसा देश है जो सबसे ज्यादा विकसित है,साइंटिफिक है यानि उसके पास अपनी जरूरत के सारे साधन है जो एक देश के लिए सर्वोपरि होते हैं पर कुछ चीजें जो अमेरिका के पास बिल्कुल भी नहीं है और वो है सामाजिकता, साधन शुचिता, मानवता। इन सब मामलों में अमेरिका शून्य है। इसलिए अगर दुनिया में सबसे वाहियात मुल्क कोई है तो वो अमेरिका है।
               अमेरिका के हालीवुड सेंटर से हर साल अच्छी फिल्में आती रहती है। हां अच्छी फिल्में, जिनके मूल में एक ही चीज रहती है वो यह कि दुनिया खतरे में है, दुनिया को बचाना है। इन कबाड़ सी फिल्मों का एक भयावह दौर चल रहा है जहां फिल्म शुरू हुए पांच मिनट भी पूरे नहीं होते कि फिल्म का नायक/खलनायक या आर्मीमैन बंदूक से गोलियां दागते दिख जाता है। असल में मौत को इस तरीके से पेश किया जाता है कि हम जैसे ही देखते हैं, एक अजीबोगरीब साहस से भर जाते हैं। उनके एक्शन से प्रभावित होकर उन्हें हर तरफ फालो करते हैं। पर अमेरिका भी जानता है कि लोग हमेशा मारकाट नहीं देखेंगे इसलिए अपनी छवि ठीक करने के लिए वो साल दो साल में नासा से कुछ खास पकवान यानि Interstellar, Gravity जैसी फिल्में बनाकर हमारे मनोविज्ञान में एक दूसरी दुनिया का चित्रांकन कर देता है और हम ज्ञान विज्ञान की एक अद्भुत झलक पाकर गदगद हो जाते हैं।
               अभी पिछले दस साल में ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ गई है जिसमें लगभग हर दूसरे फिल्म में फौजियों की टुकड़ियां हैं जो बंदूक, टैंक और गोलबारूद से लैस हैं, जो एक ऐसी लड़ाई लड़ते हैं जिसका जन्म उन्हीं के द्वारा हुआ है और लड़ाई को खत्म भी वही करते हैं। अंततः लोगों के दिमाग में जो चीज तगड़े से पहुंचती है वो ये कि दुनिया को बचाना है। कभी कभार सवाल करने का मन होता है कि भाई आखिर दुनिया को किससे बचाना है। हमने ज्यादा से ज्यादा गली में हाथ,पांव या डंडे से लोगों को लड़ते देखा है और दूसरा ये कि हमारा एक बदमाश पड़ोसी देश है जिसकी खबर हमें मिलती है कि वो आये रोज सीमा पार से बंदूक तान रहा है, चीजें यहां तक सीमित हैं। लेकिन ये अमेरिका किससे लड़ रहा है ये नामुराद देश जो पूर्णतः सुविधासंपन्न है। ये अपने फिल्मों के माध्यम से हमेशा ये दिखाने की कोशिश करता है कि उसे किसी ने छेड़ा है और वो उसका बदला लेगा और सामने वाले को मार के ही दम लेगा। कभी सरहद पार के किसी दूसरे देश से लड़ता है कभी समुद्री मार्ग तो कभी हवाई मार्ग से तंग करता है, जब ये सब से उब जाता है तो ग्रह, नक्षत्रों और एलियन से लड़ाई करता है।
                 सोचिए कैसी अजीबोगरीब मस्तक हमारे सामने है। अमेरिका जो विश्व में सबसे ज्यादा "Arms and ammunition" का उत्पादन करता है। अब इसे ऐसे समझें कि अमेरिका के पास हथियार इतनी ज्यादा मात्रा में है कि अब हथियार अमेरिका का एक 'Resource' है यानि किसी एक चीज का उत्पादन इतना हुआ कि वह रिसोर्स में तब्दील हो जाए। और चीज भी ऐसी है जिसका मूल यह कि ये चीज लोगों को मारने के काम में आता है। अब हथियार इतनी मात्रा में बना लिए गए कि फिल्में भी उसी कायाकल्प में बनती है।
              एक ऐसा राष्ट्र जहां हथियार और आर्मी का माहौल वहां की हवा में मूलतः विद्यमान है तो वहां की फिल्मों में डंडे से लड़ने वाली लड़ाइयां तो नहीं दिखाई जा सकती, ये असंभव है। और उसी अमेरिका में ये सुनने मिल जाता है कि वहां एक बीस साल का सिरफिरा लड़का स्कूल में घुसकर तीस चालीस बच्चों को गोली मार दिया। हां ये अमेरिका जैसे विकसित देश में ही हो सकता है।
                चाहे वो John wick, taken जैसी फिल्म हो या James bond, fast and furious series हर फिल्म में वो दर्शकों की आंखों में धूल झोंक देता है। हां जी वो फिल्म इंडस्ट्री इतनी चालाक है जिसकी शायद आप और हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इतनी चतुराई से वो पूरी फिल्म की भूमिका बांधते हैं कि हम उनके काम को नजर अंदाज कर नहीं पाते, हम देखने को विवश हो जाते हैं। वो हर एक्शन फिल्म को पहले देश, पारिवारिक भावनाओं या रिश्तों से जोड़ता है फिर वहां खलल डालता है नायक के दिमाग में गुस्सा भर देता है और फिर खूब तांडव मचाता है, गोलियां बरसाता है, हिम्मत का परिचय देता है और हम उनके इस अभिनय के कायल हो जाते हैं। हमें मौत का यह प्रस्तुतीकरण खूब पसंद आता है।
                 Taken series के अभिनेता लियाम नीसन को अपने फिल्म की बंदूकबाजी को लेकर जब वाहवाही मिलनी शुरू हुई तो शायद इन सब से वे खुश नहीं थे। उन्होंने एक बार मीडिया प्रेस कांफ्रेस में यूएस गन ला को कलंक तक कह डाला। उसके बाद taken फिल्म में बंदूक मुहैया कराने वाली अमेरिकी कंपनी ने नीसन को सब तरफ से बैन करवा दिया कि इन्हें यूएस और हालीवुड की कोई भी अथारिटी अपने हथियार या गैजेट नहीं देगी। सनद रहे कि नीसन ने आगे चलकर मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल में भी काम किया है। नीसन का पश्चाताप कुछ ऐसा ही था जैसा वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल का था। अल्फ्रेड नोबेल को डायनामाइट के आविष्कार के बाद जो उपाधियां मिलने लगी, उससे उनकी भी आत्मा जवाब देने लगी। जीवन के अंतिम समय में वे इन उपाधियों से खुद को अलग करने के लिए जूझते दिखे और आखिरकार उन्होंने नोबेल पुरुस्कार देने की परंपरा इजात की और आज दुनियाभर में अधिकांशतः उन्हें इसी वजह से याद किया जाता है।
               आप सोच रहे होंगे कि यहां सिर्फ अमेरिका को बोला जा रहा है। नहीं ऐसा नहीं है रूस, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे और भी कुछ विकसित देश हैं जो सभ्यता के इस वीभत्स रूप का पोषण कर रहे हैं।हमारे भारत में भी तो मुंबई अंडरवर्ल्ड को लेकर बहुत सी फिल्में बन जाती है। लेकिन अमेरिका इस मामले में सबसे आगे है। चूंकि अमेरिका द्वारा किए जा रहे अत्याचार और दुष्प्रचार के सामने ये बाकी देश छोटे पड़ जाते हैं इसलिए इस एक देश को ही केन्द्र में रखकर बात कही गई है। और आखिर में ये कहना गलत न होगा कि तमाम खूबियों, समृध्दि के उच्च मानदंडो के बावजूद अमेरिका दुनिया का सबसे असभ्य देश है।
              

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